#राष्ट्रीय सहारा
Submission of governments in supreme court regarding Article 35A
राज्य सरकार ने शपथ पत्र दाखिल कर बताया है कि Article 35A पर कोई विवाद नहीं है, यह स्थायी है। वहीं, केंद्र सरकार ने कोई शपथ पत्र तो दाखिल नहीं किया है, लेकिन शीर्ष अदालत को कहा है कि यह मामला ‘‘संवेदनशील’ है, और इस पर ‘‘व्यापक र्चचा’ किए जाने की दरकार है। मुस्लिम नेतृत्व ने केंद्र सरकार के रुख पर सवालिया निशान लगाए हैं। उसका मानना है कि दिल्ली न्यायिक जरिये से राज्य को हासिल विशेष दरजे को खत्म करना चाहती है
Article 35A जम्मू-कश्मीर के राजनैतिक परिदृश्य को बेहद नाटकीय अंदाज में बदल डाला है। इस बात को लेकर देशव्यापी र्चचा छिड़ गई है कि क्या इसे बरकरार रखा जाए या समाप्त कर दिया जाए।
- कश्मीर का नागरिक समाज और तमाम कश्मीरी मुस्लिम नेता Article 35A के खात्मे की मांग को रात-दिन एक किए हुए हैं
- दूसरी तरफ कश्मीर के करीब-करीब बाकी सभी समुदायों की दृष्टि में Article 35A को समाप्त किए जाने के
Effect of abolishing Article 35A
- इसके खात्मे से राज्य को हासिल विशेष दरजा समाप्त हो जाएगा। यह दरजा उसे अक्टूबर, 1949 से प्राप्त है, जब भारत की संविधान सभा ने संविधान सभा के अध्यक्ष बीआर अम्बेडकर के विरोध के बावजूद अनुच्छेद 306-ए (370) को अंगीकार किया था। अम्बेडकर ने कहा था : ‘‘मैं राष्ट्रीय हित की अवहेलना करने वाले इस कृत्य का भागीदार नहीं बनना चाहता। मैं भारत का विधि मंत्री हूं..।’ (अनुच्छेद 370 अस्थायी प्रावधान है)।
- इससे कश्मीर की जनसांख्यिकी बदल जाएगी क्योंकि राज्य के बाहर के लोग भी कश्मीर में अचल संपत्ति खरीद कर वहां रह सकेंगे।
- अन्य राज्यों के लोग राज्य में सरकारी नौकरियों में खुद को नियोजित कर सकेंगे। उनके बच्चे राज्य-प्रायोजिक स्कॉलरशिप सुविधाओं से लाभान्वित हो सकेंगे।
- राज्य के स्थायी निवासियों और बाकी भारतीयों के बीच समानता आ सकेगी।
कश्मीरी मुस्लिम चाहते हैं कि मौजूदा स्थिति कायम रहे, जिससे उनकी विशेष श्रेणी बनी रहे और अन्य सभी भारतीयों को किसी दूसरे ग्रह के प्राणी सरीखे माना जाता रहे। कश्मीर मुस्लिम नेताओं, कोईअपवाद के रूप में भी नहीं बचा है, ने केंद्र सरकार को चेताया है कि अनुच्छेद 35-ए के साथ छेड़छाड़ किए जाने पर कश्मीर में हिंसा बेतहाशा बढ़ेगी और राष्ट्रीय ध्वज को कोई पुरसाहाल तक न होगा।
वे यहां तक कह रहे हैं कि Article 35A के खात्मे से राज्य के भारत में विलय के समूचे मुद्दे का पिटारा फिर से खुल जाएगा। (न तो अनुच्छेद 370 और न ही Article 35A का राज्य की भारत में विलयन प्रक्रिया से कुछलेना देना नहीं है। विलय 26 अक्टूबर, 1947 को हुआ था, जबकि अनुच्छेद 370 छब्बीस जनवरी, 1950 को लागू हुआ और अनुच्छेद 35-ए राज्य में 14 मई, 1954 को राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से लागू किया गया था)। दूसरी तरफ, जम्मू और लद्दाख के लोग, जिनकी राज्य में ज्यादा नहीं तो कश्मीरियों जितनी आबादी है और जो राज्य के 88 प्रतिशत से ज्यादा भूक्षेत्रपर काबिज हैं, अनुच्छेद 35-ए का खात्मा चाहते हैं। इस बाबत उनके तर्क के भी चार आधार हैं।
- जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, और इसलिए सभी भारतीयों को जम्मू-कश्मीर में स्थायी निवास जैसे वे अधिकार मिलने जरूरी हैं जो उन्हें समूचे भारत में हासिल हैं।
- कश्मीरी मुस्लिम नेतृत्व ने अनुच्छेद 35-ए का दुरुपयोग करते हुए जम्मू में राज्य और वन विभाग की दो लाख कनाल से ज्यादा भूमि हड़प ली है, और गुपचुप अंदाज में वहां का जनसांख्यिकी स्वरूप बदल डाला है। अनुच्छेद 35-ए को खत्म नहीं किया गया तो कश्मीरी नेतृत्व कश्मीरी अफसरशाही, राजस्व और पुलिस विभाग के साथ मिलकर जम्मू में बची राज्य और वन विभाग की बाकी जमीन भी हड़प लेगा। इसे कश्मीर में शामिल कर अलगाववादी मंसूबे पूरे करने में इस्तेमाल करेगा।
- आधार यह है कि अनुच्छेद 35-ए के चलते देश के बंटवारे के समय पाकिस्तान से आए हिंदू-सिख शरणार्थियों, जो राज्य के विभिन्न हिस्सों में रह रहे हैं, नागरिकता के अधिकार से अभी तक वंचित रखा गया है।
- जम्मू और लद्दाख के लोगों का वह तर्क जिसमें उन्होंने अनुच्छेद 35-ए को राज्य में अपनी बेटियों के मानवाधिकारों का हनन करने वाला करार दिया है। उनकी बेटियों के विवाह के उपयुक्त अवसर कुंद हुए हैं। यदि कोई युवती राज्य के स्थायी निवासी से विवाह करती है, तो उसके बच्चे अनुच्छेद 35-ए के तहत नागरिकता अधिकार हासिल करने के पात्र होते हैं। अगर वह राज्य के अस्थायी निवासी से विवाह करती है, तो उसके बच्चे और पति को मताधिकार तक हासिल नहीं होता; राज्य में अचल संपत्ति खरीदने का अधिकार नहीं मिलता; राज्य द्वारा संचालित और वित्त-पोषित उच्च, तकनीकी और पेशेवर शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश का अधिकार नहीं होता; बैंक ऋण प्राप्त करने का हक नहीं मिलता; राज्य सरकार की नौकरी पाने का अधिकार नहीं होता; और राज्य में कोई भी चुनाव लड़ने का हक नहीं मिलता।
अदालत ने 14 अगस्त को संकेत दिया कि इस मामले को पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ के हवाले किया जा सकता है। अभी तीन सदस्यीय पीठ मामले की सुनवाई कर रही है। रोचक बात यह है कि जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी की गठबंधन सरकार तथा केंद्र में भाजपा सरकार मामले में परस्पर विपरीत रुख अपनाए हुए हैं। राज्य सरकार ने शपथ पत्र दाखिल करके बताया है कि अनुच्छेद 35-ए पर कोई विवाद नहीं है, यह स्थायी है। दूसरी तरफ, केंद्र सरकार ने कोई शपथ पत्र तो दाखिल नहीं किया है, लेकिन शीर्ष अदालत को कहा है कि यह मामला ‘‘संवेदनशील’ है, और इस पर ‘‘व्यापक र्चचा’ किए जाने की दरकार है। मुस्लिम नेतृत्व ने केंद्र सरकार के रुख पर सवालिया निशान लगाए हैं। उसका मानना है कि नई दिल्ली न्यायिक जरिये से राज्य को हासिल विशेष दरजे को खत्म करना चाहती है। बहरहाल, समूचे राष्ट्र का मन बन चुका है कि अनुच्छेद 370 तथा अनुच्छेद 35-ए को समाप्त करके जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह भारत में समाहित किया जाए
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