भारतीय प्रबंध संस्थानों को अधिक अधिकार देता नया विधेयक

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सरकार  ने अपने मूलमंत्र 'न्यूनतम शासन, अधिकतम प्रशासन' को कम से कम एक अहम क्षेत्र में आगे बढ़ाने की पहल की है। वह क्षेत्र है भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम)। आईआईएम संस्थानों से जुड़ा विधेयक |इसके प्रमुख प्रावधानों में आईएमएम के निदेशकों की नियुक्ति का अंतिम अधिकार बोर्ड को देने का प्रस्ताव भी शामिल है। यह मसौदा विधेयक में अहम सुधार है जिसमें कहा गया था कि अगर विजिटर (राष्ट्रपति) खोज एवं चयन समिति की सिफारिशों से सहमत नहीं होंगे तो वह समिति को फिर से सिफारिश करने को कह सकते हैं। 

  • इस फैसले की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि अधिकांश पुराने आईआईएम में निदेशक नहीं हैं या फिर उन्होंने मौजूदा निदेशकों को ही कुछ समय के लिए रुकने का अनुरोध किया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि छांटे गए उम्मीदवारों को अक्सर मंत्रालय की मंजूरी के लिए इंतजार करना पड़ता है क्योंकि इसके काफी समय लगता है। अधिकांश नए आईआईएम तो अभी तक अपने निदेशक नियुक्त नहीं कर पाए हैं। कई उम्मीदवार तो व्यवस्था से आजिज आकर उम्मीदवारी से हट चुके हैं। इससे नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया मजाक बनकर रह गई है। 
  • अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन संस्थानों के बोर्ड स्वतंत्र रूप से ऐसे निर्णय लेते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि ऐसे संस्थानों के डीन छह महीने पहले ही चुन लिए जाते हैं ताकि उन्हें माहौल से वाकिफ  होने का मौका मिल जाए।
  •  आईआईएम विधेयक से हमने सुधार की दिशा में कितना रास्ता तय कर लिया है इसका पुष्टिï इस बात से होती है कि मसौदा विधेयक ने आईआईएम बोर्डों को मंत्रालय के हाथों की कठपुतली बनाकर रख दिया था। इसमें इस बात की भी अनदेखी की गई थी कि बड़े आईआईएम वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर हैं और अपना फंड खुद जुटाने को समर्पित हैं।
  •  चेयरमैन की नियुक्ति के बारे में मसौदा विधेयक में कहा गया था कि उसकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के आधार पर की जाएगी। इसमें सरकार के हस्तक्षेप की पूरी गुंजाइश थी।
  • विधेयक में कहा गया था कि एक समन्वय मंच होगा जो केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों के मुताबिक काम करेगा। इसका मतलब यह था कि इस मंच की अध्यक्षता मंत्री करेंगे और इसमें केंद्रीय राज्य मंत्री, राज्यों के चार मंत्री, मंत्रालय के केंद्रीय सचिव, चेयरपर्सन और निदेशक, तीन जाने माने लोग होंगे जिनमें एक महिला शिक्षाविद होंगी। पहले नामांकन में संस्थानों को नाम सुझाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 
  • पिछले विधेयक से आईआईएम और सरकार के बीच मतभेद पैदा हो गए थे। इसमें सरकार को लगभग सभी अहम मामलों में अधिकार दिए गए थे। बोर्ड के गठन और चेयरमैन की नियुक्ति करने, फीस तय करने और नए अकादमिक विभाग बनाने के लिए भी सरकार की सहमति की जरूरत थी। नए विधेयक में इन मामलों को सुलझा लिया गया है और यह भी सुनिश्चित किया गया है कि प्रत्येक आईआईएम अपना पाठ्यक्रम तय करने और शिक्षा मानक तय करने के लिए स्वतंत्र है। छात्रों की संख्या बढ़ाने का फैसला भी संस्थानों को अपने स्तर पर करना है, इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होगी।
  • विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक मानव संसाधन विकास मंत्री आईआईएम परिषद में अपनी भूमिका छोड़ देगा। यह परिषद आईआईएम संस्थानों के प्रशासन और रणनीति से जुड़ी है। अब आईआईएम बोर्ड के सदस्यों को अपनी उपयोगिता साबित करनी है।

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