#Dainik_Tribune
जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं संवर्धन परिषद (UNCTAD) की 2017 की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत तथा चीन अब दुनिया के विकास ध्रुव नहीं रहे। वैश्विक अर्थव्यवस्था को इस वक्त प्रोत्साहन की दरकार है क्योंकि इसकी विकास दर 2.5 प्रतिशत तक नीचे आ गई है जबकि आर्थिक संकट से पूर्व के दौर में यह दर 3.2 प्रतिशत के स्तर पर थी और तब भारत से भी इसे सहारा मिला था। लेकिन आज भारत की अपनी विकास दर चीन से भी नीचे चली गई है।
Taking Lesson from China
पिछले करीब तीन दशक में जहां चीन की विकास दर काफी ऊंची रही, वहीं अब उसे अधिक वेतन तथा ऊंची लागत जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत की तो कहानी ही अलग है। औद्योगिक तथा निर्यात क्षेत्र का विकास मंद पड़ गया है और सेवा क्षेत्र को भी पिछले करीब एक साल से समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। नोटबंदी तथा जीएसटी ने असंगठित क्षेत्र की कमर तोड़ कर रख दी है और इसका उत्पादन भी काफी कम हो गया है। असंगठित क्षेत्र के उत्पादन को सही तरीके से मापा जायेगा तो इससे जीडीपी में 2017-18 की अप्रैल से जून की तिमाही की 5.7 प्रतिशत के मुकाबले और भी तेज गिरावट नजर आयेगी।
Unorganised Sector & Contribution in India
असंगठित क्षेत्र अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण भाग है।
असंठित क्षेत्र की इकाइयों वाले राष्ट्रीय आयोग (एनसीईयूएस) की रिपोर्ट (2009) के मुताबिक जीडीपी में इसका योगदान 50 प्रतिशत है।
असंगठित क्षेत्र हालांकि 90 प्रतिशत श्रमिक वर्ग को रोजगार देता है लेकिन इस क्षेत्र में काम के हालात बड़े निराशाजनक हैं और फिर रही-सही कसर नोटबंदी ने पूरी कर दी है।
Condition of this sector
भारत में असंगठित क्षेत्र तथा यहां काम के हालात के बारे में एनएसएसओं के 2011-12 के 68वे दौर के मुताबिक इस क्षेत्र के 80 प्रतिशत कर्मचारियों के पास कोई लिखित अनुबंध नहीं होता है
72 प्रतिशत को सामाजिक सुरक्षा का कोई लाभ नहीं मिलता है।
असंगठित क्षेत्र के कर्मचारी की रोज की औसत कमाई 225 रुपए जबकि संगठित क्षेत्र के कर्मचारी की औसत दैनिक आय 401 रुपए है।
असंगठित क्षेत्र के तीन चौथाई कर्मचारी 6 से कम कर्मचारियों वाली इकाइयों में काम करते हैं। असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों में उत्पादन, निर्माण, थोक एवं खुदरा व्यापार, ट्रांसपोर्ट कुक, नौकरानी, ड्राइवर तथा सिक्योरिटी गार्ड के रूप में काम करने वाले कर्मचारी और कृषि मजदूर आते हैं।
बाल श्रमिक भी इसी वर्ग में आते हैं। असंगठित क्षेत्र के अधिकतर कर्मचारियों को पेंशन, ग्रेच्युटी, जीवन तथा स्वास्थ्य बीमा और मातृत्व अवकाश जैसी सुविधाओं के लाभ से वंचित रखा जाता है। ये लोग समाज के सबसे असुरक्षित वर्ग हैं।
असंगठित क्षेत्र नकदी पर आश्रित है और अगर इनमें से किसी का कोई बैंक खाता होता भी है तो भी वे मुश्किल से ही इसे चला पाते हैं।
नोटबंदी के चलते असंगठित क्षेत्र के हजारों कर्मचारियों की नौकरी चली गई जिस कारण इनमें से बड़ी संख्या में कर्मचारी अपने घरों को लौटने को विवश हो गये।
इनमें से कइयों को तो कांग्रेस सरकार द्वारा 2005 में शुरू की गई रोजगार गारंटी योजना मनरेगा के तहत अपने गांव में ही रोजगार मिल गया। यहां योजना असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए बड़ी मददगार साबित हुई और इनमें से तो कई कर्मचारियों ने उनके जीवन में अचानक हुई उथल-पुथल के चलते काम के लिए दोबारा शहरों का रुख किया ही नहीं।
GST & Its Impact on Unorganised Sector
इसी तरह जीएसटी भी असंगठित क्षेत्र की समझ में नहीं आ रहा।
