गाड़ियों पर लाल बत्ती लगाने की परंपरा का अंत – वीआईपी संस्कृति के लिए बड़ा झटका

ग्रीस के प्रसिद्ध दार्शनिक ने कहा था कि ‘अच्छी शुरुआत आधी सफलता होती है’। सरकारी गाड़ियों पर लाल बत्ती लगाने की संस्कृति को खत्म करने के लिए केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा लिया गया निर्णय इस दिशा में लड़े जा रहे युद्ध के खिलाफ एक अच्छी शुरुआत है।

  • केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार 19 अप्रैल 2017 को राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री सहित विभिन्न वीआईपी गणमान्य व्यक्तियों के वाहनों पर लाल एवं अन्य रंगों की बत्तियां लगाने की परंपरा को खत्म करने के लिए मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन करने का निर्णय लिया। मंत्रिमंडल की बैठक में इस निर्णय को लिए जाने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने एक ट्वीट में कहा कि ‘प्रत्येक भारतीय नागरिक ख़ास है, प्रत्येक भारतीय नागरिक वीआईपी है।
  • केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने देशभर में विभिन्न श्रेणियों के अंतर्गत वाहनों के ऊपर लगी लाल बत्ती को हटाने का निर्णय लिया। सरकार का मानना है कि वाहनों के ऊपर लगी लाल बत्ती से वीआईपी संस्कृति का प्रदर्शन होता है, और एक लोकतांत्रिक देश में इस तरह की किसी भी संस्कृति के लिए स्थान नहीं है। वाहनों के ऊपर लगी इन लाल बत्तियों की कोई प्रासंगिकता नहीं है। हालांकि एंबुलेंस, दमकल आदि आपातकालीन और राहत कार्यों के अंतर्गत सेवा कार्यों में लगे वाहनों पर इस तरह की बत्तियों को इस्तेमाल करने की इजाज़त दी जाएगी। इस निर्णय के मद्देनज़र, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय नियमों में आवश्यक संशोधन करेगा। यह बात केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए निर्णय के बाद सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी संक्षिप्त बयान में कही गई।
  • इसके तुरंत बाद यह टेलीविज़न समाचार चैनलों और समाचार पोर्टल्स पर बड़ी ख़बर के रूप में दिखने लगी। इतना ही नहीं, सोशल मीडिया पर इस ख़बर के संबंध में खुशनुमा संदेशों की झड़ी लग गई। वाहनों से लाल, नीली, ऑरेंज (नारंगी) आदि बत्तियों को हटाने की ख़बर जैसे ही देशभर में फैली, तो जिन लोगों को इस तरह की बत्तियों का उपयोग करने की अनुमति थी, उनमें से कई वीआईपी ने तुरंत प्रभाव से अपने वाहनों से बत्ती उतारते हुए फोटो खिंचवाकर सोशल मीडिया आदि पर अपलोड कर दी और हज़ारों लोगों तक यह संदेश पहुंचाया कि वे कोई विशेष व्यक्ति नहीं, बल्कि समाज का ही एक हिस्सा हैं और समाज के अन्य लोगों की तरह ही आम नागरिक हैं। वाहनों से बत्तियों को हटाकर वीआईपी संस्कृति को खत्म करने के लिए मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए निर्णय के संदेश को आश्वासन के रूप में देखा जा सकता है, एक वादे के रूप में देखा जा सकता है, देश में बदलाव लाने वाले एक संदेश के रूप में देखा जा सकता है और इस संदेश को देशभर में भेदभाव खत्म करने के रूप में भी देखा जा सकता है।
      *सर्वोच्च अदालत का फैसला* :--- 
  • -  सरकार ने दिसंबर 2013 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को आगे बढ़ाते हुए वाहनों पर लगने वाली लाल एवं अन्य रंगों की बत्तियों को हटाने के बारे में यह निर्णय लिया। इस फैसले में कानूनों में संशोधन कर, वाहनों पर लगने वाली लाल बत्ती के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई थी।
  •  वीआईपी संस्कृति के बारे में सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि “यदि सत्ता कुछ व्यक्तियों तक केन्द्रित रहती है, तो सत्ता को हासिल करने का लालच लोकतंत्र के मूल्यों को खत्म कर देगा। हमने पिछले चार दशकों में जो किया है वह निश्चित रूप से हमारी स्थापित राजनीतिक प्रणाली को झटका पहुंचाएगा। इसके सबसे बेहतर उदाहरण, छोटे से लेकर बड़े सार्वजनिक प्रतिनिधियों और विभिन्न कैडरों के नौकरशाहों सहित विभिन्न पदाधिकारियों द्वारा वाहनों पर लाल बत्ती आदि का उपयोग किया जाना है। लाल बत्ती सत्ता को प्रदर्शित करती है और जिनके पास इस तरह की बत्तियों को उपयोग करने की सुविधा है और जिनकी पास ऐसी सुविधा नहीं है, उनके बीच बड़े अंतर को दर्शाती है।
  •  इस मामले में न्यायालय द्वारा गठित एमिकस क्यूरी ने अदालत को बताया था कि लाल बत्ती लोगों के लिए एक प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया था, जो लोग इस तरह की बत्ती का उपयोग करते हैं वे खुद को सामान्य लोगों से अलग एवं बेहतर श्रेणी में समझते हैं। उन्होंने न्यायालय को यह भी बताया कि, सरकारी वाहनों पर लाल बत्ती का व्यापक उपयोग उन लोगों की मानसिकता को प्रतिबिम्बित करता है, जिन्होंने भारत में ब्रिटिश सरकार की सेवा की थी, और देश के आम लोगों को गुलाम डराने-धमकाने का प्रयास करते थे।

