Okkhi has created havoc in arabian region and we were ill prepred to handle this disaster.
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Recent cyclone Okkhi & Disaster
तकरीबन दो हफ्ते पहले भारत के सबसे दक्षिणी हिस्से - तमिलनाडु के कन्याकुमारी और केरल के तिरुवनंतपुरम जिले के तटीय इलाके में ओक्खी चक्रवात ने तबाही मचाई थी. और तब से यहां के सैकडों मछुआरे लापता हैं. स्थानीय आबादी के लिए यह हालिया सालों की बड़ी आपदा साबित हुई है तो वहीं इसने एक बार फिर जता दिया है कि भारत में आपदा प्रबंधन का मोर्चा कितना कमजोर है.
- पहली बात तो यही है कि भारतीय मौसम विभाग ने चक्रवात की चेतावनी काफी देर से दी थी. हालांकि इससे पहले उसने ‘कम दबाव’ का क्षेत्र बनने की चेतावनी जरूर जारी की, लेकिन राज्य आपदा प्रबंधन से जुड़े अधिकारियों ने इसको तवज्जो नहीं दी थी.
- यही नहीं चक्रवात गुजरने के बाद राहत बचाव कार्य भी देर से शुरू हुआ. इसके साथ ही स्थानीय मछुआरा समुदाय के नेता आरोप लगाते हैं कि इस काम में कम संख्या में नावों और हेलीकॉप्टरों को लगाया गया था, जिनमें राहत-बचाव के जरूरी उपकरणों की भी कमी थी.
Relax attitude and reactive machinery
बंगाल की खाड़ी से तुलना करें तो अरब महासागर में चक्रवाती तूफान अमूमन कम ही आते हैं. शायद यह भी एक वजह रही कि इस तरफ का आपदा प्रबंधन तंत्र पूरी तरह तैयार नहीं था और ओक्खी ने उन्हें बुरी तरह चौंकाया भी. इसके उलट बंगाल की खाड़ी में 2013 के दौरान फैलिन और 2014 में हुदहुद चक्रवात उठा था तब मौसम विभाग ने समय रहते इसके आगे बढ़ने के रास्ते की जानकारी उपलब्ध करवा दी थी. इससे तटीय इलाके का स्थानीय प्रशासन पहले से तैयार था और उसने बड़े पैमाने पर यहां से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया था.
2013 में उत्तराखंड आपदा और 2014 में श्रीनगर बाढ़ की बात करें तो तब मौसम विभाग ने भारी बारिश की चेतावनी जारी की थी. लेकिन बाद में राज्य सरकारों ने शिकायत की कि यह चेतावनी अस्पष्ट थी और इसके चलते वे पहले से तैयारी नहीं कर पाए.
हाल के सालों में मौसमी उतार-चढ़ाव काफी तेज हो गए हैं और इनके चलते चक्रवाती तूफान या भारी बारिश जैसी आपदाओं का सिलसिला बढ़ गया है. ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि मौसम विभाग और राज्य आपदा प्रबंधन विभागों के बीच एक चुस्त तालमेल हो.
What measures will be taken?
बताया जा रहा है कि ओक्खी के बाद केरल सरकार ने तटीय इलाकों में संचार की व्यवस्था मजबूत करने का फैसला लिया है. फिलहाल गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वालों तक पहुंच के लिए कोई संचार व्यवस्था नहीं है. केरल सरकार की योजना है कि वह इसरो के सैटेलाइटों के माध्यम से इन क्षेत्रों में संचार का दायरा बढ़ाएगी ताकि किसी भी संभावित आपदा की पूर्व सूचना मछुआरों को दी जा सके. तटीय इलाके जहां लाखों लोगों के लिए मछली पकड़ना आजीविका का साधन है, में ऐसी सुविधाओं पर निवेश आर्थिक रूप से एक बेहतर फैसला है. जहां तक ओक्खी चक्रवात की बात है तो इससे प्रभावित समुदायों-परिवारों तक अब तुरंत राहत पहुंचाने और इनके पुनर्वास की जरूरत है.