प्रधानमंत्री की OMANयात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि नई दिल्ली और मस्कट के बीच हुआ एक विशेष समझौता है. इसके तहत अब भारत इस खाड़ी देश के दुक्म बंदरगाह का सैन्य इस्तेमाल कर सकता है. हालांकि यह समझौता बहुत पहले हो जाना चाहिए था. खाड़ी क्षेत्र की यह सल्तनत भारत के साथ सुरक्षा संबंधों को मजबूत करने में हमेशा दिलचस्पी दिखाती रही है, लेकिन नई दिल्ली की तरफ से उसे ज्यादातर मौकों पर ठंडी प्रतिक्रियाएं ही मिलीं.
Peeping into history: India Oman Relation
पूरी 19वीं और आधी बीसवीं सदी तक जब भारत में ब्रिटिश राज था, तब आधिकारिक रूप से ओमान और अरब खाड़ी के दक्षिण-पूर्वी देशों की सुरक्षा भारतीय शासन के ही जिम्मे थी. लेकिन आजादी के बाद गुटनिरपेक्ष आंदोलन का अगुवा होने के नाते धीरे-धीरे भारत ने खुद को इस भूमिका से दूर कर लिया. वहीं जब ब्रिटेन ने पूर्वी स्वेज की तरफ से अपनी सेना हटाई और 1971 में खाड़ी देशों को स्वतंत्रता दे दी तो इनमें से ज्यादातर ने सुरक्षा साझेदारी के लिए भारत की तरफ देखना शुरू किया.
ओमान भी इन देशों में शामिल था और 1972 में भारत ने उसके साथ एक रक्षा सहयोग समझौता कर लिया. इसके तहत भारत ने उसकी नई गठित नौसेना के साथ अपने नौसिनिकों की भी तैनाती की थी. लेकिन फिर धीरे-धीरे खुद भारत के सैन्य ढांचे में चरमराहट आने लगी और विदेश नीति ज्यादा सैद्धांतिक हो गई और तब ओमान के साथ-साथ खाड़ी के दूसरे देशों से भी हमारे सुरक्षा संबंध कमजोर पड़ने लगे.
Turning point 1991
1991 के बाद भारत ने फिर नए सिरे से दूसरे देशों की ओर देखना शुरू किया. तब ओमान ने रक्षा सहयोग समझौते को पुनर्जीवित करने की पहल की जो 2005 में लागू हो गया. इसके बावजूद भारत ने सैन्य मेल-मिलाप में ज्यादा गर्मजोशी नहीं दिखाई. कहा जाता है कि इस दौरान भारतीय नौसेना और विदेश मंत्रालय तो हिंद महासागर में अपने प्रभुत्व का विस्तार करने के लिए उत्सुक रहे, लेकिन रक्षा मंत्रालय की नौकरशाही सैन्य कूटनीति के विचार से सहमत नहीं हो पाई.
वहीं दूसरी तरफ चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी यानी पीएलए हिंद महासागर में मौजूद देशों के साथ साझेदारियां करते हुए अपना दबदबा बढ़ाती रही. हालांकि भारत के लिए ओमान जैसे मित्र देशों के साथ अपनी नौसेना की साझेदारी को चीन के चश्मे से देखना एक बड़ी गलती होगी. नई दिल्ली को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में चीनी नौसेना की उपस्थिति के जवाब में दुक्म या दूसरे बंदरगाहों का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है.
Why OMAN is Important for India
ओमान या दूसरे देशों के साथ सैन्य संबंध मजबूत करना भारत के लिए अन्य वजहों से बहुत महत्वपूर्ण है. आने वाले समय में भारत का अंतरराष्ट्रीय कारोबार तेजी से बढ़ने की उम्मीद है. ऐसे में सुदूरवर्ती समंदर में अपने व्यापारिक हित सुरक्षित रखने के लिए भारत को हिंद महासागर के एक बड़े हिस्से में सैन्य सुविधाएं चाहिए. जबकि इस क्षेत्र में मौजूद छोटे-छोटे देश सामरिक अनिश्चितताओं के चलते भारत से सुरक्षा संबंध प्रगाढ़ करना चाहते हैं.
यह दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि नई दिल्ली अब तक इन मौकों का फायदा उठाने से हिचकती रही. हालांकि मोदी विदेश नीति के मोर्चे पर तेजी दिखा रहे हैं, लेकिन उनके लिए अब भी उच्च सुरक्षा संगठनों में आधुनिकीकरण के खिलाफ जमी जड़ता को तोड़ने का काम बाकी है. इसकी वजह से ही भारत की सैन्य कूटनीति बाधित हो रही है. इस मोर्चे पर सुधार के बिना खाड़ी क्षेत्र और इससे आगे भी, भारत के रक्षा सहयोग को जरूरी गति हासिल नहीं हो पाएगी.
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