न्यायपालिका और न्यायिक स्वतंत्रता

- हायर जुडिशरी में जजों की नियुक्ति हमारी व्यवस्था के लिए एक बड़ा मुद्दा बनी हुई है। न्यायपालिका इसे अपनी स्वतंत्रता से जोड़कर देखती है और नियुक्ति प्रक्रिया को पूरी तरह अपने हाथ में रखना चाहती है। लेकिन कार्यपालिका इसमें अपनी भूमिका बढ़ाना चाहती है, क्योंकि उसके मुताबिक अति न्यायिक सक्रियता व्यवस्था के लिए ठीक नहीं है। उसे संदेह है कि जजों द्वारा खुद को नियुक्त करने का सिस्टम जुडिशरी में अनियमितताओं की वजह बन रहा है

- इस रस्साकशी में एक नया तब आया, जब सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को असंवैधानिक बता दिया।

- केंद्र सरकार ने पिछले साल हायर जुडिशरी में जजों की नियुक्ति के बीस साल से ज्यादा पुराने कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करने के लिए इस आयोग का गठन किया था। लेकिन इसके खिलाफ जनहित याचिकाएं दायर की गईं, जिन पर विचार करते हुए कोर्ट की संविधान पीठ ने यह फैसला दिया है। वैसे, एनजेएसी का प्रमुख भारत के चीफ जस्टिस को ही बनाया गया था। उनके अलावा सुप्रीम कोर्ट के दो सीनियर जज, दो जानी-मानी हस्तियां और विधि मंत्री इसके सदस्य बनाए जाने वाले थे।

- दोनों हस्तियों का चुनाव चीफ जस्टिस, प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता द्वारा किए जाने का प्रावधान था। लेकिन ताजा फैसले के बाद कॉलेजियम सिस्टम फिर से लागू हो गया है जिसमें चीफ जस्टिस के अलावा चार सीनियर जजों का एक पैनल होता है। वही सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों के अपॉइंटमेंट और ट्रांसफर की सिफारिशें करता है। हमारे संविधान में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन पर जोर दिया गया है।

- मूल भावना यह है कि संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करने में तीनों एक-दूसरे को सहयोग देंगे। एक जीवंत लोकतंत्र की निशानी यह है कि उसमें विधायिका सबसे सक्रिय भूमिका निभाए और न्यायपालिका अभिभावक की तरह बैकग्राउंड में रहकर उसका मार्गदर्शन करे। लेकिन व्यवहार में स्थितियां कुछ और दिख रही हैं।

- आज आलम यह है कि देश में न्यायपालिका को कार्यपालिका की भूमिका भी निभानी पड़ रही है। उसे याद दिलाना पड़ता है कि सरकार कानून-व्यवस्था दुरुस्त करे, सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखे। यह तक तय करना पड़ जाता है कि बसें सड़क पर बाईं ओर ही चलें। हाल के वर्षों में उसे कार्यपालिका और विधायिका के कई दिग्गजों के भ्रष्टाचार से जुड़े मामले भी निपटाने पड़े हैं। इससे उसकी भूमिका बदल सी गई है। तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि खुद न्यायपालिका के भीतर से भी करप्शन के कई मामले सामने आए हैं।

- जाहिर है, संतुलन कहीं न कहीं गड़बड़ाया है। सिस्टम के सारे अंग अपनी गरिमा खोने लगेंगे तो इसकी साख को धक्का लगेगा ही। जजों की नियुक्ति पहले की ही तरह होती रहे, इसमें कोई हर्ज नहीं है, लेकिन यह कारगर तभी होगी जब न्यायपालिका का चरित्र बेदाग रहे। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला तो सुना दिया है, लेकिन इसके साथ ही अपनी जवाबदेही भी बढ़ा ली है।

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