India currently not in a position to organise Olympics. Instead, it should focus on fundamentals and spent on Education, Health
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ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा ने कल दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि भारत अभी ओलंपिक खेलों का आयोजन करवाने की स्थिति में नहीं है. बीजिंग (2008) ओलंपिक में 10 मीटर राइफल शूटिंग स्पर्धा के इस गोल्ड मेडलिस्ट का आगे कहना था कि भारत जब इन खेलों में कम से कम 40 गोल्ड मेडल हासिल करे, उसे तब ओलंपिक आयोजन के बारे में सोचना चाहिए. बिंद्रा की ये बातें हर लिहाज से सही हैं.
Why this statement
आज के हालात में भारतीय व्यवस्थाएं ओलंपिक जैसे आयोजन के लिए सक्षम भी नहीं हैं.
इस भारतीय शूटर की यह बात भी बिलकुल सही है क्योंकि इतने बड़े आयोजन की लागत उठाना विकसित देशों के लिए भी भारी पड़ता है. यहां हम पिछले ओलंपिक खेल, जो ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में हुए थे, को याद कर सकते हैं. इस देश की प्रतिव्यक्ति आय भारत से ज्यादा है लेकिन ओलंपिक पर अनुमान से ज्यादा खर्चा होने पर नागरिकों ने यहां काफी विरोध प्रदर्शन किए थे.
हाल-फिलहाल में भारत के लिए ओलंपिक खेलों के आयोजन का मतलब होगा स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए इस्तेमाल हो सकने वाले संसाधनों को खेलों में लगाना. वहीं अगर दिल्ली में 2010 में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों का उदाहरण देखें तो इस बात की भी आशंका जगती है कि ओलंपिक जैसे खेलों की व्यवस्था में कितना भारी भ्रष्टाचार हो सकता है.
Argument in favour of organising Olympics in India
ओलंपिक खेलों के आयोजन के लिए तर्क दिया जाता है कि इससे भारत के संबंधित शहर में बुनियादी ढांचे का जबर्दस्त विकास हो जाएगा. हालांकि यह तर्क भी बेमतलब ही है क्योंकि दुनिया में ओलंपिक आयोजित कर चुके ऐसे कई शहर हैं जहां खेलों के बाद बने बुनियादी ढांचे आबादी के लिहाज से काम के साबित नहीं हुए. इससे बेहतर तो यही है कि बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सीधे ही पैसा खर्च किया जाए और जरूरतभर का ढांचा तैयार किया जाए.
Concluding mark
इन वजहों से इतर भारत में अभी-भी खेलों के प्रति वैसा गंभीर रुझान नहीं है जिसे ओलंपिक आयोजन से कोई खास बढ़ावा मिले. इसी कार्यक्रम में बिंद्रा का यह भी कहना था कि बतौर राष्ट्र हम अभी दुविधा में हैं कि खेलों की समाज में क्या-कितनी भूमिका होती है और होने चाहिए. यही वजह है कि हमारे यहां खेल प्रतिभाओं को निखारने की स्थायी और पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं और संभावनाओं से भरा देश होने के बावजूद हम ओलंपिक में सम्मानजनक संख्या में मेडल नहीं जीत पाते.
इन हालात में ओलंपिक खेलों के आयोजन से भारत में कोई भी स्थायी बदलाव नहीं होना है. और यदि हमें ऐसे किसी आयोजन के लायक होना है तो इसके लिए फिलहाल सबसे सही रणनीति होगी जमीनी स्तर पर खेलों के बुनियादी ढांचे का विकास करना और प्रतिभाओं को निखारने की सुविधाएं उपलब्ध करवाना.