संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्या को लेकर अमेरिका ने कहा है कि यदि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता चाहता है तो उसे ‘‘वीटो पर अपनी रट छोड़नी होगी.’’
इसके साथ ही अमेरिका ने इस बात को भी रेखांकित किया कि रूस और चीन दो ऐसी वैश्विक शक्तियां हैं जो सुरक्षा परिषद के मौजूदा ढांचे में बदलावों के खिलाफ हैं.
सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार है. रूस, चीन, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के पास यह शक्ति है और इनमें से कोई इसे छोड़ना नहीं चाहता. इसलिए सुरक्षा परिषद में भारत को शामिल करने की कुंजी इस बात में है कि वह वीटो का राग अलापना बंद करे'.
रूस और चीन विरोध में
अमेरिका इस बदलाव के लिए हमेशा से तैयार है, लेकिन रूस और चीन पर ध्यान देने की जरूरत है. निक्की हेली ने कहा कि सुरक्षा परिषद के ये दो स्थायी नहीं चाहते कि सुरक्षा परिषद के ढांचे में कोई बदलाव हो.
=>चीन का पक्ष
चीन ने कभी भी भारत की स्थायी सदस्यता के लिए खुलकर समर्थन नहीं किया है. इसी साल की शुरुआत में भी चीन ने इस मसले पर गोलमोल जवाब दिया था.
चीन ने भारत द्वारा वीटो पावर छोड़ने पर सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए सभी पक्षों की 'चिंताओं एवं हितों' को समेटते हुए 'पैकेज समाधान' का फॉर्मूला दिया था.
चीन के मुताबिक सुरक्षा परिषद सुधार का संबंध सदस्यता की श्रेणियों, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व, वीटो पावर जैसे मुद्दों से है. इन मुद्दों का एक पैकेज समाधान पर पहुंचकर ही हल किया जा सकता है.
=>रूस का पक्ष
रूस सार्वजनिक तौर पर भारत का समर्थन कर चुका है. रूस साफ तौर पर यूएन में भारत की स्थायी सदस्यता की सहमति जता चुका है.
इसी साल रूस ने NSG में भारत की सदस्यता का भी समर्थन किया था. साथ ही कई मोर्चों पर रूस भारत के साथ अपना सहयोग निभा चुका है.
=>कई देशों ने किया समर्थन
दुनिया के दूसरे बड़े मुल्कों की बात की जाए तो उनमें से कई देश खुलकर भारत को यूएन का स्थायी सदस्य बनाने पर सहमति जता चुके हैं. पिछले साल 2016 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में सुधार और उसके बाद स्थायी सदस्यता के लिए भारत की मुहिम को ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों सहित संयुक्त राष्ट्र के कई सदस्यों से मजबूत समर्थन मिला था.