बाल श्रम का कलंक:

भारतीय संविधान के अनेक प्रावधानों व अधिनियमों में बच्चों की सुरक्षा की खातिर व्यवस्थाएं की गई हैं। समय-समय पर इस उद्देश्य से नए कानून भी बनाए जाते रहे हैं। इस सब के बावजूद बाल श्रम की समस्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई है

बाल श्रम :आंकड़ो पर एक नजर:

  • सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में हर साल साठ हजार से अधिक बच्चे गुम होते हैं। ये गुमशुदा बच्चे बाल व्यापार, वेश्यावृत्ति, बंधुआ मजदूरी, जबरिया भीख, मानव अंग व्यापार आदि ‘धंधों’ के लिए महंगी कीमतों पर बेचे जाते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक हर साल इससे लगभग पैंतालीस अरब डॉलर अर्थात दो लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा काला धन कमाया जाता है।
  • गुम होते बच्चे :यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में शोषण व भेदभाव के शिकार करोड़ों बच्चे अपने-अपने देश से गायब हो चुके हैं। भारत में भी बच्चों की तस्करी के आंकड़े भयावह हैं। गुम होते बच्चों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। ऐसे बच्चे कहीं बाल वेश्यावृत्ति जैसे घृणित पेशे में झोंक दिए जाते हैं या खतरनाक उद्योगों या सड़क के किनारे किसी ढाबे में जूठे बर्तन धोने में लगा दिए जाते है ।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में चौदह वर्ष से कम उम्र के लगभग बारह करोड़ बाल मजदूर हैं, जो स्कूल जाने के बजाय पेट की भूख मिटाने के लिए कठोर श्रम करने को विवश हैं।

बाल तस्करी  व् बाल श्रम : आइएलओ यानी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार भारत, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, थाईलैंड, मलेशिया, फिलीपींस आदि ऐसे एशियाई देश हैं जहां बच्चों के शोषण की घटनाएं बढ़ी हैं, जहां बाल मजदूरों की संख्या अधिक है

भारत सरकार द्वारा उठाये गए कदम

  • भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने सोलह खतरनाक व्यवसायों तथा पैंसठ खतरनाक प्रक्रियाओं की बाकायदा सूची जारी कर उनमें चौदह वर्ष तक की उम्र के बच्चों को रोजगार देना निषिद्ध घोषित कर रखा है।
  • स्कूल चलो अभियान, मध्याह्न भोजन, सर्वशिक्षा अभियान के द्वारा सरकार बाल श्रम रोकने के लिए प्रयासरत है।
  • शिक्षा अधिकार कानून 2009, जिसके तहत चौदह साल तक के प्रत्येक बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का कानूनी अधिकार है।
  • बाल मजदूर प्रतिबंधित एवं विनियमन अधिनियम के अंतर्गत दोषी को दस हजार से बीस हजार रुपए तक के अर्थदंड सहित एक वर्ष की सजा का प्रावधान है।
  •  सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा बच्चों को घरेलू बाल मजदूर के रूप में काम पर लगाने के विरुद्ध एक निषेधाज्ञा  जारी की गई है  

बाल श्रम पूरी दुनिया में एक प्रमुख सामाजिक व आर्थिक समस्या बन चुका है, जो बच्चों की शारीरिक व मानसिक क्षमता को प्रभावित करती है। बाल मजदूरों में से एक तिहाई से भी अधिक बच्चे खदानों, खतरनाक मशीनों, खेतों, घरेलू व अन्य प्रतिबंधित कार्यों में लगे हुए हैं।

क्या करने की आवश्यकता है

बच्चों के विरुद्ध उत्पीड़न और अपराध की बढ़ती घटनाएं आज विकासशील ही नहीं, कई विकसित देशों में भी चुनौती बन कर सामने आ रही हैं। महज कानून बना देने से यह समस्या सुलझने वाली नहीं है। सरकार को इसके हल के लिए बाल श्रमिक अधिनियम को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करना होगा और बाल श्रम विरोधी कानून तथा राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध परियोजना को शिक्षा अधिकार कानून के अनुरूप बनाना होगा। साथ ही समाज को भी अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा ताकि बेसहारा, बेघर बच्चों व बाल श्रमिकों को पुनर्वास के माध्यम से शिक्षा के अधिकार का सीधा लाभ मिल सके।

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