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केंद्र सरकार ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी व्यवस्था लाने पर विचार करने से इनकार किया है.
- लोक सभा में कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कानून बनाने पर फिलहाल कोई विचार नहीं किया जा रहा है.
- पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने भी यह मुद्दा उठाया था. उसने केंद्र सरकार से मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कानून न होने पर जवाब मांगा था. चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में पारदर्शिता होना जरूरी है क्योंकि वे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने जैसा महत्वपूर्ण काम करते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की थी.
- इससे पहले मार्च 2015 में चुनाव सुधार संबंधी अपनी रिपोर्ट में विधि आयोग ने भी कहा था कि चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त सहित सभी आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा तीन सदस्यीय कॉलेजियम या चयन समिति की सलाह पर की जानी चाहिए. उसका मानना था कि इस समिति में प्रधानमंत्री, लोक सभा में नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता और भारत के चीफ जस्टिस शामिल होने चाहिए.
- रिपोर्ट के मुताबिक 2012 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी चुनाव आयोग के अलावा नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम व्यवस्था बनाने की मांग की थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे पत्र में उन्होंने कहा था कि केवल प्रधानमंत्री की सिफारिश पर होने वाली ये नियुक्तियां लोगों में भरोसा नहीं जगा पाती हैं और इनमें पक्षपात का जोखिम बना रहता है.