संदर्भ- बेहतर कृषि उत्पादन को प्राप्त करने के लिए किसानों की बदलती कृषि पद्धतियों के संदर्भ में यहां चर्चा की गई है|
पृष्ठभूमि-
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय किसानों द्वारा कृषि पद्धतियों को लेकर चिंता के साथ जागरूकता भी दिखाई गई है| अवैज्ञानिक कृषि पद्धति, रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग, उर्वरकों का गैर अनुपातिक इस्तेमाल इत्यादि के द्वारा भूमि की उर्वरता तो कम हुई ही है साथ ही भूमि क्षरण तथा भूमि अपरदन में भी अथाह बृद्धि हुई है| व्यापक रूप से यह विचार सबके मन में बैठ चुका है कि यदि अवैज्ञानिक कृषि पद्धतियां इसी प्रकार जारी रही तो मृदा क्षरण के साथ ही सदियों पुरानी हमारी कृषि जैव विविधता भी समाप्त हो जाएगी|
कृषि के लिए प्रयोग होने वाले केमिकल द्वारा मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है जिसका वैज्ञानिक गणना करना भी संभव नही है|स्वास्थ्य सम्बन्धी खर्च, फसलों का नुक्सान, जल प्रदुषण इत्यादि ये कुछ ऐसी हानिया है जिनकी गणना कर पाना संभव नही है तथा ये समस्याए केमिकल के अत्यधिक प्रयोगों का ही दुष्परिणाम है|
यदि भारतीय कृषि पद्धतियों का अनुसरण किया जाए तो मृदा में ह्यूमस की मात्रा में वृद्धि होती है तथा भूमि की उत्पादकता सतत रूप से बढ़ती है जिससे अनेक फसलों का उत्पादन संभव हो पाता है| रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से मृदा में क्षारीयता दिनों दिन बढ़ती जा रही है जिससे उत्पादकता में कमी आ रही है| भारत को कृषि पद्धतियों में जीरो बजट फार्मिंग को अपनाने की आवश्यकता है जिसके अंतर्गत देसी बीजो का प्रयोग किया जाए तथा बीज के संबंध में कॉरपोरेट क्षेत्र पर निर्भरता समाप्त किया जाए| बीटी कॉटन बीज के वितरण क्षेत्र में होने वाले सुसाइड में भी कॉरपोरेट क्षेत्र पर बीज संबंधी निर्भरता ही एक कारण के रूप में उभरकर सामने आती है| हमें यह भी प्रश्न पूछने की आवश्यकता है कि जब भारत ने खाद्यान्न उत्पादन के क्षेत्र में स्व निर्भरता कई दशकों पहले अर्जित कर ली थी तो क्या कारण है कि आज भी हम गेहूं, दाल, तिलहन तथा रासायनिक उर्वरको का आयात करते हैं|
क्या किया जाना चाहिए-
किसान संबंधी, भारत के सबसे बड़ा संगठन भारतीय कृषक समाज द्वारा बीज तथा उससे संबंधित बौद्धिक संपदा अधिकारो पर एक नई नीति की मांग की जा रही है उनका कहना है की बीज पर सबसे पहला अधिकार किसानों का है जिसे सरकार द्वारा पहचान मिलनी चाहिए| इस बीज को किसान द्वारा खरीदने, बेचने तथा अपनी जरुरत के हिसाब से इस्तेमाल करने का अधिकार होना चाहिए|
प्रजनक(Breeder)के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए प्लांट वेराइटी प्रोटेक्शन एंड फार्मर राइट कानून को सशक्त बनाए जाने की आवश्यकता है लेकिन इसके अंतर्गत किसानों को देसी प्रजाति को पंजीकत करवाए जाने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए| किसी भी स्थिति में मल्टीनेशनल कंपनियों को एक प्रजनक के रूप में किसानों के ऊपर प्राथमिकता नहीं मिलनी चाहिए| बल्कि बीज को आवश्यक कमोडिटी कानून के अंतर्गत रखा जाना चाहिए क्योंकि भारत की 60 प्रतिशत जनसंख्या बीज संबंधी क्रिया कलापों पर ही निर्भर है|
सरकार द्वारा बीजों के ऊपर पेटेंट को समाप्त किए जाने की आवश्यकता है लेकिन साथ ही पेटेंट कानून 1970 के आर्टिकल 3(j) को सुधारने की भी आवश्यकता है| मल्टीनेशनल कंपनी द्वारा इस आर्टिकल का दुरुपयोग करके किसानों से पेटेंट के नाम पर रॉयल्टी वसूल की जाती है| भारत को चाहिए की जेनेटिक संसाधनों पर पेटेंट को समाप्त किया जाए| जेनेटिक सूचनाओं तथा देसी किस्मो या ऐसी विविधताएं जो पारंपरिक प्रजनन द्वारा प्राप्त की जा रही है पर पेटेंट को समाप्त किया जाना चाहिए|
पूरे देश में किसानों द्वारा कृषि संबंधी जैव विविधता की कम होती मात्रा पर चिंता व्यक्त की जा रही है | एक समय था जब भारत में चावल से संबंधित दो लाख किस्मे पैदा की जाती थी आज यह संख्या मात्र 2000 किस्मे तक सिमट कर रह गई है|
