संसद के वित्तीय कार्यों में सहायता करने के लिए बनाई गई स्थायी समितियों में से एक प्राक्कलन समिति है। 1950 में तत्कालीन वित्त मंत्री जॉन मथाई की सिफारिश पर इसका गठन किया गया, जिसमें 30 सदस्य हैं, जिनका चुनाव लोकसभा सदस्यों में से एकल संक्रमणीय मत के द्वारा होता और इसके अध्यक्ष का चुनाव लोकसभा अध्यक्ष इन सदस्यों में से करते हैं। जो सत्तारुढ़ दल का होता है।
भारतीय संसदीय प्रणाली में प्राक्कलन समिति का महत्व-
1. संसदीय प्रणाली होने के कारण बजट और संचित निधियों से होने वाले खर्च के लिए संसद ज़िम्मेदार है, लेकिन संसद का आकार बहुत बड़ा होने के कारण आम बजट पेश होने के बाद इसके अनुदान की मांगों के बारे में विस्तार से चर्चा करना बहुत मुश्किल है। ऐसे में प्राक्कलन समिति के ज़रिए बजट पेश होने के बाद अनुदान की मांगों पर विचार करती है और मांगों के बारे उचित सुझाव देती है।
2. प्राक्कलन समिति के ज़रिए किसी भी योजना के लिए बजट अनुमान लगाने में मदद मिलती है। इसमें समिति किफायती सुझाव भी देती है।
3. इस समिति के ज़रिए बजट में अनियमितता या फिर सरकार की निरंकुशता पर लगाम लगाने में संसद को मदद मिलती है। क्योंकी बजट में प्राक्कलन और अनुदान मांग संबंधी मामलों की जांच कर समिति उचित सुझाव देती और प्रतिवेदन सौंपती है।
4. संसद सदस्यों को इस समिति के सुझाव और जांच प्रतिवेदन के ज़रिए बजट की बारीकियों के बारे में समझ बढ़ती है, जिससे उन्हें इस पर चर्चा करने और सवाल उठाने में मदद मिलती है।
हालांकि समिति की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं है, लेकिन फिर भी सरकार के वित्तीय फैसलों और सरकार की ओर से पेश किए गए आम बजट पर संसद की भूमिका को और मजबूत बनाने में समिति अहम रोल निभाती है। जो संसदीय प्रणाली के लिए बेहद जरूरी है।
साभार : सुमित कुमार झा