जलवायु परिवर्तन की धमक तेज होती जा रही है।
- इस वर्ष जून और जुलाई महीनों में अकेले कैलिफोर्निया के वनों में 140 बार आग लगी।
- ग्रीस में जंगलों में लगी आग से 80 लोग मारे गए।
- यूरोप गरम हवाओं से तपता रहा, भारत में बिना मौसम के आए धूल के तूफानों ने 500 से अधिक लोगों की जान ले ली।
- जापान तथा अन्य जगहों पर बेतहाशा बारिश होने से फसल नष्ट हो रही हैं, लोगों के घरों को नुकसान पहुंच रहा है। ये सारी घटनाएं असामान्य हैं। अतीत में इन घटनाओं की स्थिरता के बजाय अब हम ऐसे युग में हैं जहां सबकुछ अनजाना और अप्रत्याशित है।
हमें यह अवश्य पता है कि आने वाले दिनों में अजीबोगरीब मौसम की यह तीव्रता और अधिक बढऩे वाली है। मौसम में इस अतिरंजित बदलाव और जलवायु परिवर्तन के आपसी संबंधों का भी अध्ययन किया जा रहा है। विश्व मौसम संबंध नेटवर्क का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण यूरोप में गरम हवा के थपेड़ों की तादाद दोगुनी हो सकती है। दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर में सूखे की आशंका में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है|
अभी हाल ही में इस शहर में पानी खत्म होते-होते बचा है। प्रश्न यह है कि अब आगे क्या? आने वाले महीने में जब वैश्विक तापवृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगी तब जलवायु परिवर्तन का अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) 1.5 डिग्री सेल्सियस वाली अपनी रिपोर्ट पेश करेगा। रिपोर्ट वही बातें बताएगी जो हम सब पहले से जानते हैं।
अगर मौसम से जुड़ी ऐसी विपत्तियां 1 डिग्री सेल्सियस पर महसूस की जा सकती हैं जो कि औद्योगिक युग के पूर्व का स्तर है, तो 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पर तो परिस्थितियां और खराब होती जाएंगी। अब हमें क्या करना होगा? एक बात एकदम स्पष्ट है कि हालात बद से बदतर होते जाएंगे। सच तो यह है कि हम 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे नहीं रह सकते। एक वक्त था जब इस तापवृद्धि को काफी हद तक सुरक्षित माना गया था
हम बहुत तेजी से उत्सर्जन और तापमान के सभी अवरोध तोडऩे की ओर बढ़ रहे हैं लेकिन मुद्दा यह है कि अब जबकि अमीरों पर भी जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा है और ताप वृद्धि और जलवायु परिवर्तन का संबंध स्पष्ट नजर आ रहा है। इसके बावजूद गुस्से का निशाना भारत जैसे उभरते देशों के नए अमीर होते हुए लोगों को बनाया जाएगा। द इकनॉमिस्ट ने हाल ही में एक आलेख में बताया है कि कैसे सन 1800 के बाद पहली बार ब्रिटेन ने अपना पहला कोयला मुक्त दिवस मनाया जबकि भारत लगातार कोयला जला रहा है।
आज वातावरण में जो भी उत्सर्जन मौजूद है, हम उसके पीडि़त नहीं उसकी वजह हैं। सच तो यह है कि भारत और चीन कोयला जलाने से होने वाले उत्सर्जन के नुकसान से परिचित हैं क्योंकि दोनों देश वायु प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं। भारत में हमें पुराने पड़ चुके और प्रदूषण फैलाने वाले ताप बिजली घरों को बंद करने की आवश्यकता है। दिल्ली के बदरपुर में स्थित संयंत्र को इन जाड़ों में बंद कर दिया जाएगा। नए उत्सर्जन मानकों का क्रियान्वयन जल्दी से जल्दी किया जाएगा। पेट कोक पर पहले ही प्रतिबंध लगाया जा चुका है।
अमेरिका से इसके आयात पर भी रोक लग चुकी है। अब हमें नवीकरणीय ऊर्जा या प्राकृतिक गैस जैसे स्वच्छ ईंधन के इस्तेमाल की दिशा में बढऩा होगा। यह जरूरी है और हम इस दिशा में आगे बढ़ेंगे। ऐसा करना जलवायु परिवर्तन की वजह से आवश्यक नहीं है बल्कि वायु प्रदूषण कम करने के लिए भी यह जरूरी है। परंतु तथ्य यह है कि दुनिया का कार्बन बजट समाप्त हो चुका है। पहले से अमीर देशों ने अपनी वृद्घि के लिए इसका इस्तेमाल कर लिया है। अब कुछ भी शेष नहीं है तो हमसे त्याग करने को कहा जा रहा है
प्रत्युत्तर भी तैयार है। पहले हमसे अपराधबोध और पश्चाताप की भाषा बचाव का तरीका है क्योंकि यह कहीं नहीं ले जाती। उसके बाद हमसे कहा जाएगा कि अगर समस्या अमीरों द्वारा बनाई गई है तो भी हमें इस रास्ते पर चलना चाहिए। हम पर जिम्मेदारी है। यह सवाल हमारे बच्चों और जलवायु परिवर्तन के पीडि़तों का है। यह दुनिया के गरीबों और वंचितों का है।
समस्या यह भी है कि दुनिया अभी जीवाश्म ईंधन से अपना लगाव कम नहीं कर पा रही है। नवीकरणीय ऊर्जा की बात करें तो जर्मनी के अलावा अभी भी आपूर्ति बहुत कम है। दरअसल बीते वर्ष कोयले की मांग में इजाफा देखने को मिला। तेल और गैस में निवेश बढ़ा और जलवायु परिवर्तन संबंधी तमाम उपाय अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। यह कारगर नहीं साबित हुआ। परंतु हमारी सरकार सही ढंग से काम नहीं कर पा रही है।
सच तो यह है कि भारत जैसे देशों को आगे बढक़र जलवायु परिवर्तन की आर्थिक और मनुष्यगत लागत पर बात करनी चाहिए। यह वैश्विक मंच पर एक त्रासदी की तरह घटित हो रही हैं। हमें यह मांग करनी चाहिए कि दुनिया इस दिशा में तेजी से कार्रवाई करे। जब हम दुनिया को जलवायु परिवर्तन पर गंभीरता से आगे बढ़ाना चाहते हैं तो हमें सह-लाभ के लिए अपनी योजनाओं को भी आगे बढ़ाना चाहिए। हम स्थानीय और वैश्विक पर्यावरण को सुधारने के लिए क्या कर सकते हैं? हमारे पास दिखाने के लिए कुछ तो होना चाहिए। हमें अपने शब्दों और कदमों में निर्णायक होना होगा। जलवायु परिवर्तन के जोखिम से जूझ रही दुनिया में मौजूदा रुख काम नहीं आएगा
#Business_Stadard