उत्तराखंड संकट न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है राष्ट्रपति का फैसला

पृष्ठभूमि(Background)

उत्तराखंड विधानसभा में कुल 70 विधायक हैं, जिसमें कांग्रेस के पास 36 थे और भाजपा की संख्या 28 रही, जिसमें भाजपा का एक विधायक निलंबित है। राज्य में दो बसपा जबकि तीन निर्दलीय और एक उत्तराखंड क्रांतिदल के विधायक हैं। कांग्रेस में बगावत होने के बाद अब उसके पास 27 विधायक  रह गए थे|

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन की घोषणा सत्ताईस मार्च को हुई। जबकि इसके अगले ही दिन वहां सरकार के बहुमत का परीक्षण होना | राज्य में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के विधायकों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत कर दी थी और इसी क्रम में उत्तराखंड  सरकार सदन में अपना बहुमत सिद्ध कर पाती, इसके पहले ही राज्य में केंद्र सरकार द्वारा संविधान के अनुच्छेद 356 का प्रयोग कर उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया|UTTRAKHAND

लोकतंत्र की हत्या

  • सरकार अगर बहुमत न सिद्ध कर पाती, उस स्थिति में केंद्रीय मंत्रिमंडल राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकता था, लेकिन बहुमत साबित किए जाने से पहले सरकार को बर्खास्त किया जाना  संवैधानिकता का ध्योतक नहीं है? 
  • वक्त से पहले केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर यह साबित कर दिया कि इस सियासी खेल में उसकी भी अहम भूमिका है जन्हा लोकतान्त्रिक सरकार को बर्खास्त कर दिया गया|
  • संख्या बल व् इसकी खरीद फ़रोख्त  लोकतांत्रित व्यवस्था के लिए सबसे खतरनाक जहर है।

हाई कोर्ट का जवाब तलब

  • उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाकर वह निर्वाचित सरकारों के अधिकार हड़प रहा है और अराजकता फैला रहा है तथा विधानसभा में ‘‘शक्ति परीक्षण की शुचिता को समाप्त नहीं किया जा सकता’’। अदालत की पीठ इस बात पर कायम रही कि खरीद फरोख्त एवं भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद बहुमत के परीक्षण का एकमात्र संवैधानिक तरीका सदन में शक्ति परीक्षण है ‘‘जो अभी किया जाना शेष है।’’
  • राष्ट्रपति शासन केवल असामान्य मामलों में ही लागू किया जा सकता है। पीठ ने  कहा कि राष्ट्रपति 28 मार्च के बाद उत्पन्न होने वाली स्थितियों की प्रतीक्षा कर सकते थे जब सदन में शक्ति परीक्षण होना था।
  • राष्ट्रपति शासन लगाकर केन्द्र  निर्वाचित सरकार के अधिकार ले रही है।  साथ ही कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल ने अनुच्छेद 356 लागू करने की सिफारिश नहीं की थी। 23 मार्च को शक्ति परीक्षण करवाने के राज्यपाल के कदम की शुचिता को समाप्त नहीं किया जा सकता है।
  • पीठ ने  कहा कि खरीद फरोख्त के आरोपों तथा सरकार में भ्रष्टाचार को इंगित करने वाले स्टिंग ऑपरेशन के बावजूद बहुमत साबित का एकमात्र तरीका सदन में शक्ति परीक्षण है। यह किया जाना अभी बाकी है। पीठ ने कहा, ‘‘स्टिंग ऑपरेशन ओर उससे निकाले गये निष्कर्ष पूरी तरह से अप्रासंगिक हैं। केन्द्रीय कैबिनेट इस बात को नहीं जान सकता था कि विधानसभा अध्यक्ष 26 मार्च को नौ विधायकों को निलंबित कर देंगे
  • सरकार  का यह तर्क कि राष्ट्रपति ने अपनेराजनैतिक विवेकके तहत संविधान के अनुच्छेद 356 को लागू करने का निर्णय किया, मुख्य न्यायाधीश के एम जोसफ और न्यायमूर्ति वीके बिष्ट कि पीठ ने कहा, ‘लोगों से गलती हो सकती है, चाहे वह राष्ट्रपति हों या न्यायाधीश।अदालत ने कहा किराष्ट्रपति के समक्ष रखे गए तथ्यों के आधार पर किए गए उनके निर्णय की न्यायिक समीक्षा हो सकती है।

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