केमिकल प्लांट से गैस का रिसना

Context

आंध्र प्रदेश के आरआर वेंकटपुरम गांव में स्थित केमिकल प्लांट से गैस का रिसना जितना चिंताजनक है, उससे कहीं अधिक दुखद है, गैस रिसाव से लोगों की मौत। रात करीब तीन बजे इस गांव में हुए रिसाव का असर आसपास के कम से कम 20 गांवों तक पहुंच गया। लोगों को जानकारी नहीं थी, वे गैस से बचने के लिए घरों में छिपने की बजाय बेचैन होकर सड़कों पर दौड़ पडे़ और जहरीली गैस की चपेट में आ गए।

Effort of Andhra Government

बचाव के तमाम इंतजाम किए जा रहे हैं, आपदा प्रबंधन की टीमें तैनात कर दी गई हैं और शाम होने से पहले ही गैस के खतरे को पूरी तरह काबू में कर लिया गया है। इस हादसे पर प्रधानमंत्री सहित अनेक विदेशी नेताओं ने भी दुख जताया है। दक्षिण कोरिया की उस कंपनी और दक्षिण कोरिया के राजदूत ने भी हादसे को दुखद बताते हुए अपनी संवेदनाओं का इजहार किया है।

कोरोना का कहर झेल रहे देश में हुआ यह हादसा हमें कई प्रकार से सोचने को विवश करता है और जांच-समीक्षा की भी मांग करता है। अव्वल तो यह हादसा दूसरे ऐसे रासायनिक और प्लास्टिक बनाने वाले कारखानों के लिए सबक है। लॉकडाउन में बंद कारखानों में अब जब काम तेज होगा, तो उनमें पूरी सावधानी बरतने की जरूरत है। बताया जा रहा है कि इस कारखाने में करीब 40 दिनों के बाद काम शुरू हुआ था। जाहिर है, इतने दिनों से बंद पड़ी गैस की टंकियां और रसायन भंडार खास तवज्जो के साथ नई शुरुआत मांगेंगे। ऐसे तमाम कारखानों के लिए न केवल दिशा-निर्देश जारी होने चाहिए, बल्कि इन कारखानों के प्रबंधकों को स्वयं भी सतर्कता के साथ फिर काम चालू करना चाहिए।

Learning from Past
इस गैस रिसाव से भोपाल गैस त्रासदी की याद आना स्वाभाविक है। लगभग 36 साल पहले हुआ वह हादसा लोगों की दिमाग से निकला नहीं है, लेकिन जिस तरह की समझ और सावधानी उस हादसे के बाद से हमारे औद्योगिक व रिहायशी व्यवहार में आनी चाहिए थी, वह नदारद है। क्या भोपाल त्रासदी के बाद तैयार किए गए तमाम बचाव या आपदा प्रबंधन के दिशा-निर्देश हम भूल गए? क्या ऐसे जहरीले कारखानों के पास बसे लोगों को जागरूक या प्रशिक्षित नहीं किया जा रहा है? क्या ऐसे कारखानों के आसपास जागरूकता प्रयास केवल दिखावा हैं? डॉक्टर और विशेषज्ञ यह फिर याद दिला रहे हैं कि किसी गैस की दुर्गंध होने पर गीले कपडे़ से नाक, मुंह ढककर, खिड़की-दरवाजे बंद करके अपने घर में छिप जाना भी एक बुनियादी बचाव उपाय हो सकता है। 

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अब नए सिरे से यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे कारखाने आबादी के बीच न रहें। भोपाल स्थित Union Carbide  का कारखाना भी पुराने शहर के बीचो-बीच स्थित था और त्रासदी की वजह बना था। यह हादसा भी हमें संकेत कर रहा है कि ऐसे कारखाने आबादी के बीच रहे, तो कभी भी जानलेवा साबित हो सकते हैं। ऐसे कारखाने कहीं भी खोलने की बजाय एक निश्चित क्षेत्र में सुरक्षित ढंग से बनाए जाएं। सरकारों, कंपनियों और स्थानीय प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे हादसे देश में फिर कहीं न हों।

Reference: Hindustantimes

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