मंत्रिमंडल की घोषणा उत्साह लेकर आई*:--

  • केन्द्रीय मंत्रिमंडल की घोषणा के तुरंत बाद, कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपने वाहनों से लाल बत्ती हटाने की घोषणा कर दी। अपने वाहनों से लाल बत्ती हटाने की घोषणा करने वाले मुख्यमंत्रियों में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और कई अन्य राज्य शामिल हैं। कई अन्य राज्यों ने भी जल्द ही इस नियम का पालन किया। यह वीआईपी संस्कृति और लाल बत्ती परंपरा से मुक्ति का एक प्रयास था। दिल्ली और त्रिपुरा सहित कई अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री पहले से ही अपने वाहनों पर लाल बत्ती का उपयोग नहीं कर रहे हैं। हाल ही में, पंजाब और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों (कैप्टन अमरिंदर सिंह और योगी आदित्यनाथ) ने शपथ लेने के तुरंत बाद यह ऐलान किया कि वे लाल बत्ती वाले वाहन का उपयोग नहीं करेंगे। समाचार पत्रों की रिपोर्टों के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और भारतीय निर्वाचन आयोग के मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने अपने वाहनों से लाल बत्ती हटाने संबंधी आदेश पारित कर दिए हैं।

प्रत्येक भारतीय विशेष है, प्रत्येक भारतीय वीआईपी है”*:---

 केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा वाहनों पर लगने वाली लाल बत्ती को हटाकर इस बत्ती संस्कृति को खत्म करना वास्तव में सही दिशा में उठाया गया एक स्वागत योग्य कदम है। प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट में कहा कि ‘प्रत्येक भारतीय नागरिक ख़ास है, और प्रत्येक भारतीय नागरिक वीआईपी है’।

मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए इस निर्णय के बाद, लोग उम्मीद कर सकते हैं कि वीआईपी टैग के जरिए मिलने वाला विशेषाधिकार आदि का अंत होगा, और देश का प्रत्येक नागरिक एक समान अवसरों का लुत्फ उठा पाएगा। लोग उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले दिनों में किसी भी गरीब को वीआईपी कोटे की वजह से बेहतर शिक्षा से वंचित नहीं किया जाएगा। लोग उम्मीद कर सकते हैं कि दूर-दराज के इलाकों से आने वाला मरीज भी दिल आदि से संबंधित गंभीर बीमारियों का इलाज कराने में सक्षम हो पाएगा। वीआईपी लोगों को प्राथमिकता दिए जाने की वजह से दूर-दराज के इलाके से आने वाले मरीज़ को किसी दूसरे अस्पताल में नहीं भेजा जाएगा। हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि खुद प्रधानमंत्री ने यह वादा किया है कि , ‘प्रत्येक भारतीय ख़ास है, प्रत्येक भारतीय वीआईपी है’। हम उम्मीद करते हैं कि सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम लाल बत्ती के रूप में ताकत के प्रतीक बन गई इस संस्कृति का अंत करेगा।

साभार : विशनाराम माली 

 

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