भारत और कनाडा के बीच लंबे समय से अच्छे संबंध हैं और कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की भारत यात्रा इन संबंधों का जश्न मनाने और इन्हें एक अगले स्तर पर ले जाने का मौका होनी चाहिए थी. लेकिन ऐसा लग रहा कि दुनिया के सबसे दुलारे नेताओं में शुमार ट्रूडो के लिए यह यात्रा कहीं अपनी इस छवि की चमक फीकी करने वाली साबित न हो जाए.
Reason
कूटनीतिज्ञों के मुताबिक कनाडाई प्रधानमंत्री की यह यात्रा जगह-जगह फोटो खिंचाने के लिहाज से तो बड़ी प्रभावी मानी जा सकती है, लेकिन दोनों देशों के बीच संबंध आगे बढ़ाने के मामले में इसको हल्का ही कहा जाएगा. इसकी वाजिब वजहें भी हैं. ट्रूडो आठ दिन की यात्रा पर हैं, जिसमें से सिर्फ आधा दिन ही आधिकारिक कामों के लिए रखा गया है. वहीं दूसरी तरफ यह बात तो चर्चा में है ही कि प्रधानमंत्री ने प्रोटोकॉल तोड़ते हुए जिस तरह बराक ओबामा या आबूधाबी के राजकुमार का स्वागत किया था, उनसे गर्मजोशी दिखाते हुए गले मिले थे, वैसी तवज्जो ट्रूडो को नहीं दी गई.
हाल के सालों में सिख चरमपंथियों के मामले ने दोनों देशों के बीच संबंधों को प्रभावित किया है. पिछले साल ट्रूडो खुद टोरंटो में आयोजित एक कार्यक्रम में देखे गए थे जहां खालिस्तानी झंडे लहराए जा रहे थे और दूसरे अलगाववादी संगठनों के सदस्य मौजूद थे. बताया जाता है कि भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को यह बात खटकी थी. इसके अलावा कनाडा के ओंटारियो प्रांत की विधानसभा द्वारा 1984 के सिख विरोधी दंगों को ‘जातीय सफाया’ मानने का प्रस्ताव पारित होना भी नई दिल्ली की तल्खी बढ़ाने वाला कदम था.
Domestic politics of Canada
यह दलील दी जाती है कि ट्रूडो और कनाडा के दूसरे राजनेता इन मुद्दों पर विरोधी रुख अख्तियार नहीं कर सकते क्योंकि वहां करीब 14 लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं. इनमें एक बड़ी आबादी सिखों की है और कोई भी राजनीतिक पार्टी इन्हें नाराज नहीं करना चाहती. इस समय कनाडा की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख एक सिख जगमीत सिंह ही हैं और उनके मुकाबले ड्रूडो की पार्टी भारतीय समुदाय के बीच अपनी पकड़ खोना नहीं चाहती.
हालांकि कनाडाई मीडिया का एक वर्ग यह भी मानता है कि ट्रूडो सिखों में कट्टरपंथ के उभार की अनदेखी करके खुद अपने लिए ही जोखिम बढ़ा रहे हैं. हाल ही में यहां एक अखबार ने अपने संपादकीय में 1985 की उस घटना का हवाला दिया है जब आतंकवादियों ने एयर इंडिया की फ्लाइट को निशाना बनाया था. वह 9/11 के पहले का सबसे खतरनाक आतंकवादी हमला था जब किसी विमान को निशाना बनाया गया. इस हमले की योजना कनाडा में ही बनी थी और इसमें 329 लोग मारे गए थे. इनमें से 268 कनाडा के ही नागरिक थे.
कनाडा के कुछ गुरुद्वारों में आज भी इस हमले के साजिशकर्ताओं को नायकों की तरह पेश किया जाता है. जाहिर है कि इन परिस्थितियों में ट्रूडो का यह सिर्फ यह बयान पर्याप्त नहीं माना जा सकता कि कनाडा ‘मजबूत और एक’ भारत का समर्थन करता है. परमाणु ऊर्जा से लेकर कारोबार के अन्य क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच अनंत संभावनाएं हैं और अगर कनाडाई प्रधानमंत्री इन क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को अगले स्तर पर ले जाना चाहते हैं तो उन्हें भारत की चिंताओं पर ध्यान देना होगा
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