पीडीएस को खत्म कर देगा डीबीटी

DBT & how affecting PDS
#Prabht_Khabar
Jharakhand & Death
झारखंड में हाल ही में हुई भुखमरी से मौतों से जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) की अहमियत उजागर होती है. राज्य में लाखों परिवार भूख की कगार पर रह रहे हैं और जन पीडीएस उनके लिए जीवन की डोर की तरह है. एक हल्के से झटके से यह डोर टूट सकती है और इनको भुखमरी का सामना करना पड़ सकता है. पिछले साल जब पीडीएस में आधार द्वारा अंगूठे का सत्यापन अनिवार्य किया गया, कई लोगों को भुखमरी से जूझना पड़ा है.
DBT & PDS
उस गलती से सीखने के बजाय सरकार अब उससे भी बड़े विकल्प का प्रयोग कर रही है. यह है, पीडीएस में ‘डाइरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर’ (डीबीटी) लाना. 
    इस नये सिस्टम में, लोगों को बैंक से खाद्य सब्सिडी (31.6 रुपये प्रति किलो) की निकासी के बाद सरकारी राशन की दुकान पर जाकर 32.6 रुपये प्रति किलो की दर से चावल खरीदना पड़ता है. 
    पहले लोग राशन की दुकान से एक रुपये प्रति किलो की दर से वही चावल खरीद रहे थे. इस नये प्रयोग का नाम ‘डीबीटी’ रखना असंगत है, क्योंकि वास्तव में यह सब्सिडी देने का बहुत ही इनडाइरेक्ट तरीका है- चावल वही, घर से खर्च होनेवाली राशि भी वही!
डीबीटी को रांची जिले के नगड़ी प्रखंड में लागू किया गया है. यदि इस यह सफल होता है, तो माना जा रहा है कि राज्य सरकार इसे पूरे राज्य में लागू करेगी. खाद्य मंत्री ने इसका प्रचार करना शुरू कर दिया है, इसलिए लग रहा है कि सरकार ने पहले से ही इसे सफल मान कर चल रही है, मगर लोगों की तकलीफ पर भी चर्चा होनी चाहिए.
How Successful DBT is?
नगड़ी में यह बात पता करने की है कि डीबीटी अपने उद्देश्य में कितना सफल है और ज्यादातर लोगों में इसे लेकर प्रतिक्रिया क्या है. सबसे बड़ी चुनौती यह है कि लोगों का बैंक, प्रज्ञा केंद्र और राशन दुकान के बीच, भागते- भागते बहुत समय बर्बाद हो रहा है. काफी लोगों के लिए इस प्रक्रिया की तीन कड़ियां हैं : 
    पहला, बैंक से पता करना कि पैसा आया कि नहीं (यह सुविधा प्रज्ञा केंद्र में नहीं है) और इसे पासबुक में अपडेट करवाना
    दूसरा प्रज्ञा केंद्र से पैसे की निकासी करना और आखिर में, राशन दुकान पर जाकर, अपना एक रुपया जोड़कर अनाज खरीदना. गौर कीजिए कि राशन दुकान से सब्सिडी की राशि (31.6 रुपये प्रति किलो) वापस सरकार के पास जमा होती है! 
    ज्यादातर लोगों के लिए बैंक और प्रज्ञा केंद्र बहुत दूर हैं. बूढ़े या विकलांग के लिए तो यह नयी प्रणाली भयानक सपने जैसा है.
CASE STUDY
सहेर गांव में हमें एक महिला मिलीं, जिनके खाते में पैसा आता है. लेकिन, वह इतनी बूढ़ी हैं कि उन्हें मोटरसाइकिल पर जब बैंक लेकर जाना होता है, तो तीन लोग चलते हैं- चालक, खुद महिला और उन्हें पकड़ने के लिए तीसरा व्यक्ति.
लोगों की कठिनाई पिछले कुछ हफ्तों में ज्यादा ही भयावह थी, जब उन्हें नयी प्रणाली के बारे में सीखना था. कई परिवारों में एक से ज्यादा बैंक खाते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि सब्सिडी किस में आयेगी? नगड़ी में जिस बैंक मैनेजर से हम मिले, उन्हें भी नहीं पता था कि सरकार सब्सिडी के लिए खाते का चयन कैसे करती है? इस वजह से लोग इधर-उधर भटक रहे हैं.
नयी सिस्टम से हो रही परेशानी का यह केवल एक उदाहरण है. लोगों के मन में नयी प्रणाली के नियमों के बारे में अभी स्पष्टता नहीं है.उदाहरण के तौर पर, उन्हें ऐसे लगता है कि यदि सब्सिडी नहीं आयी और किसी महीने वह चावल नहीं खरीद पाये, तो उनका राशन कार्ड काट दिया जायेगा. इस डर के चलते कुछ लोग परिवार वालों से कर्ज लेकर पीडीएस का चावल खरीद रहे हैं. पिछले साल मुख्यमंत्री ने एलान किया था कि नगड़ी प्रखंड झारखंड का सबसे पहला ‘कैशलेस ब्लॉक’ होगा और अब सरकार ही उस प्रखंड में लोगों को जरूरत से ज्यादा कैश संभालने पर मजबूर कर रही है.
केवल राशन कार्डधारी ही नहीं, इस व्यवस्था से पीडीएस डीलर भी परेशान हैं. डीबीटी सिस्टम में अनाज बांटने में पहले से ज्यादा दिन लगते हैं, क्योंकि जैसे-जैसे लोग पैसे की निकासी कर लेते हैं, वैसे-वैसे रोज दो-चार लोग दुकान पर आते हैं. नयी प्रणाली ने बैंक का काम भी बढ़ा दिया है.
नगड़ी में लोगों की व्यापक परेशानी ने विपक्ष की पार्टियों को एक बड़ा मौका तोहफे के रूप में प्रदान किया है. जिस दिन हम नगड़ी गये, प्रखंड कार्यालय के बाहर ही झारखंड मुक्ति मोर्चा का प्रदर्शन चल रहा था. उसके कुछ हफ्तों बाद ही (फरवरी, 2018 को) सीपीएम ने प्रदर्शन की घोषणा की है.
अगर राज्य सरकार प्रचार बंद नहीं करती है और इस मुद्दे के व्यावहारिक पहलुओं पर ध्यान नहीं देती है, तो झारखंड एक नयी आपदा की और बढ़ेगा. सरकार की मंशा नगड़ी प्रयोग को आगे बढ़ाना है, जहां बैंकिंग व्यवस्था और भी कमजोर है. ऐसे में हजारों की संख्या में लोग, खासकर कमजोर लोग, नयी प्रणाली से नहीं जूझ पायेंगे.
Concluding mark
इस बात की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि उन्हें भूख का सामना भी करना पड़ सकता है. उम्मीद है कि सरकार और जनता के बीच इस मुद्दे पर जल्द ही संवाद का मंच बनेगा और इस सिस्टम के व्यावहारिक पक्ष को समझ कर कोई सुधारवादी और ठोस पहल की जा सकेगी, ताकि जनता के भोजन के अिधकार को सुनिश्चित किया जा सके. अन्यथा अगले चुनाव में लोग के पास सरकार को इसका कड़ा जवाब देने का बड़ा मौका होगा.
 

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