कठघरे में विश्व स्वास्थ्य संगठन

Question mark on credibility of WHO

विश्व स्वास्थ्य संगठन के विरुद्ध इस समय दुनिया भर में जिस तरह की नाराजगी और नाखुशी है वैसा उसके सात दशक के इतिहास में नहीं देखा गया। इस नाराजगी में निशाने पर हैं इसके निदेशक जनरल टेड्रोस एडनोम गेब्रेइसिस। उनके इस्तीफे तक की मांग हो रही है। अमेरिका में तो उनके खिलाफ आक्रामक अभियान चल रहा है। फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देश भी आक्रामक हैं।

View of America

अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की फंडिंग रोक दी। डोनाल्ड ट्रंप ने 7 अप्रैल को कहा था कि हम डब्ल्यूएचओ को कुछ वजहों से बहुत अधिक फंड देते हैं, लेकिन यह चीन केंद्रित रहा है और हम अब फंड को सही रूप देंगे। इसने हमें कोरोना से निपटने में गलत सलाह दी थी और हमने उसे नहीं माना। ट्रंप ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन चीन का पक्ष लेता रहा और उसे बचाता रहा। अगर दुनिया को पहले इसकी जानकारी होती तो इतनी जानें नहीं जातीं। चूंकि इस समय दुनिया के प्रमुख देश अपने यहां कोरोना से निपटने में व्यस्त हैं, इसलिए एक साथ हमें विश्व स्वास्थ्य संगठन और टेड्रोस गेब्रेइसिस के खिलाफ आवाजें भले सुनाई न पड़े, लेकिन पश्चिमी यूरोप से लेकर पूर्वी एशिया तक मोटा-मोटी वातावरण ऐसा ही है।

What Japan say

जापान के उप प्रधानमंत्री तारो असो ने तो प्रतिनिधि सभा को संबोधित करते हुए कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का नाम बदलकर चीनी स्वास्थ्य संगठन होना चाहिए। इनमें विस्तार से जाए बगैर यहां कुछ प्रश्नों को सामने रखकर पूरी सही निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश की जा सकती है। क्या विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्थिति की गंभीरता दिखते हुए भी पर्याप्त कदम नहीं उठाया? क्या वाकई उसने चीन में फैलती महामारी के बीच सही जानकारी प्राप्त करने का प्रयास नहीं किया? या वह चीन को जानबूझकर बचाता रहा?

 

क्या जैसा आरोप लग रहा है उसने समय पर चेतावनी न देकर विश्व को खतरे में डाल दिया? विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सारे आरोपों को खारिज किया है। आठ अप्रैल को वीडियो कॉन्फ्रेंस से आयोजित पत्रकार वार्ता में गेब्रेइसिस ने कहा कि अमेरिका और चीन को एक साथ आना चाहिए और इस खतरनाक दुश्मन से लड़ना चाहिए। इस बयान ने कई देशों की नाराजगी और बढ़ा दी है। 10 अप्रैल के सुरक्षा परिषद की विशेष बैठक में भी चीन के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन की आलोचना हुई। यह सच है कि अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन सही समय पर चेतावनी जारी करता तो भयावह मानवीय त्रासदी को काफी कम किया जा सकता था। कोरोना का संक्रमण मनुष्य से मनुष्य में फैलता है, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लंबे समय तक इसे स्वीकार नहीं किया। गेब्रेइसिस ने 23 जनवरी को जेनेवा में कोरोना को लेकर एक आपात बैठक में कहा था कि हमने यात्रा और व्यापार पर व्यापक प्रतिबंध की सिफारिश नहीं की, लेकिन एयरपोर्ट्स पर यात्रियों की स्क्रीनिंग होना चाहिए। इसके बाद कोरोना वायरस अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, थाईलैंड और सऊदी अरब में फैला था।

