Context
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड-19 के संकट से चरमराती देश की अर्थव्यवस्था के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान की अहम कड़ी के तौर पर बड़े आर्थिक पैकेज का एलान किया। अगले दिन वित्त मंत्री ने इस पैकेज के बारे में विस्तार से बताया, जिसमें एमएसएमई (लघु, कुटीर और मध्यम उद्योग) क्षेत्र की मदद पर जोर है। वित्त मंत्रालय के पिछले पैकेज और रिजर्व बैंक के कदमों को जोड़ दें, तो कुल पैकेज 20 लाख करोड़ रुपये का होगा, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 10 फीसदी के बराबर है।
What is there in Package
- नए आर्थिक पैकेज में ग्रामीण भारत, कुटीर उद्योगों, सूक्ष्म, लघु एवं मंझोले उद्यमों, किसानों और मध्यवर्ग सहित सभी वर्गों पर खास ध्यान केंद्रित किया गया है। इस पैकेज के जरिये आत्मनिर्भरता के पांच स्तंभों को मजबूत करने का लक्ष्य रखा गया है।
- इनमें तेजी से छलांग लगाती अर्थव्यवस्था, आधुनिक भारत की पहचान बनता बुनियादी ढांचा, नए जमाने की तकनीक केंद्रित व्यवस्थाओं पर चलता तंत्र, देश की ताकत बन रही आबादी और मांग व आपूर्ति चक्र को मजबूत बनाना शामिल है। नया पैकेज न केवल अर्थव्यवस्था को गतिशील करेगा, वरन देश को आत्मनिर्भरता की नई डगर पर आगे बढ़ाता हुआ भी दिखाई देगा।
What international reports says
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपनी नई रिपोर्ट में कहा है कि यद्यपि कोरोना के कारण भारत की विकास दर में तेज गिरावट आएगी, पर विशाल खाद्यान्न भंडार और ग्रामीण अर्थव्यवस्था भारत के लिए सहारा होंगे। एशियाई विकास बैंक ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत के पास कृषि और खाद्यान्न जैसे मजबूत आर्थिक बुनियादी घटक है, जिनकी ताकत से यह अगले वित्त वर्ष में जोरदार आर्थिक वृद्धि करता दिखाई दे सकेगा। 2008 की वैश्विक मंदी में भी भारत दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में कम प्रभावित हुआ था। इसकी वजह थी देश के ग्रामीण बाजार की जोरदार ताकत। कोविड-19 के बीच फिर भारत के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था का महत्व दिखाई दे रहा है। महामारी का प्रसार रोकने के लिए जहां शहरी भारत का बड़ा हिस्सा लॉकडाउन में है, वहीं ग्रामीण भारत के बड़े क्षेत्र को शीघ्रतापूर्वक लॉकडाउन से बाहर लाया गया।
- देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का योगदान करीब 17 फीसदी है। पर देश के 60 फीसदी लोग खेती पर आश्रित हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी है और शेष 50 फीसदी में छोटे-मंझोले उद्योग और सेवा क्षेत्र का योगदान है।
- कोविड-19 के बीच भारत का मजबूत पक्ष यह है कि देश के सामने 135 करोड़ लोगों की भोजन संबंधी चिंता नहीं है। अप्रैल अंत तक देश के पास करीब 10 करोड़ टन खाद्यान्न का सुरक्षित भंडार सुनिश्चित हो गया है, जिससे करीब डेढ़ साल तक खाद्यान्न जरूरतें पूरी की जा सकती है।
- यही नहीं, कृषि मंत्रालय द्वारा पेश 2019-20 के दूसरे अग्रिम अनुमान के आंकड़े बता रहे हैं कि देश में खाद्यान्न उत्पादन 29.19 करोड़ टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है। जबकि आगामी फसल वर्ष 2020-21 में खाद्यान्नों का उत्पादन लक्ष्य 29.83 करोड़ टन रखा गया है। अच्छे मानसून की संभावना न केवल कृषि जगत के लिए, बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद है।
लॉकडाउन में सरकार के प्रयासों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सराहनीय सक्रियता दिखाई दे रही है। किसानों को उनकी उपज मंडियों के अलावा सीधे बेचने की भी इजाजत दी गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, पशुपालन और डेयरी उत्पादन को अहमियत दी गई है, तो रोजगार के सबसे बड़े स्रोत मनरेगा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। अधिक लोगों को रोजगार मिल सके, इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों की मौजूदा सिंचाई और जल संरक्षण योजनाओं को भी मनरेगा से जोड़ दिया गया है।
अच्छे मूल्यों पर फसल खरीदे जाने के साथ-साथ किसानों की आय बढ़ाने के प्रयास ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाएंगे। जो मजदूर गांव लौट गए हैं, वे कुछ महीनों तक गांवों में ही कृषि कार्य करेंगे। इससे खाने-पीने और रोजमर्रा की जरूरत की चीजों की मांग बढ़ेगी। जन-धन खातों में नकदी डालने जैसे प्रयासों से ग्रामीण परिवारों की आय बढ़ेगी, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
कोरोना के कारण देश में किसानों द्वारा खेत तैयार करने, बुआई और फसल कटाई में मशीनों का अधिक प्रयोग, सरकार द्वारा गोदामों एवं शीतगृहों को बाजार का दर्जा दिया जाना, निजी मंडियां खोलने की अनुमति, कृषक उत्पादक संगठनों को मंडी की सीमा के बाहर लेन-देन की अनुमति, श्रम बचाने वाले उपकरणों के कारण कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण और फसल विविधीकरण जैसे जो सुधार दिखाई दे रहे हैं, यदि वे बाद में भी जारी रहे, तो कृषि क्षेत्र को इसका लाभ मिलेगा।
चुनौतियों के बीच हमें बाजार में आ रही रबी फसल के विपणन के लिए मौजूदा मंडी खरीद प्रणाली से आगे बढ़कर सभी मार्केटिंग चैनल खोलने की रणनीति पर आगे बढ़ना होगा, ताकि सीधे किसान से खरीद भी हो सके। मनरेगा को न केवल कारगर ढंग से लागू किया जाए, बल्कि मजदूरी के लंबित भुगतान एवं काम मांगने पर काम दिलाने जैसी समस्याओं का भी समाधान निकाला जाए। ग्राम पंचायतों एवं सामुदायिक संगठनों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में साफ-सफाई की अहमियत के बारे में स्पष्ट संदेश लगातार प्रसारित किए जाएं, ताकि ग्रामीण इलाकों में शारीरिक दूरी के नियमों का पालन सुनिश्चित हो सके।
उम्मीद करनी चाहिए कि कोविड-19 के संकट से देश को उबारने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा घोषित व्यापक आर्थिक पैकेज न केवल अर्थव्यवस्था को चरमराने से बचाएगा, वरन ग्रामीण भारत और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देकर देश को आत्मनिर्भरता की डगर पर आगे बढ़ाएगा।
Reference: https://www.amarujala.com/