​​​​​​​ आंतंकी पोषित पाक पर FATF सख्त

Financial Action Task Force यानी एफएटीएफ ने पाकिस्तान को ग्रेसूची में डालने की तैयारी कर ली है। यह उन देशों की ऐसी निगरानी सूची होती है जो आतंकी समूहों तक वित्तीय संसाधनों की आपूर्ति को सक्षम रूप से नहीं रोक पाते।

How FATF’s this move will hamper Pak Economy

एक आर्थिक कदम के रूप में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को इस फैसले की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी, क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेनदेन मुश्किल और महंगे हो जाएंगे। विशेषकर पाकिस्तानी बैकों में वैश्विक भरोसे में कमी आएगी। साथ ही ऐसे लेनदेन गहन निगरानी के दायरे में भी आ जाएंगे और पाकिस्तान के सामान्य अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेनदेन में देरी भी होगी। पाकिस्तान किसी भी सूरत में ऐसी स्थिति में नहीं पड़ना चाहेगा खासतौर से तब जब वह एफएटीएफ के निशाने पर आकर पहले भी इसका खामियाजा भुगत चुका है जब 2012 से 2015 के बीच उसे ग्रेसूची में डाल दिया गया था। एफएटीएफ के निर्णय के जहां पाकिस्तान के लिए गंभीर आर्थिक निहितार्थ हैं वहीं इसके राजनीतिक एवं कूटनीतिक हालात भी उसके लिए और भी ज्यादा चिंता का सबब हैं।

चीन ने पाक को निगरानी सूची में डालने के प्रस्ताव का विरोध किया

पेरिस में हुई हालिया बैठक में पाकिस्तान पर शिकंजा कसने की तैयारी से पहले शुरुआती चर्चा में चीन, सऊदी अरब और तुर्की ने पाक को निगरानी सूची में डालने के प्रस्ताव का विरोध किया। विरोध को लेकर उनकी दलील यही थी कि पाकिस्तान को तीन महीनों की मोहलत दी जाए ताकि वह बैंकिंग क्षेत्र में जरूरी कदम उठाकर एफएटीएफ को संतुष्ट कर सके और यदि इसके बाद भी वह इस पैमाने पर खरा न उतरे तो उसे निगरानी सूची में डाला जाए। पाकिस्तान ने सोचा कि अपने मित्रों की मदद से उसने यह मोहलत हासिल कर ली है। यहां तक कि पाकिस्तानी विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने भी इस मोर्चे पर अपने मुल्क की कामयाबी को लेकर ट्वीट भी कर दिया। वहीं अमेरिका पाकिस्तान को ऐसी किसी भी रियायत के लिए तैयार नहीं था। उसने सऊदी अरब को मजबूर किया कि वह पाकिस्तान को घेरने में उसकी मदद करे। उसने पाकिस्तान को लेकर एक और बैठक बुलाने की मांग की। ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने अमेरिका का समर्थन किया। वहीं चीन भी दीवार पर लिखी इबारत को भांप चुका था।


पाकिस्तान एफएटीएफ के निशाने पर

पाकिस्तानी मीडिया में आई एक रिपोर्ट के अनुसार चीन ने पाकिस्तान को सूचित किया कि वह अगले दौर में चर्चा और मतदान से किनारा करेगा। अब केवल तुर्की पाकिस्तान के साथ रह गया। हालिया दौर में अमेरिका के साथ तुर्की के रिश्ते भी कुछ तल्ख हुए हैं। आखिरकार एफएटीएफ ने पाकिस्तान को तब तक के लिए निगरानी सूची में डालने का फैसला किया जब तक कि वह वित्तीय संस्थानों को पूरी तरह चाकचौबंद कर यह सुनिश्चित नहीं करता कि वे किसी भी तरह आतंकियों द्वारा इस्तेमाल होने की आशंकाओं को खारिज करेंगे। चूंकि इस प्रक्रिया में तीन महीने का समय लगेगा तो अंतिम फैसला एफएटीएफ की अगली बैठक में ही लिया जाएगा। यदि पाकिस्तान कोई स्वीकार्य योजना पेश नहीं करता तो एफएटीएफ उसे काली सूची में भी डाल सकता है। फिलहाल केवल ईरान और उत्तरी कोरिया ही काली सूची में शामिल हैं।
चीन एफएटीएफ को लेकर अमेरिका से पंगा मोल नहीं लेगा

सुरक्षा और विदेश नीति को संचालित करने वाली पाकिस्तानी सेना राहत के लिए हमेशा अपने सदाबहार दोस्त चीन पर भरोसा करती है। वह यह मानकर चल रही थी कि एफएटीएफ जैसी मुश्किल से चीन उसे बाहर निकाल लेगा, लेकिन इस बार चीन ने ऐसा नहीं किया। उसने फैसला किया कि वह अमेरिका से पंगा मोल नहीं लेगा, क्योंकि शायद उसे कामयाबी भी न मिले। इसका अर्थ यह नहीं कि चीन सभी मामलों में पाकिस्तान को उसके हाल पर यूं ही छोड़ देगा।

क्या पाकिस्तान आतंकी संगठनों पर लगाम लगाएगा?

