प्रत्येक देश की कुछ राष्ट्रीय समस्याएं होती हैं जैसे कि समावेशन की समस्या या आर्थिक वृद्धि की दर का कम होना |परंतु विश्लेषण करने पर यह निष्कर्ष निकाल कर आता है कि किसी भी समस्या का समाधान तभी संभव है जब समाज भी उस समस्या की गहराई को समझे तथा समाधान के क्रियान्वयन की इच्छा रखता हो| परंतु जलवायु परिवर्तन एक ऐसी समस्या है जो कि सभी देशों के लिए एक साझा समस्या के रूप में है| हालांकि बहुत से विश्लेषकों ने इस समस्या के समाधान के लिए कुछ बिंदुओं को वैश्विक पटल पर सामने रखा है परंतु यह समझना आवश्यक है कि इन समाधान को लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए समाज का प्रोत्साहन तथा सहयोग तुलनात्मक रूप से बड़े स्तर पर होना चाहिए| जैसा कि सब जानते हैं की जलवायु परिवर्तन मुख्यतः औद्योगीकरण के बाद से शुरू हुआ जब 18वीं शताब्दी में जीवाश्म ईंधनों का सहारा लेकर औद्योगिक क्रांति हुई| तब से लेकर आज तक वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है | इसके द्वारा जलवायु पैटर्न को काफी हद तक क्षतिग्रस्त किया जा चुका है जैसे कि वायु प्रदूषण या दूषित वायु पूरे विश्व के सामने एक समस्या के रूप में है ,समुद्र का बढ़ता जलस्तर कई तटीय शहरों के लिए विकराल रूप ले चुका है तथा प्रतिवर्ष हरीकेन से मरने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है|
अर्थशास्त्री Geoffrey Heal अपनी पुस्तक एनडेंजर्ड इकनोमिक मैं लिखते हैं की जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान सिर्फ वायु तथा जल जैसी मूलभूत आवश्यकताओं तक ही सीमित नहीं है बल्कि ऐसे व्यापार पर भी उनका प्रभाव है जो प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर हैं जैसे पॉलिनेशन ,जलचक्र, वन संबंधी इकोसिस्टम इत्यादि| इसका तात्पर्य यह है की प्राकृतिक स्रोतों का संरक्षण कर व्यापार में पूंजीगत लाभ को बढ़ाया जा सकता है| व्यापार में निवेश और अधिक बढ़ाया जा सकेगा तथा अर्थव्यवस्था उत्पादकता प्रदर्शित करेगी एवम सबसे महत्वपूर्ण बात ऐसा करने से प्राकृतिक पूंजी को एक लंबे समय तक संरक्षित करके रख सकते हैं|
वैश्विक संगठनों तथा सभी देश की सरकारों ऐसे आर्थिक वृद्धि को नकारना चाहिए जो विश्व की प्राकृतिक पूंजी का नकारात्मक दोहन करें हमें ऐसी आर्थिक वृद्धि चाहिए जो हरित अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन दें जिसके माध्यम से ऐसी आर्थिक वृद्धि की प्राप्ति हो जो पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहित करें तथा साथ ही नवाचार संबंधी उपायों को भी हतोत्साहित ना करें |
Graciela Chichilnisky जो कि कोलंबिया के अर्थशास्त्री तथा गणितज्ञ हैं वह कहते हैं की मनुष्य के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि वायुमंडल में जितनी कार्बन डाइऑक्साइड आवश्यकता से अधिक मात्रा में है उसको वायुमंडल से बाहर निकाला जाए इस काम मैं आने वाले खर्च के लिए वह यह प्रस्ताव देते हैं कि कैप्चर्ड कार्बन को वाणिज्य उद्देश्यों के लिए बेचना संभव बनाया जाए जिसके लिए एक बाजार का निर्माण किए जाने की आवश्यकता है यदि इस प्रकार के नवाचारी उपायों को लाभदायक बनाया जा सकता है तो यह संभव है कि निजी क्षेत्र कार्बन कैप्चर जैसे कार्यों में दिलचस्पी दिखाएं तथा उन कार्यों को संभव बना सके जो राष्ट्रीय सरकारी नहीं कर पा रही है |
नवाचारी उपायों के साथ-साथ हमें कुछ चुनोतियों जैसे कि जनसंख्या वृद्धि, बढ़ता हुआ औद्योगिकीकरण तथा कमजोर गवर्नेंस पर भी ध्यान देना होगा तथा जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करते हुए यह भी ध्यान रखना होगा कि लोगों के जीवन स्तर पर इसका नकारात्मक प्रभाव न पड़े |
