मीडिया को विचारों की बहुलता को प्रतिबिंबित करना होगा: राष्ट्रपति

 प्रौद्योगिकी ने संचार के साधनों में एक अभूतपूर्व वृद्धि की है, इससे जनता तक अभूतपूर्व आंकड़े और सूचनाएं पहुंचने लगी हैं, विचार भी उन तक साझा होने लगे हैं। इसके कई सकारात्मक परिणाम हुए हैं: सबसे पहले, इससे कमजोर पर लगाए गए चुप्पी के बंधन टूट गए हैं। आजादी की भावना, खासतौर पर सोशल मीडिया, ने यह सुनिश्चित किया है कि प्रत्येक के पास आवाज उठाने का अधिकार है और यहां तक कि दूर-दराज के क्षेत्रों में भी दबी हुई आवाजों को अब सुना जा सकना संभव हो गया है। औसत नागरिक को बोलने और जानने के लिए सशक्त किया गया है। इस वृद्धि की बदौलत अब बहुलता और विविधता के साथ सूचनाएं मिलने लगी हैं। हालांकि नकारात्मक पक्ष यह है कि आंकड़ों और सूचनाएं, जो भी उपलब्ध हैं, अपरिष्कृत हैं और अनधिकृत रहती हैं। यहां तक ​​कि कई मामलों में यह अनियंत्रित भी होती है। 

Ø  राष्ट्रपति ने कहा कि उनका मानना ​​है कि मीडिया को जनता के हित की रक्षा करना चाहिए और हमारे समाज में हाशिए पर पहुंच चुके वर्ग को आवाज देनी चाहिए। हमारे लोगों को भारी असमानताओं का सामना करना पड़ता है, जिन्हें मीडिया द्वारा लगातार व्यक्त किया जाना चाहिए। 

Ø  राष्ट्रपति ने कहा कि प्रेस और मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। इसमें कई अतिरिक्त शक्तियां होती हैं। यह न सिर्फ तीनो स्तंभों को जवाबदेह बनाए रखता है बल्कि यह लोगों को विचारों को प्रभावित कर जनमत का भी निर्माण करता है। इसके जितनी कोई भी अन्य संस्था लोकतंत्र को प्रभावित नहीं करती। हालांकि विशाल शक्ति के साथ मीडिया को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मूल अवधारणा को बनाए रखने की जरूरत होती है। साथ ही अपनी विश्वसनीयता और उत्तरदायित्व को बनाए रखने की जिम्मेदारी भी मीडिया पर है। मैं मानता हूं कि तब प्रेस अपने कर्तव्य निभाने में असफल हो जायेगा जब वह शक्तिशाली लोगों से सवाल नहीं करेगा, वह तथ्यों की बजाय हल्की चीजों पर ध्यान केंद्रित करेगा और रिपोर्टिंग की बजाय प्रचार करने लगेगा। 

Ø  राष्ट्रपति ने कहा कि मीडिया को स्वतंत्र और निष्पक्ष रिपोर्ट के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का त्याग किए बिना दबाव सहने की कला सीखनी चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा कि हम राष्ट्र निर्माण की राह में कुछ विरोधाभासी ताकतों का सामना करते हैं: एक तरफ विकास और समृद्धि वाला विशाल क्षमता वाला देश है, दूसरी तरफ संसाधनों और अवसरों की बढ़ता असमान वितरण है। मीडिया को दोनों चीजें समान रूप से प्रतिबिंबित करनी चाहिए। मीडियो को इसमें जमीनी सच्चाई और वास्तविकता दिखानी चाहिए। अगर मीडिया अभिव्यक्ति की आजादी में विश्वास रखता है, अगर वह रामनाथ गोयनका की तरह निडर होकर पत्रकारिता करती है, तो उसे विचारों के बहुलवाद को अपनाना चाहिए, जो कि लोकतंत्र की आत्मा को जीवित रखने के लिए बेहद आवश्यक है। उसे हमेशा अपना मौलिक कर्तव्य ध्यान में रखना चाहिए। हमेशा ईमानदारी और निडरता के साथ सवाल पूछने चाहिए

GSHINDI विशेष : यह विचार पेपर II में मीडिया से सम्बंधित प्रश्नों में उपयोग में लाए जा सकते है

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