भारत को यह उम्मीद बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए कि मसूद अजहर को आतंकियों की सूची में डालने और भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों यानी एनएसजी में जगह दिलाने में वह किसी तरह की मदद करेगा। इसके बावजूद पाकिस्तान इससे जरूर सबक लेगा कि अगर अमेरिका उस पर दबाव बनाने को लेकर अपने रुख पर अड़ जाए तो फिर उसके मित्र भी उसकी मदद नहीं कर पाएंगे। क्या इसका अर्थ यह है कि पाकिस्तान लश्कर-ए-तोइबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों पर लगाम लगाएगा?

पाकिस्तान आतंकी नीति के चलते दुनिया भर में अलग-थलग पड़ सकता है

इस बारे में अभी कुछ कहना कठिन है, लेकिन एफएटीएफ की कार्रवाई के तुरंत बाद पाकिस्तान के सबसे प्रभावशाली अखबार डॉन के संपादकीय पर गौर करना खासा उपयोगी होगा जिसका मजमून कुछ इस तरह है, ‘अब यह लगातार स्पष्ट होता जा रहा है कि पाकिस्तान अपनी उस नीति के चलते दुनिया भर में अलग-थलग पड़ता जा रहा है जिसके तहत यह कहा जाता है कि वह अपनी आधिकारिक नीति में आतंकी कहे जाने वाले समूहों को प्रश्रय देता है।भारत भी दो दशकों से यही कहता आ रहा है। अब पाकिस्तान के सबसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र ने भी यह स्वीकार किया है। क्या पाकिस्तानी फौज के जनरल इस चेतावनी को गंभीरता से लेंगे? इसमें कोई संदेह नहीं कि अमेरिकी कार्रवाई पाकिस्तानी फौज को जरूर चिंता में डालेगी जो अभी तक यही माने बैठी थी कि राष्ट्रपति ट्रंप की तमाम कड़ी चेतावनियों के बावजूद उनकी अफगानिस्तान और दक्षिण एशिया नीति उनके पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों से ज्यादा अलग नहीं होगी। पाकिस्तानी सेना यह भी सोचकर चल रही थी कि ट्रंप इतना दबाव नहीं बढ़ाएंगे कि उसे दूसरे देशों में आतंक फैलाने वाले आतंकी समूहों पर लगाम लगानी पड़े।

पाकिस्तान के खिलाफ एफएटीएफ की कार्रवाई रंग लाएगी

एफएटीएफ बैठक में अमेरिकी प्रस्ताव दर्शाता है कि पाकिस्तानी जनरलों को कुछ न कुछ दिखावटी कदम जरूर उठाने होंगे, लेकिन क्या वे इन समूहों को जड़ से खत्म करने की सोचेंगे? जब तक इस मामले में कोई पुख्ता संकेत नहीं मिलते तब तक इस सवाल का जवाब नहीं ही होगा। इसकी तमाम वजहें हैं। पाकिस्तान की विदेश और रक्षा नीतियां भारत केंद्रित हैं। पाकिस्तान भारत को स्थाई खतरे और दुश्मन के तौर पर देखता है। भारत से तथाकथित खतरे की काट के लिए उसने ऐसा सुरक्षा सिद्धांत अपना लिया है जिसके एक सिरे पर परमाणु बम है तो दूसरे पर आतंकी समूह। ऐसा इसलिए, क्योंकि उसके सुरक्षा बल भारत से कमजोर हैं।

आतंकी समूहों ने पाकिस्तानी समाज और सियासत में गहरी जड़ें जमा ली हैं

आतंकी समूहों का इस्तेमाल उसके सुरक्षा सिद्धांत का अहम पहलू है। उनके जरिये पाकिस्तान भारत को रक्षात्मक बनाकर कश्मीर के मामले में दखल चाहता है। पाकिस्तानी सेना विकल्पहीनता की स्थिति में ही आतंकी समूहों को तिलांजलि देगी। एफएटीएफ की कार्रवाई दबाव बढ़ाएगी, लेकिन यह सेना में बदलाव के लिहाज से नाकाफी होगा। आतंकी समूहों ने पाकिस्तानी समाज-सियासत में भी गहरी जड़ें जमा ली हैं। सबसे प्रभावशाली प्रांत पंजाब में उन्हें व्यापक समर्थन हासिल है। इन समूहों पर कड़ी कार्रवाई से असंतोष और यहां तक र्की हिंसक गतिविधियां भी फैल सकती हैं। सेना के लोगों के लिए भी इन समूहों के नेता नायक वाला दर्जा रखते हैं। ध्यान रहे कि पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख रहे जनरल परवेज मुशर्रफ आतंकी हाफिज सईद को हीरो बता चुके हैं।

#Dainik_Jagran

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