जलवायु परिवर्तन की चुनोतियों का सामना करने के लिए दिन-प्रतिदिन शोध संबंधी कार्य बढ़ता जा रहा है जिसको देखकर हम चिंता मुक्त हो सकते हैं की शोध संबंधी निष्कर्षों को कंपनियां तथा सरकार बढ़ावा देंगी |परंतु ऐसा संभव नहीं होता है निजी क्षेत्र नवाचारी उपायों को तभी अपनाएगा जब वह उनके लिए लाभ सृजन भी कर सकें| दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह है की पर्यावरण अवनयन मात्र अप्रत्यक्ष तौर पर नहीं होता है एवं अप्रत्यक्ष तौर पर होने वाले पर्यावरण हानी को एक सीमा तक ही नियंत्रित किया जा सकता है जैसे उदाहरण के लिए यदि मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा प्रदूषण को समाप्त करने के लिए मध्य अमेरिका में विस्तृत रुप से वनीकरण किया जाता है तो यह भी एक सीमा तक ही संभव है क्योंकि दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही जनसंख्या के लिए भूमि की उपलब्धता भी बनाए रखनी आवश्यक है|
Dennis J. Snower नामक अर्थशास्त्री द्वारा कुछ वर्ष पहले यह बात रखी गई थी की व्यक्तिगत रूप से किए जाने वाली पर्यावरण हानी जिसको की सरकार तथा अंतरराष्ट्रीय संगठन नजरअंदाज कर देते हैं पर्यावरण की क्षति में अभूतपूर्व भूमिका निभाती है जैसे मछली पकड़ना ,जीवाश्म ईंधन के माध्यम से खाना बनाना, पानी का दुरुपयोग करना उदाहरण स्पष्ट रूप से दिखाते हैं की व्यक्तिगत स्तर पर पर्यावरण की हानि कहीं ज्यादा होती है| तो आवश्यक यह है कि सरकार तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठन पर्यावरण हानि को रोकने के लिए व्यक्ति को लक्षित करके नीति निर्माण करें|
एक और बड़ी समस्या यह है बहुत सारे देश अभी भी औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं तो यदि कुछ देश प्रति व्यक्ति प्रदूषण में होने वाले योगदान को कम करने का प्रयास करेंगे तो उनके द्वारा किया गया प्रयास औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे देशों द्वारा किए गए प्रदूषण से व्यर्थ चला जाएगा| इस प्रकार की समस्याएं कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन को नियंत्रण में रखने के प्रयासों को धक्का पहुंचाती है |इस बात को भी स्वीकार करना आवश्यक है कि कई सरकारें हितों में संतुलन नहीं बना पाती| उदाहरण के लिए शक्तिशाली मल्टीनेशनल कंपनियां पर्यावरण मानकों का उल्लंघन करती हैं और सरकार भी उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर पाती क्योंकि वह एक बड़ी आय तथा रोजगार सृजन का जरिया होती है |
अन्य बाधाएं तब उत्पन्न होती हैं जब एक गरीब देश पश्चिम के देशों को मानक मानकर धन अर्जन के उद्देश्यों को सामने रखता है ऐसी परिस्थिति में उस देश में सरकार द्वारा कार्बन उत्सर्जन तथा प्रदूषण के लिए किए जाने वाले उपायों को लागू करने में समस्याएं आती हैं|
एक रोचक तथ्य के अंतर्गत यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि नवीकरणीय ऊर्जा भविष्य में आय तथा रोजगार संबंधी नई चुनौतियों को पैदा कर सकती है |आर्थिक सिद्धांतों के अनुसार कोई भी नया उद्योग रोजगार सृजन तभी कर सकता है जब उत्पादन श्रम प्रधान हो और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के बारे में यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि भविष्य में यह पूंजी प्रधान अधिक होने वाला है|
चिंता की बात यह है की हमारी राष्ट्रीय सरकारों ने अर्थव्यवस्था में स्थिरता के नाम पर अनेकों रेगुलेशन प्रस्तावित किए हुए जो भविष्य में ग्रीन इकॉनमी के नाम पर और भी कड़े बनाए जाएंगे इसके साथ ही व्यक्तिगत स्तर के प्रयास ही पृथ्वी पर मानव जीवन के भविष्य को निर्धारित करेंगे|
Q. विकास और पर्यावरण परस्पर विरोधी आयाम है| इस कथन के सन्दर्भ में विश्लेषण कीजिए की क्या भारत को अपनी आर्थिक व सामाजिक चिंताओं को दरकिनार कर पर्यावरणीय मुद्दों को वरीयता देनी चाहिए |