पिघलती बर्फ की तेज हुई तपिश (melting of ice and effects)

Effect of Climate Change:

  • ठंडे रहने वाले यूरोपीय देश भी इन दिनों गर्मी से बेहाल हैं। पिछले पखवाड़े में उत्तरी अमेरिका, कनाडा से लेकर यूरोप के तमाम शहरों में पारा काफी चढ़ गया।
  • यही नहीं साइबेरिया और आर्कटिक जैसे सर्द इलाकों में तापमान में तेजी दर्ज की गई। उत्तरी अमेरिका के कैलीफोर्निया में 111 डिग्री फॉरेनहाइट तापमान दर्ज किया गया जो महाद्वीप पर अब तक का सर्वाधिक तापमान था। स्कॉटलैंड का मदरवैल शहर ने भी सबसे ऊंचे तापमान का अनुभव किया। वहां अभी तक के इतिहास में सर्वाधिक 33.2 डिग्री तापमान रहा।
  • ग्लासगो में यह 31.9 डिग्री जा पहुंचा। ओमान में 27 जून को रात में 42.2 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया। 2 जुलाई को कनाडा के मांटियाल में रिकार्ड 36.6 डिग्री सेल्सियस रहा जो 142 साल का उच्चतम स्तर रहा।
  • यह तापमान में बढ़ोतरी का ही नतीजा है कि अंटार्कटिका की बर्फ तेजी से पिघलने की वजह से समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। दुनिया के तकरीबन 84 वैज्ञानिकों के शोध में यह खुलासा हुआ है कि बीते चार सालों में अंटार्कटिका की बर्फ तीन गुना ज्यादा तेज गति से पिघली है। आंकड़े गवाह हैं कि 2012 में जहां औसतन 7600 मीटिक टन बर्फ हर साल पिघल रही थी वहीं अब उसकी रफ्तार 21900 करोड़ मीटिक टन तक पहुंच गई है। बीते 25 वर्षो में तीन लाख करोड़ मीटिक टन से ज्यादा बर्फ पिघल चुकी है। वहीं बीते 25 सालों में समुद्र का जलस्तर भी सबसे बहुत तेजी से बढ़ा है

Effect of Climate Change:

  • बर्फ पिघलने से समुद्र तटों पर तूफान और बाढ़ की आशंका बढ़ जाती है। समुद्र का जलस्तर बढ़ने से चीन के शंघाई से लेकर अमेरिका के मियामी और न्यूयार्क, जापान के ओसाका और ब्राजील के रियो तक के डूबने का खतरा मंडराने लगा है।
  •  ब्रिटेन की ओपन यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड केअध्ययन के अनुसार 2015 में पेरिस में हुए समझौते में तय लक्ष्यांे की समीक्षा के निष्कषों से पता चलता है कि वैश्विक तापमान को अगले 100 वषों में 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर नहीं बढ़ने देने के लक्ष्य हासिल कर लेने के बावजूद विश्व के संवेदनशील देशों को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से जूझना पड़ सकता है। इसके अनुसार आर्कटिक और दक्षिण-पूर्व एशियाई मानसून क्षेत्र जैसे विश्व के क्षेत्रों में अपरिवर्तनीय क्षति की आशंका प्रबल है।
  • इससे स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, तथा पानी का सबसे ज्यादा खतरा है।
  • यही नहीं उत्पादकता पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा और पलायन की समस्या सबसे बड़ी चुनौती होगी। यहां पर औसत बारिश तकरीब 86 मिलीमीटर कम हो गई है और गर्मी और सर्दी के बीच तापमान की खाई भी लगातार घटती जा रही है।
  • सर्दियों का मौसम अब सिकुड़ने लगा है जो पहले करीब 90 दिनों का होता था, वह अब घटकर केवल 65-70 दिनों का होकर रह गया है। अब तो अप्रैल में ही गर्मी की तेजी से शुरुआत हो जाती है।

Effect on India

  • आइआइएम अहमदाबाद की मानें तो देश के सर्वाधिक प्रभावित दस राज्यों यथा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, झारखंड, पंजाब, चंडीगढ़, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के 346 ऐसे जिलों की पहचान की गई है जो मौसम के बदलाव के चलते 2045 तक सूखे के सबसे ज्यादा शिकार होंगे।
  •  जलवायु परिवर्तन के खतरे के चलते देश में 1000 से ज्यादा हॉटस्पॉट बन गए हैं। यदि विश्व बैंक की मानें तो अब तापमान में बढ़ोतरी के चलते मौसम का पैटर्न बदल रहा है।
  • इससे अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
  • इसकी देश को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। यह देश की जीडीपी की कुल 2.8 फीसदी के बराबर होगी। जलवायु परिवर्तन के चलते 2050 में 60 करोड़ लोग इसके गंभीर रूप से शिकार होंगे।
  • कहने का तात्पर्य यह कि इसके प्रभावों से देश की आधी आबादी का रहन-सहन प्रभावित होगा। यह एक गंभीर समस्या होगी। इससे निपटना आसान नहीं होगा। इसलिए समय रहते कळ्छ उपाय करना बेहद आवश्यक होगा।

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