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत सात अप्रैल 1948 को हुई थी। संगठन के दस्तावेज के अनुसार 7 जनवरी को चीन ने कोरोना वायरस के प्रसार की सूचना दी थी। इसके पहले उसने 31 दिसंबर 2019 को कहा था कि 41 लोग नियोमिना रोग से पीड़ित हैं। 20 जनवरी को पहली रिपोर्ट सामने आई तब तक कोरोना पूर्वी एशिया के कई देशों यथा थाईलैंड, जापान, दक्षिण कोरिया आदि तक पहुंचा चुका था। गेब्रेइसिस 27 जनवरी को चीन गए, राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भेंट की, स्वास्थ्य से जुड़े महत्वपूर्ण लोगों से भी बातचीत की लेकिन दुनिया को इससे सुरक्षा के उपाय करने की जगह उन्होंने चीन और शी जिनपिंग को प्रमाण पत्र दिया कि वे यदि सख्त कदम नहीं उठाते तो यह ज्यादा विकराल होकर दुनिया में फैल जाता। कोरोना संक्रमण को काबू में रखने के लिए दुनिया को चीन का आभारी होना चाहिए। उस समय तक कोरोना के मामले 15 देशों में आ चुके थे। गेब्रेइसिस की भूमिका विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी अंतरराष्ट्रीय संगठन के प्रमुख जैसा लगा ही नहीं। एक स्वतंत्र टीम का गठन होना चाहिए था, लेकिन उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं चीन की संयुक्त टीम बना दी। चीनी विशेषज्ञ अपने देश के खिलाफ जा नहीं सकते थे। 30 जनवरी को संगठन ने कोरोना कोविड-19 प्रकोप को अंतरराष्ट्रीय चिंता वाली स्वास्थ्य आपदा घोषित किया, लेकिन इसमें नहीं बताया कि यह वैश्विक महामारी का रुप ले रहा है या ले सकता है। 4 से 8 फरवरी के बीच संगठन के कार्यकारी बोर्ड की बैठक के एजेंडा में कोविड-19 शाामिल ही नहीं था। इसने 11 मार्च को इसे वैश्विक महामारी तब घोषित किया जब यह नियंत्रण से बाहर जा चुका था। उसके पहले तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सार्क देशों की बैठक बुला ली थी तथा जी 20 के लिए प्रयासरत थे।
 

  • इस तरह यह स्वीकरने में कोई समस्या नहीं है कि कोरोना कोविड 19 संकट के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन एक जिम्म्मेवार, स्वतंत्र, निष्पक्ष और कुशल संगठन के रुप में काम करने में बुरी तरह विफल रहा और उसे आज की भयावह स्थिति के दोष से मुक्त नही किया जा सकता।
  • वैसे तो इस संगठन पर ताकतवर देशों के साथ बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के प्रभाव का आरोप लगता रहा है और उसमें सच्चाई भी है। इसमें सुधार की मांग पहले से उठती रही है।
  • कोरोना संकट ने साफ कर दिया है कि ऐसे लचर संगठन से अब उभरने वाली स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने में दुनिया सक्षम नहीं हो सकती। इसका एक कार्यकारी बोर्ड है, जिसके सदस्य भौगोलिक प्रतिनिधित्व के आधार पर 34 देशों से चुने गए तकनीकी रूप से सक्षम व्यक्ति होते हैं। इसमें तकनीकी और प्रशासनिक सलाहकारों का अमला होता है। ये सब महानिदेशक के अंतर्गत काम करते हैं।
  • कहने की आवश्यकता नहीं कि महानिदेशक की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। गेब्रेइसिस के चुनाव में चीन की प्रमुख भूमिका थी। इसको सबसे ज्यादा वित्तीय योगदान अमेरिका देता है, लेकिन चीन भी इसे अपने हिस्से से ज्यादा धन देने लगा है।
  • गेब्रेइसिस के बारे में कई संस्थानों ने विस्तार से जानकारी दी हैं। लड़ाकू संगठन से लेकर मुख्य धारा की राजनीति में आने तथा इथियोपिया के स्वास्थ्य तथा विदेश मंत्री के रुप में उनकी भूमिका के सारे पक्ष सामने आ गए हैं। उनके काल के दौरान हैजा महामारी के समय कोताही बरतने तथा विदेश मंत्री रहते हुए नस्ली हिंसा हुई जिनमें 400 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, 70 हजार से ज्यादा प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी और 15 हजार से ज्यादा के विस्थापन के आरोप लगे थे। इसमें चीन ने उनको बचाने में महत्वपूर्ण भूमिक निभाई। आज इथियोपिया में चीन ने भारी निवेश किया हुआ है। तो क्या गेब्रेइसिस चीन के अहसान तथा अपने देश में उसके निवेश के कारण उसके प्रभाव मे ंसच का पता लगाने के लिए गहराई में जाने, चीन से कठिन प्रश्न पूछने की जगह उसके बचाव में लगे रहे? इस समय तो ऐसा ही लगता है।

Reference: https://www.haribhoomi.com/

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