अखिल भारतीय न्यायिक सेवा: केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव की नई वजह

Times of India का संपादकीय

सन्दर्भ:- सरकार ने जिला स्तर पर जजों की नियुक्ति के लिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (एआईजेएस) शुरू करने की घोषणा की है।

  • केन्द्र सरकार जिला जजों की नियुक्ति के लिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (एआईजेएस) शुरू करने पर गंभीरता से विचार कर रही है. 
  • द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक देशभर की निचली अदालतों में इस वक्त जजों के करीब 4,400 पद खाली हैं. इनमें जिला जजों के पद भी शामिल हैं.
  •  उच्च न्यायालयों को भी जज बनाने के लिए सक्षम वकील नहीं मिल पाते. इसीलिए राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह की परीक्षा के बारे में सोचा जा रहा है. यह परीक्षा संघ लोकसेवा आयोग आयोजित करेगा.
  • फिलहाल इन सभी पदों को भरने के लिए राज्य लोक सेवा आयोग उच्च न्यायालयों के मार्गदर्शन में परीक्षाएं आयोजित करते हैं. एआईजेएस शुरू होने के बाद वे जिला जजों को छोड़कर सिविल जज और मजिस्ट्रेटों की नियुक्ति के लिए अपनी परीक्षा प्रक्रिया जारी रख सकेंगे.
  • रिपोर्ट के मुताबिक, 1961, 1963 और 1965 में हुए मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में एआईजेएस के प्रस्ताव पर पहली बार विचार किया गया था. लेकिन उस वक्त यह ठंडे बस्ते में चला गया क्योंकि कुछ राज्यों और उच्च न्यायालयों ने इस पर अपनी आपत्तियां जताई थीं.
  •  हालांकि इसके बाद 1977 में संविधान के अनुच्छेद 312 के तहत एआईजेएस का प्रावधान करने के लिए संवैधानिक संशोधन भी किया गया. संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार ने भी 2012 में कोशिश की. उसने विधेयक का मसौदा भी तैयार कर लिया. लेकिन इस बार भी कुछ उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के विरोध के बाद यह कोशिश ठंडी पड़ गई. 
  • विरोध करने वाले मुख्य न्यायाधीशों की दलील थी कि एआईजेएस उनके अधिकार क्षेत्र में दखलंदाजी है.
  • ऐसे में, यह जिक्र करना जरूरी है कि मोदी की सरकार इस प्रस्ताव को लाने पर ऐसे समय में विचार कर रही है जब उसके और सुप्रीम कोर्ट के बीच जजाें की नियुक्ति और पदोन्नति की मान्य प्रक्रिया को लेकर रस्साकशी चल रही है. 
  • इस संबंध में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को उच्चतम न्यायालय पहले ही ‘असंवैधानिक’ करार देकर खारिज कर चुका है. कॉलेजियम प्रणाली के लिए भी केन्द्र की ओर सुझाए गए मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) पर अब तक कोई सहमति नहीं बनी है. 
  • सुप्रीम कोर्ट को एमओपी के उस प्रावधान पर खास तौर पर आपत्ति है, जिसके तहत केन्द्र सरकार को कॉलेजियम की कोई भी सिफारिश राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर खारिज करने का अधिकार होगा. 
  • इसके अलावा उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के लिए योग्य उम्मीदवारों के चयन के लिए एक स्क्रीनिंग कमेटी गठित करने के प्रावधान पर भी शीर्ष अदालत ने आपत्ति जताई है.

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