कई इकाइयों के मालिक अर्धशिक्षित होने के चलते डिजिटल जीएसटी पेपरवर्क के अभ्यस्त नहीं हैं। छोटे उत्पादकों तथा निर्यातकों से संबंधित ऐसी कई खबरें हैं कि उन्हें लागत के बारे में रिटर्न भरने में मुश्किल पेश आ रही है, जिसके चलते बाद में उन्हें खाते में जमा रकम का हिसाब रखने में भी परेशानी होगी।
जीएसटी पेपरवर्क के चलते उनकी कार्यशील पूंजी पहले ही रुक कर रह गई है।
असंगठित क्षेत्र के मध्यम दर्जे के कारोबारियों को हैसियत से ज्यादा खर्च कर अकाउंटेंट की सेवाएं लेनी पड़ रही हैं।
इन सब का उत्पादन की विकास दर पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
खैर, जो भी हो, असंगठित क्षेत्र भविष्य में पूरी तरह खत्म नहीं हो पायेगा क्योंकि संगठित क्षेत्र में भी पर्याप्त संख्या में नौकरियों का सृजन नहीं हो पा रहा है।
2016 में सिर्फ डेढ़ लाख नयी नौकरियां सृजित हो पायीं और अगर सेवा क्षेत्र की नौकरियों को भी जोड़ लिया जाये तो 2015 में भी केवल 2.31 लाख नौकरियां सृजित हो पाई थीं। संगठित क्षेत्र को मुकाबले में टिके रहने के लिए पूंजी आधारित उत्पादन तकनीकें अपनानी पड़ीं। देश में हर साल श्रमिक बल की संख्या में एक करोड़ का इजाफा हो रहा है, ऐसे में भारत को हर महीने दस लाख नौकरियां सृजित करनी होंगी।
Other Problem faced by Unorganised Sector
असंगठित क्षेत्र को सरकारी बैंकों से कर्ज हासिल करने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है क्योंकि बैंक पहले ही एनपीए के बोझ तले दबे हुए हैं।
असंगठित क्षेत्र को भले ही इस तरह की कई मुश्किलों से दो-चार होना पड़ रहा है लेकिन फिर भी भविष्य में इसका महत्व कम होने वाला नहीं है।
असहनीय मुश्किलों के चलते कुछ हजार लोगों को अवश्य दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। असंगठित क्षेत्र में यहां तक कि न्यूनतम वेतन, जो कि वैश्विक मानकों के हिसाब से पहले ही बहुत कम है, और जो कर्मचारियों को दिया जाना लाजिमी है, उतना भी नहीं दिया जाता है।
अधिकतर कर्मचारियों को बोनस और बीमारी की स्थिति में छुट्टी का लाभ भी नहीं दिया जाता है तथा न ही उनका कोई स्वास्थ्य बीमा किया जाता है। एनसीईयूएस की रिपोर्ट के मुताबिक परिवार में किसी एक बड़ी बीमारी के चलते हर साल 4.70 करोड़ लोग गरीबी के चंगुल में फंस जाते हैं।
Government schemes for Unorganised sector
सरकार ने असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से अधिकार-आधारित दृष्टिकोण का संकल्प करते हुए 2014 में कम प्रीमियम वाली जीवन बीमा, दुर्घटना बीमा तथा पेंशन स्कीमें शुरू की थीं। सरकार ने सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा कवच उपलब्ध करवाने का भी वादा किया है। अगर स्वास्थ्य बीमा और सरकारी अस्पतालों में कैशलेस इलाज की सुविधा हकीकत बन पाती हैं तो यह सरकार की एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
वर्तमान में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजट के आवंटन में कोई सुधार नहीं हुआ है और यह अभी भी जीडीपी के 2 प्रतिशत से नीचे है। एम्स तथा अन्य बड़े सरकारी अस्पतालों में मरीजों की कतारें रोज लंबी होती जा रही हैं। भारत में एक औसत व्यक्ति के लिए खुद अपनी जेब से इलाज करवाने का खर्च दुनिया में सबसे ज्यादा है। भारत में प्रत्येक 1000 लोगों पर 0.7 डॉक्टरों तथा अस्पतालों में प्रत्येक 1000 लोगों पर 0.5 बिस्तरों का अनुपात है, जो कि ब्रिक्स के सभी सदस्य देशों के मुकाबले सबसे कम है। इस वजह से प्राइवेट अस्पताल खूब चांदी कूट रहे हैं तथा उनकी स्वास्थ्य सेवाओं तथा फीस पर शायद ही कोई नियम लागू होता है