ऑनलाइन शिक्षा

Context

महामारी के चलते सभी शिक्षण संस्थाएं अचानक बंद कर दी गई थीं ताकि कोरोना संक्रमण से बचाव हो सके। इसके बाद तमाम संस्थाओं ने अध्यापन के लिए इंटरनेट की सहायता से गूगल मीट, जूम आदि का उपयोग करते हुए छात्रों को उनके घर पर अध्यापन कार्य को चलाने का सराहनीय प्रयास किया।  अकादमिक अंत:क्रिया के लिए इस डिजिटल माध्यम का उपयोग अनंत संभावनाएं लिए हुए है। जब इंटरनेट से अध्यापन होता है तो अध्यापक को भी तैयार होना पड़ता है, उसके कार्य का लेखा-जोखा बनता जाता है। उसकी कक्षा का वीडियो बन सकता है और उसकी पाठ्य सामग्री बाद में भी प्रयुक्त हो सकती है। उसका सुधार और विस्तार भी संभव है।

 

PROBLEMS OF TRADITIONAL EDUCATION

लालफीताशाही, कानूनी हस्तक्षेप, स्थानीय तत्वों की दबंगई आदि के चलते अधिकांश शिक्षा संस्थाएं कई वर्षों से लगातार जूझ रही हैं। इस बीच अन्यान्य कारणों से मानक स्तरों से नीचे की व्यवस्था वाली संस्थाएं भी मशरूम की तरह फैलती गई हैं। निजी क्षेत्र में नर्सरी और प्राइमरी से लेकर विश्वविद्यालय तक की संस्थाओं की भरमार हो गई है जो मनमानी फीस वसूलती हैं। इनमें कुछ गुणवत्ता की दृष्टि से अच्छी हैं तो एक बड़ी संख्या मानकों पर खरी नहीं उतरतीं। इसका परिणाम यह हुआ है कि छात्रों और अभिभावकों, दोनों में असंतोष फैलने लगा है। ऐसे में परीक्षा पास कर प्रमाणपत्र लेने वालों की संख्या तो बढ़ी है, परंतु क्षमता और कौशल आदि की दृष्टि से योग्य अभ्यर्थियों की कमी भी होने लगी है।

BENEFIT of E- Education

  • इस तरह के कार्य करने में एक विशेष तरह की सर्जनात्मक प्रेरणा मिलती है। अध्यापक ही नहीं छात्र को भी कक्षा की अवधि के दौरान ध्यान देना होता है, क्योंकि सब पारदर्शी है और कोई विकल्प नहीं है। इस तरह शैक्षिक कार्य में संलग्नता के नए आयाम भी जुड़ते हैं।
  • जब हम यह विचार करते हैं कि स्कूल जाने योग्य बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही तो समस्या और भी विकट दिखती है। यह लगातार अनुभव किया जा रहा है कि विद्यालय भवन, अध्यापक, पाठ्य-पुस्तक, छात्रावास और पुस्तकालय जैसी जरूरतों को पूरा करना और शिक्षण कार्य में अपेक्षित एक निश्चित स्तर की गुणवत्ता के रास्ते में कई बाधाएं आती रहती हैं।
  • ऑनलाइन शिक्षा को प्रोत्साहन देने से विद्यार्थी नए से नए ज्ञान से भी लैस होते रहेंगे।
  • साथ ही हमारे शिक्षकों पर सक्षम, अद्यतन न होने और शिक्षकों की कमी के जो आरोप लगते रहे हैं उसे भी ऐसी शुरुआत दूर कर सकती है। इसके लिए परंपरागत स्कूली ढांचे और शिक्षा मॉडल में भी बदलाव की उतनी ही तेजी से जरूरत है। 
  • भारत जैसे गरीब देश में ऑनलाइन शिक्षा की जरूरत आ गई है, क्योंकि बढ़ती जनसंख्या और जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप हमारे पास पर्याप्त स्कूल-कॉलेज उपलब्ध नहीं हैं। नर्सरी और प्राइमरी कक्षाओं में दाखिले के लिए भी पूरे देश में अफरा-तफरी मची रहती है। ऑनलाइन के विकल्प से स्कूलों पर दबाव भी कम होगा और अभिभावकों एवं बच्चों के लिए अपने-अपने ढंग से पढ़ने-पढ़ाने की स्वतंत्रता भी। यानी स्कूल में दाखिले की अनिवार्यता खत्म हो जाएगी।
  • Close to Home School concept of West: पश्चिमी देशों में ऐसे प्रयोग दशकों से चल रहे हैं जिन्हें होम स्कूल या घर स्कूल के नाम से जाना जाता है। इनके पाठ्यक्रम काफी लचीले होते हैं। अभिभावक चाहें तो उनमें अपने ढंग से कोई बदलाव कर सकते हैं। दरअसल महत्वपूर्ण पक्ष होता है अच्छी ज्ञान सामग्री, पाठ्यक्रम आदि की सहज उपलब्धता और यदि ये घर बैठे ही मिल जाए और अभिभावक बच्चों को अपने ढंग से पढ़ाना चाहें तो किसी को क्यों आपत्ति होनी चाहिए? इसके मद्देनजर कुछ वैकल्पिक शिक्षा बोर्ड बनाने की भी जरूरत पड़ेगी जिससे बच्चों को अगली कक्षाओं में पढ़ाई करने में कोई परेशानी न हो। शुरुआत के लिए पांचवींं, आठवीं, दसवीं, 12वीं के बोर्ड जैसी एकल अखिल भारतीय परीक्षाएं आयोजित की जा सकती हैं।
  • ऐसी लचीली व्यवस्था में बच्चों को पढ़ने की स्वतंत्रता के साथ-साथ रचनात्मक मौलिकता भी बेहतर बनेगी। दुनिया भर में ऐसी शिक्षा के अच्छे परिणाम सामने आए हैं। 

What can not be done by Online Education

  • नि:संदेह अध्यापक के व्यवहार, हाव-भाव और सामाजिक अंत:क्रिया भी छात्र छात्राओं को सीखने के लिए जो अवसर देते हैं उस तक पहुंच पाना संभव नहीं है, परंतु अध्यापक के साथ होने वाली कठिनाइयां, जैसे उसकी अनुपलब्धता या उसका कार्यस्थल से अनुपस्थित होना, कक्षा के लिए ठीक तरह से तैयारी न करना, विलंब से आना या फिर विद्यार्थियों के साथ अनुचित व्यवहार करना आदि से भी निजात मिल सकती है। 

REFERENCE: https://www.jagran.com/

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