बाल श्रम पर नया कानून बालकों को बाल श्रम की और धकेलेगा

बाल मजदूरी (Child labour ) पर संसद द्वारा पारित नया कानून बेहद निराशाजनक है। यूनीसेफ, बचपन बचाओ आंदोलन और बाल अधिकारों के लिए समर्पित अन्य संस्थाओं द्वारा इसकी घोर निंदा स्वाभाविक है। 

इस कानून की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि यह बाल मजदूरी के निकृष्टतम रूपों को भी जायज ठहराता है। आशंका है कि अब बच्चों के शोषण के बहुतेरे बारीक तरीके खोज लिए जाएंगे। बाल श्रम निषेध व नियमन संशोधन विधेयक 2016 का मकसद बाल मजदूरी के खिलाफ पहले से चले आ रहे कानून को नरम बनाना है। इसके पास होते ही 14 साल की उम्र तक के बच्चों से पारिवारिक कारोबार और फिल्म व टेलीविजन कार्यक्रमों में बेखटके काम कराया जा सकता है। बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक समझे जाने वाले उद्योगों की संख्या 83 से घटाकर तीन कर दी गई है। अभी सिर्फ खदान, ज्वलनशील पदार्थ और विस्फोटक उद्योग को ही खतरनाक माना गया है। जरी और चूड़ी के कुटीर उद्योगों में, कपड़ों की दुकान पर और तमाम कारखानों में बच्चे काम कर सकते हैं।

इसके लिए सरकार ने विचित्र तर्क प्रस्तुत किया है। उसका कहना है कि बच्चों को शुरू से ही अपने पारिवारिक कारोबार में शामिल होकर अपना पुश्तैनी हुनर सीखना चाहिए। यानी सरकार ने अपनी तरफ से ही बच्चों के लिए अपने-अपने खानदानी कामों में बने रहने की हद बांध दी। वे अपने पारंपरिक दायरों से बाहर निकलें, पढ़ाई-लिखाई करें, अपने परिवार और समुदाय के लिए एक नए सपने का सृजन करें, इस तरह की बातें सरकार की नजर में पुरानी पड़ चुकी हैं।

नए कानून के तहत पारिवारिक कारोबार के दायरे में माता-पिता के अलावा उनके रिश्तेदार भी आते हैं। क्या सरकार में बैठे महानुभावों को पता नहीं है कि भारत में ज्यादातर बच्चों का शोषण रिश्तेदारी के नाम पर ही होता है। बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी अक्सर कहते रहे हैं कि उन्होंने कई बाल मजदूरों को ऐसे मालिकों के चंगुल से छुड़ाया है, जो खुद को उन बच्चों का रिश्तेदार बता रहे थे।

बिल के ये प्रावधान दिसंबर 2013 में पेश श्रम व रोजगार संबंधित संसदीय समिति की सिफारिशों के खिलाफ हैं। श्रम व रोजगार संबंधी संसदीय समिति ने अपनी 40वीं रिपोर्ट में कहा था कि बच्चों द्वारा स्कूली घंटों के बाद अपने परिवार की मदद करने का प्रावधान बिल से हटाया जाए और जोखिम वाले काम की परिभाषा में वे सभी काम शामिल किए जाएं, जो किशोरों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और नैतिकता को नुकसान पहुंचाते हैं। किशोरों को किसी भी रोजगार में जाने से पहले अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करनी चाहिए। लेकिन इस कानून से यह संदेह पैदा होता है कि सरकार की चिंता सिर्फ उद्योगों को बच्चों की शक्ल में सस्ते मजदूर मुहैया कराने तक सीमित है।

Also Refer:

https://gshindi.com/category/indian-polity-gs-paper-2-hindu-analysis/child-labour-amendment-bill-2016

https://gshindi.com/category/youth/stigma-of-child-labour

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