क्या कहा कोर्ट ने
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि ट्रिपल तलाक (तीन तलाक) मुस्लिम महिलाओं के साथ क्रूरता है। यह समाज व देश के हित में नहीं है। यह महिलाओं को संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के खिलाफ है। भारत को एक राष्ट्र बनाने में बाधक है।
- कोर्ट ने कहा कि पवित्र कुरान ‘तलाक’ या ‘खुला’ की छूट देता है, लेकिन पति-पत्नी के बीच सुलह के सारे प्रयास विफल होने की दशा में ही इसकी अनुमति दी गई है।
- लोग अपनी सुविधा के लिए तीन तलाक के इस्लामिक कानून की व्याख्या कर उसे जायज ठहरा रहे हैं।
- कोर्ट ने यह भी कहा कि पर्सनल लॉ संविधान प्रदत्त अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकता।
- मुस्लिम औरतों को निजी कानूनों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता
कोर्ट ने कहा कि पंथनिरपेक्ष देशों में संविधान के तहत आधुनिक कानून सामाजिक बदलाव लाते हैं। भारत में भी संख्या में मुसलमान रहते हैं। लेकिन मुस्लिम औरतों को पुराने रीतिरिवाजों और सामाजिक मान्यताओं वाले निजी कानूनों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। - बिना ठोस कारण तलाक गलत : इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिमों में बहुविवाह और तलाक से जुड़े मामलों की जटिलताओं सुनवाई करते हुए कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां की। अदालत ने कहा कि यदि पत्नी के व्यवहार या बुरे चरित्र के कारण वैवाहिक जीवन दुखमय हो गया हो तो पुरुष विवाह विच्छेद कर सकता है और इस्लाम में इसे सही माना गया है। किंतु बिना ठोस कारण के तलाक को धार्मिक या कानून की निगाह में सही नहीं ठहराया जा सकता। कई इस्लामिक देशों में पुरुष को कोर्ट में तलाक के कारण बताने पड़ते हैं, तभी तलाक मिल पाता है। ऐसे में तीन तलाक को सही नहीं माना जा सकता।