#Nai_Duniya
भारत के कोयला संसाधनों (जो मुख्य रूप से पूर्वी और मध्य भारत में केंद्रित है) और भारत के प्रमुख सौर एवं पवन ऊर्जा संसाधन (जो मुख्यतः पश्चिमी और दक्षिणी भारत में केंद्रित है) से संबंधित है। इनमें ऐसे स्थल नगण्य हैं, जहां दोनों तरह के संसाधन हैं।
Renewable energy in India
वर्तमान में भारत की स्थापित ग्रिड स्तरीय अक्षय ऊर्जा की क्षमता करीब 60 मेगावाट है, जिनमें से 57 मेगावाट से ज्यादा देश के उत्तरी, दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों में केंद्रित है।
तीन फीसदी से भी कम अक्षय ऊर्जा फिलहाल पूर्वी और पूर्वोत्तरीय क्षेत्र (जिसे सामूहिक रूप से पूर्वी भारत कहा जाता है) में केंद्रित है।
भूगोल और मौसम पूर्वी भारत में विकसित की जा रही ग्रिड से जुड़ी अक्षय ऊर्जा की क्षमता को बाधित करते हैं।
Is growth of Renewable energy harmful?
लेकिन अक्षय ऊर्जा के त्वरित विस्तार के गंभीर परिणाम होंगे। अगले पंद्रह-बीस वर्षों में धीरे-धीरे अक्षय ऊर्जा द्वारा कोयला आधारित बिजली उत्पादन की जगह लेने की संभावना है। फिर अक्षय ऊर्जा के विकास से कुछ रोजगार या विनिर्माण लाभ कोयला क्षेत्रों वाले राज्यों को मिलने का अनुमान है। मध्यम से दीर्घकाल में इस बात की काफी आशंका है कि अक्षय ऊर्जा के विकास से न सिर्फ कोयला आधारित बिजली उत्पादन प्रभावित होगा, बल्कि कोयला खनन की संभावनाएं भी घट जाएंगी। इसका प्रतिकूल असर न केवल भारत के कोयला संयंत्रों (जिन्होंने सरकारी बैंकों से कर्ज लिया है) पर पड़ेगा, बल्कि कोल इंडिया लिमिटेड से कोयला उठाने पर भी पड़ेगा। पिछले वर्ष कोल इंडिया लिमिटेड को अप्रत्याशित स्थिति से भी गुजरना पड़ा, जब उसके भंडार में अतिरिक्त कोयला था, मगर उसे खरीदार नहीं मिल रहे थे।
आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 ने दो राष्ट्रीय प्रवृत्तियों को उजागर किया है, जो अक्षय ऊर्जा अपनाने के वितरण संबंधी प्रभाव का विस्तार कर सकते हैं।
पहला, भारतीय राज्यों के बीच आय के स्तर पर एक व्यापक क्षेत्रीय अंतर है, पूर्वी राज्य देश के बाकी हिस्सों से पीछे रहे हैं।
दूसरा, पिछले दशक में सुस्त राज्यों को पुनर्वितरित संसाधन हस्तांतरण में तेजी से वृद्धि हुई है। अक्षय ऊर्जा को अपनाने और धीरे-धीरे कोयला को विस्थापित करने से रोजगार के नुकसान के जरिये संभवतः आय में अंतर बढ़ेगा और रॉयल्टी तथा कर राजस्व खोने की वजह से कोयला आधारित राज्यों के लिए संसाधन हस्तांतरण बढ़ेगा।
कोयला खनन और उद्योगों की तरफ इसका प्रवाह बड़े कल्याणकारी राज्य और केंद्र सरकार तथा झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के बीच वित्तीय समझौते का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। दशकों से कोयला खनन से रॉयल्टी और कर राजस्व राज्य बजट को सहयोग करते हैं, कोल इंडिया और इसकी सहायक कंपनियों के कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व खर्च ने पूर्वी इलाके के बुनियादी ढांचे और सामाजिक विकास में बड़ी भूमिका निभाई है और कोयला खनन और परिवहन के संस्थानों के आसपास गंभीर संरक्षण नेटवर्क का विकास किया है। इन क्षेत्रों में कोयला खनन सिर्फ आर्थिक गतिविधि नहीं है, बल्कि राजनीतिक लामबंदी का एक प्राथमिक आधार भी है। यह आश्चर्यजनक नहीं कि जब भी कोल इंडिया लिमिटेड का राष्ट्रीयकरण खत्म करने का मुद्दा उठा है, इस क्षेत्र में राजनीतिक प्रतिरोध तेज हो गया है।
पूर्वी भारत में अक्षय ऊर्जा बनाम कोयले की बहस भारतीय निवेश परिदृश्य की एक बड़ी समस्या को परिलक्षित करती है-निजी पूंजी का प्रवाह उन्हीं राज्यों की तरफ होता है, जहां प्रशासनिक समस्याएं कम हों, व्यवसाय का माहौल बेहतर हो और त्वरित लाभ की संभावना उच्च हो, जैसे, गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश। नतीजतन ज्यादा प्रतिकूल कारोबारी माहौल वाले राज्यों (जैसे पूर्वी भारत) में निवेश की कमी पूरी करने की जिम्मेदारी सार्वजनिक क्षेत्र और सरकारी स्वामित्व वाले उपक्रमों (एसओई) पर आती है।
Renewable energy is future but is it for present?
अक्षय ऊर्जा की गति रुकने वाली नहीं है। लागत और पर्यावरणीय परिणाम, दोनों के लिहाज से यह न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर एक बड़े ऊर्जा बदलाव का संकेत करता है। लेकिन जैसा कि अरविंद सुब्रमण्यम ने इस पहेली को सही ढंग से प्रस्तुत किया है-अक्षय ऊर्जा भविष्य हो सकता है, लेकिन क्या यह वर्तमान है? हाल ही में टेरी में दिए अपने व्याख्यान में उन्होंने विभिन्न आर्थिक कारणों को रेखांकित करते हुए कहा कि भारत को अल्पकाल के लिए अक्षय ऊर्जा के मामले में धीमी गति अपनानी चाहिए। लेकिन अक्षय ऊर्जा के मसले पर धीमी रफ्तार का कारण पूरी तरह से आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक भी है। भारत का कोयला क्षेत्र बड़ी आबादी वाला और चुनाव की दृष्टि से बेहद प्रासंगिक है। अगर अक्षय ऊर्जा अपनाने के बाद के प्रतिकूल परिणामों से नहीं निपटा गया, तो इस क्षेत्र के लोग तीव्र विरोधी प्रतिक्रिया जता सकते हैं। धीरे-धीरे बदलाव की प्रक्रिया भारत में अन्य क्षेत्रों में भी कारगर रही है-यह मामने का कारण नहीं है कि ऊर्जा का मामला अलग है।
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