भारत को १७ कृषि जलवायु जोन में बांटा गया है|सीड बैंक संयुक्त रूप से किसानो के अधिकार में है तथा सरकार को चाहिए कि प्रत्येक क्षेत्र की देसी प्रजातियों का भंडारण करें तथा उपयुक्त दाम में उन बीजों को क्षेत्र वितरित करें| केंद्र सरकार द्वारा इस प्रकार के प्रयास के लिए प्रधानमंत्री परंपरागत कृषि योजना का सहारा लिया जा सकता है| प्रत्येक कृषि जलवायु जोन में विकेंद्रीकृत ब्रीडिंग केंद्रों या प्रजनन केंद्रों की स्थापना होनी चाहिए जहां विभिन्न स्थानिक प्रजातियों के बीच प्रजनन द्वारा नई प्रजातियां निर्मित की जा सके|
क्योंकि जलवायु परिवर्तन द्वारा भारत के कृषि उत्पादन पर पड़ने वाला प्रभाव किसी से छुपा नहीं है ऐसे में स्थानिक बीजों के इस्तेमाल द्वारा जलवायु परिवर्तन जैसे सूखा बाढ़ इत्यादि को कम किया जा सकता है तथा इससे संबंधित शोध के सकारात्मक परिणाम सामने भी आए हैं| यह भी ध्यान रखना आवश्यक है की बीज कोआपरेटिव सोसाइटी के माध्यम से भी बेचे जा सकते हैं|
भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष डॉक्टर कृष्ण वीर चौधरी द्वारा यह प्रस्तावित किया गया कि प्रत्येक गांव तथा ब्लाक स्तर पर बीज बैंक, कंपोस्ट यूनिट तथा प्रसंस्करण यूनिट एवं अन्य कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण से संबंधित यूनिट्स की स्थापना की जानी चाहिए जिससे रासायनिक उत्पादो तथा मल्टीनेशनल कॉरपोरेशन पर निर्भरता को कम किया जा सके| नीति आयोग एक्सपर्ट कमेटी ऑन एग्रीकल्चर के दौरान उन्होंने यह प्रस्तावित किया की यदि प्रधानमंत्री जी द्वारा 2022 तक किसानों की आय को दुगना करने संबंधी लक्ष्य के प्रति सरकार गंभीर है तो यह आवश्यक है कि मिनिमम सपोर्ट प्राइस या न्यूनतम समर्थन मूल्य को रिजर्व प्राइस के रूप में बदल दिया जाए जो सरकार द्वारा विधिवत रूप से तय किया जाए जिससे कम मूल्य में उत्पाद को बेचना संभव न हो| वर्तमान स्थिति यह है कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम में अपना उत्पाद बेचना पड़ता है|
अब क्योंकि बीटी कॉटन की असफलता को हम देख चुके हैं जो कि भारत की पहली जेनेटिकली मॉडिफाइड फसल है| केंद्र सरकार को बीटी कॉटन को प्रतिबंधित कर देना चाहिए क्योंकि इसके द्वारा उत्पादन में तो वृद्धि नहीं हुई है साथ ही पेस्टिसाइड या रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल में भी कोई कमी नहीं देखी गई है| बीटी कॉटन के कारण ही ऋण की समस्या बदतर हुई है तथा साथ ही 1995 से वर्तमान तक 300000 से अधिक किसानों द्वारा सुसाइड किए जाने का कारण भी बीटी कॉटन ही रहा है| इन आंकड़ों की पुष्टि डॉक्टर के आर क्रांति द्वारा की गई जो सेंट्रल इंस्टिट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च नागपुर के डायरेक्टर है|
निसंदेह कृषि मंत्रालय द्वारा, साइंस एंड टेक्नोलॉजी रिपोर्ट 301 पर गठित हुई पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी के सुझाव को मानते हुए जीएम फसलों को प्रतिबंधित कर देना चाहिए तथा कृषि संबंधी जैव विविधता को बचाए रखने के लिए, स्थानीय समूह तथा जैविक उत्पादों की रक्षा के लिए बीटी कॉटन का कोई प्रभावशाली तथा सतत व सुरक्षित विकल्प उपलब्ध कराना चाहिए|
भारत को अन्य फसलों जैसे मस्टर्ड, गन्ना, चावल इत्यादि के क्षेत्रों में भी gM फसलों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना चाहिए तथा किसी भी स्थिति में सरकार को नई जेनेटिक आनुवांशिकी तकनीक जैसे Oligonnucleotide directed mutagenesis (ODM), Zinc Finger nuclease, CRISPR/Cas इत्यादि को स्वीकृति देने से बचना चाहिए|
इसी पहल को आगे बढ़ाते हुए किसी भी नई जेनेटिकली मॉडिफाइड तकनीक संबंधी विकास की सूचना सार्वजनिक की जानी चाहिए जो नागरिकों तथा स्वतंत्र वैज्ञानिकों के लिए विश्लेषण हेतु कम से कम 1 वर्ष के लिए उपलब्ध हो|
महाराष्ट्र में हाल ही में हुए पेस्टीसाइड संबंधी मौत को ध्यान में रखते हुए राउंडअप तथा वास्ता को तुरंत प्रभाव से प्रतिबंधित कर देना चाहिए| केंद्र सरकार को एक प्राधिकरण की स्थापना करने की आवश्यकता है जो जेनेटिक पॉल्यूशन तथा जेनेटिक संदूषण पर नजर बनाए रखें तथा उससे होने वाले नुकसान को polluter pays principle के अंतर्गत शामिल करें तथा साथ ही जैव विविधता को नुकसान पहुंचाने तथा भारतीय क्षेत्रों या खेतों को प्रदूषित करने के लिए उन पर क्रिमिनल कानूनों के तहत कार्यवाही करें| इसकी शुरुआत मोनसेंटो से की जा सकती है जिसने भारत में महाराष्ट्र से आंध्र प्रदेश तक कपास के क्षेत्रों को प्रदूषित किया है तथा जैव विविधता को नुकसान पहुंचाया है|