जिबूती से जापान तक भारत की छाप

This article describes influence of India 

#Dainik_Jagran

मनीला में संपन्न आसियान शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति टंप द्वारा हिंद-प्रशांत क्षेत्र के उल्लेख एवं जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबी द्वारा सामरिक चतुर्भुज की अवधारणा में भारत के साथ आगे बढ़ने के घटनाक्रम ने सागर क्षेत्र में भारत की महती भूमिका प्रकट की है।हिंद-प्रशांत क्षेत्र में करीब 48 देश हैं और संसार की आधी आबादी यहां रहती है। प्रधानमंत्री ने इसका अपार महत्व समझा और समुद्री क्षेत्र में ‘सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन’ यानी अंग्रेजी के प्रथमाक्षरों से बनी सागर योजना घोषित की।

यह संपूर्ण सागर क्षेत्र-प्रशांत से हिंद महासागर तक भारत के लिए सामरिक, आर्थिक, पर्यावरणीय एवं जैविक विविधता की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो भविष्य में खैबर के र्दे और हिमालय की उपत्यकाओं से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण सिद्ध होगा। अफ्रीका के नन्हें से सात लाख की आबादी वाले जिबूती से लेकर जापान तक फैले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रत्येक हिस्से पर प्राचीन हिंदू सभ्यता और हिंद सागर क्षेत्रीय व्यापारियों के पद चिन्ह मिलते हैं। यह पश्चिमी एवं वामपंथी भारत-द्वेषी मानसिकता ही रही कि हिंदू प्रभाव दबाते हुए उसे भारतीय औपनिवेशिक प्रभाव बताते रहे।

  • मसाले, रेशम, स्वर्ण और हाथी दांत के व्यापार के लिए शताब्दियों से हिंदू व्यापारी इथियोपिया, जिबूती जैसे देशों में जाते रहे।
  • इथियोपिया में स्वर्णभूषणों के डिजाइन भारत से आए हैं। मालदीव पहले हिंदू फिर 12वीं शती तक पूर्णत: बौद्ध द्वीप था।
  • अरब व्यापारियों और उनके कट्टरपंथी मुल्लाओं ने वहां इस्लाम फैलाया। आज भी मालदीव संग्रहालय में बौद्ध अवशेष विद्यमान हैं।
  • श्रीलंका में सिंहल द्वीप है जहां चप्पे-चप्पे पर राम, सीता और बुद्ध हैं। भारत के दो द्वीप-लक्षदीप एवं अंडमान-हिंदू विरासत के प्रतीक हैं। जहां लक्षदीप का नाम ही संस्कृत में है वहीं विश्वास है कि अंदमान हनुमान का अपभ्रंश है, जहां लंका जलाकर लौट रहे हनुमान ने विश्रम किया था। थाईलैंड का पूर्व मूल नाम स्याम है जहां 416 वर्ष तक राजधानी ‘अजुध्या’ रही। वहां हर कोने में शिव, गणपति की प्रतिमाएं हैं। वहां की वर्तमान सम्राट परंपरा ‘राम’ कही जाती है। जब वहां के ‘राम नवम सम्राट अतुल्य तेज भूमिबल’ का निधन हुआ तो हिंदू वैदिक रीति से उनका अंतिम संस्कार किया गया। वहां के राजगुरु काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्नातक हैं। वर्तमान थाई नरेश को राम दशम कहा जाता है।

म्यांमार का मूल नाम ब्रह्मदेश (बर्मा) है जहां रामायण और बुद्ध कथा एक साथ विद्यमान है। यह क्षेत्र स्वर्णभूमि और मीकांग नदी (मां गंगा नदी का अपभ्रंश) से आभामय है जहां का शिल्प एवं साहित्य हिंदू-बौद्ध प्रतिमानों से भरा हुआ है। सुमात्र और बाली, इंडोनेशिया के द्वीप हैं। इस पूरे क्षेत्र में सात शताब्दियों तक (छठी से 13वीं ईसा) श्री विजय साम्राज्य का एकछत्र राज्य रहा। उसका प्रभाव आंध्र के नागपट्टीनम तक था। इंडोनेशिया का तो मूल नाम ही हिंद-एशिया से निकला है। वह आज भले ही मुस्लिम बहुल हो, पर वहां की करेंसी पर आज भी गणोश जी के चित्र अंकित हैं। वहां मुसलमानों के संस्कृत नाम होते हैं। इंडोनेशिया के प्रथम राष्ट्रपति सुकर्ण थे। उनकी बेटी का नाम मेघावती सुकर्णपुत्री था जो ओडिश के महानायक बीजू पटनायक ने रखा था। वहां चौराहों पर कृष्ण-अजरुन संवाद, घटोत्कच, भीम, अजरुन की मूर्तियां मिलती हैं। सिंगापुर का तो नाम ही संस्कृत सिंहपुर से लिया गया है।

विश्व का सबसे बड़ा विष्णु मंदिर भारत में नहीं, कंबोडिया में है। अंकोरवाट कंबोडिया में है जिसका मूल नाम कांबोज है। फ्रांसीसी में आज भी कंबोडिया को कांबोज ही लिखा जाता है। अंकोरवाट मंदिर की दीवारों पर रामायण और महाभारत के वृत्त चित्र अंकित हैं। उसी के पास सहस्त्र शिव लिंग नदी है, जिसके तल की शिलाओं पर हजारों शिव लिंग बने हैं और बड़ी शिलाओं पर शेषशायी विष्णु के सुंदर चित्र उत्कीर्ण हैं। वहां 1150 वर्ष पूर्व ‘महेंद्र’ पर्वत पर बना प्राह विहिए शिखरेश्वर मंदिर है, जिसके गर्भगृह के शिखर पर हाथी के मस्तक पर नृत्थरत शिव की प्रतिमा है। यह थाईलैंड सीमा पर है। दोनों देशों में इस मंदिर पर कब्जा करने के लिए अनेक वर्ष तक संघर्ष हुआ। अंतत: विश्व न्यायालय हेग ने कंबोडिया के पक्ष में निर्णय दिया। यूनेस्को ने इसे भी विश्व विरासत घोषित किया है। वहां से आगे जापान में हिंदू और शिंतो धार्मिक परंपराओं और आस्था में अद्भुत साम्य है, जैसे-पुनर्जन्म, पितृ विसर्जन, अग्निपूजा तथा जन्म और मृत्यु के संस्कार। वहां सरस्वती और गणोश के मंदिर हैं। चीन से हिंदू-बौद्ध संबंध दो हजार वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन हैं। महाभारत में ‘चीन’ का उल्लेख है तो चाणक्य के अर्थशास्त्र में रेशम के लिए चीन की प्रशंसा है। वहां बौद्ध मत ले जाने वाले कुमार जीव, मैत्रेय, कश्यप, समंतभद्र जैसे महान संत आज भी पूजित हैं। शिव के रूद्र रूप, नरसिंह, लक्ष्मी, बाल कन्हैया जैसी अद्भुत शिल्प कृतियां चीन के वर्तमान बौद्ध मंदिरों से लेकर संग्रहालयों तक में मैंने देखी है। हिंद-प्रशांत वास्तव में शांत भारत की हिंदू सभ्यता का गौरवशाली क्षेत्र है। यहां शांति, समृद्धि, संस्कृति के विकास का नया अध्याय यदि भारत लिखने को सक्रिय हुआ है तो इसे विश्व मंगल का नया शुभ संकेत ही कहना होगा

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