FACTS
- देश की 40 फीसदी आबादी गंगा पर निर्भर है।
- गंगोत्री से गंगासागर के बीच 2,525 किलोमीटर की दूरी में 116 ऐसे शहर हैं, जिनकी आबादी एक लाख से 30 लाख तक है। गंगा को सही अर्थों में पहचानने वालों की दृष्टि में माता गंगा साध्य हैं
गंगा साधन कभी भी नहीं रही हैं। वर्तमान में गंगाजी को साधन मान लिया गया है और साधन के रूप में उन्हें संरक्षित और सुरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है।
COVID and Myths of Clean GANGA
जब से कोरोना के कारण लॉकडाउन हुआ है, तब से ही यह प्रचार किया जा रहा है कि गंगा-जल शुद्ध हो गया है, जबकि संकट मोचन फाउंडेशन द्वारा किए जाने वाले वैज्ञानिक परीक्षण किसी दूसरी तरफ ही इशारा कर रहे हैं।
CAUSES OF GANGA POLLUTION
गंगा के प्रदूषित होने के दो मुख्य कारण हैं-
- एक तो औद्योगिक अवजल और
- दूसरा, गंगा किनारे बसे शहरों से निकलने वाला मलजल।
ऐसा नहीं है कि 2,525 किलोमीटर के दायरे में हर स्थान पर गंगा प्रदूषित हैं। गंगा में औद्योगिक अवजल बिना शोधन के न गिराया जाए, इसके लिए कई कड़े नियम बनाए गए हैं। यहां तक कि नियमों का पालन न करने वाली औद्योगिक इकाई को बंद कर देने तक का प्रावधान है, लेकिन धन-बल के जोर से उन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। इससे भी अधिक गंभीर कारण मलजल है और उसका निकलना जारी है। अगर बनारस की बात कहूं, तो सिर्फ बनारस में ही साढ़े तीन सौ एमएलडी मलजल रोज गंगा में मिल रहा है। बनारस में तो कानपुर की भांति औद्योगिक इकाइयां भी नहीं हैं, लेकिन यहां गंगा के जल में खतरनाक संकेत मिल रहे हैं। गंगा-जल में प्रदूषण कम होने वाली हर रिपोर्ट में सिर्फ डिजॉल्व ऑक्सीजन बढ़ने की बात की जा रही है। डिजॉल्व ऑक्सीजन बढ़ने का कारण यह है कि इन दिनों गंगा में न तो स्नान करने वालों की अधिकता है और न ही मोटरबोट का संचालन हो रहा है। इन दोनों वजहों से गंगा में मौजूद मिट्टी और बालू बार-बार घुलकर गंगा-जल को मटमैला नहीं कर रहे, इससे सूर्य की किरणें जल में अधिक गहराई तक जा रही हैं और प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया अधिक हो रही है। वहीं फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया के बारे में कोई चर्चा नहीं हो रही है। काशी में औद्योगिक इकाई न होने के बाद भी फीकल कोलीफॉर्म काउंट सामान्य दिनों की तुलना में डेढ़ गुना बढ़ गया है। यह अत्यंत विचारणीय और गंभीर संकेत है।
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नमामि गंगे परियोजना में क्या हैं अड़चनें:
What efforts must be adopted
भविष्य में गंगा को बचाए रखना है, तो गंगा में किसी भी स्थिति में मलजल को जाने से रोकना ही होगा। गंगा किनारे बनाए गए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट में मलजल के शोधन की जो व्यवस्था है, उसमें भी कोलीफॉर्म बैक्टीरिया को मारने का कोई प्रबंध नहीं किया गया है। वर्ष 1986 में आरंभ हुए गंगा एक्शन प्लान में यह तय किया गया था कि मलजल का शोधन करने के बाद भी उसे गंगा में नहीं छोड़ना है, बल्कि उसका कृषि सहित अन्य कार्यों में उपयोग करना है। दुर्भाग्य से न तो तब ऐसा किया जा सका और न ही अब ऐसा किया जा रहा है। शोधित मलजल अब भी गंगा में ही गिराया जा रहा है। यदि हम चाहते हैं कि गंगा से हमारा नाता पहले जैसा बना रहे, वह हमारे लिए पूर्व की भांति ही आध्यात्मिक और भौतिक रूप से कल्याणकारी बनी रहें, तो गंगा और मलजल का नाता पूरी तरह तोड़ना ही होगा। हमें गंगा को मलजल गिराने वाला ‘डस्टबीन’ मानना बंद करना होगा।
गंगा में स्वयं के शोधन की अद्वितीय क्षमता है। गौर कीजिए, ऐसी क्षमता संसार की किसी भी दूसरी जलधारा में नहीं है, लेकिन यह प्रक्रिया आगे भी तभी बनी रह सकती है, जब गंगा की अविरलता को प्रभावित होने से रोका जाएगा। गंगा की अविरलता में बाधा और मलजल का गिराया जाना इसके प्रदूषण मुक्त होने की राह में दो सबसे बड़ी बाधाएं हैं।
GS PAPER III
What are the reason of filthy state of Indian river ecosystem . What initiatives has been taken by GoI to make clean this ecosystem and what more can be done
भारतीय नदी पारिस्थितिकी तंत्र की गंदी स्थिति का कारण क्या हैं। इस पारिस्थितिकी तंत्र को स्वच्छ बनाने के लिए भारत सरकार ने क्या पहल की है और इससे अधिक क्या किया जा सकता है?