Solar farming is a new concept which not only help in energy production but will also help in ecological way too.
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फसलों की खेती के साथ ही सौर ऊर्जा के विस्तार के लिए भी जमीन की उपलब्धता एक प्रमुख अवयव है। अगर इन दोनों क्षेत्रों को एक साथ समाहित करते हुए सौर-सह-कृषि खेत में तब्दील किया जा सके तो इस कमी को दूर किया जा सकता है। दोनों के सामंजस्य से जमीन के उसी टुकड़े से होने वाली आय में खासी बढ़ोतरी हो जाएगी। जापान, चीन, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे देशों में इस अवधारणा को सफलतापूर्वक आजमाया जा चुका है। जमीन के उपभोग स्तर को बढ़ाने के अलावा खेतों में लगी फोटो वोल्टिक प्लेटों (सौर प्लेट) के जरिये पैदा होने वाली बिजली न केवल खेती संबंधी कार्यों के लिए इस्तेमाल की जा सकेगी बल्कि अतिरिक्त बिजली को बेचा भी जा सकेगा।
- कृषि-सह-सौर खेती से होने वाले लाभ उस समय और भी अधिक बढ़ जाएंगे जब उसमें वर्षा-जल संचयन को भी जोड़ दिया जाए। इस तरह एक ही जमीन खेती के अलावा सौर ऊर्जा उत्पादन और वर्षा जल संचयन में भी इस्तेमाल की जा सकेगी।
- खेतों में लगी सौर प्लेटों पर गिरने वाले बारिश के पानी को सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
- अगर सौर खेती को प्रोत्साहन दिया जाए तो 100 गीगावॉट सौर ऊर्जा के उत्पादन और वर्ष 2022 तक कृषि आय को दोगुना करने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को भी हासिल करने में मदद मिलेगी।
- विदेशों में सौर खेती के विभिन्न डिजाइन एवं मॉडल तैयार किए गए हैं और उन्हें स्थानीय जरूरतों के हिसाब से संशोधित किया जा सकता है। खासकर सूर्य की रोशनी की उपलब्धता को देखते हुए मॉडल परिवद्र्धित किए जा सकते हैं।
- जापान में इसे सौर साझेदारी का नाम दिया जाता है। वहां पर खेतों में फोटो-वोल्टिक पैनल इतनी ऊंचाई पर लगाए जाते हैं कि उनसे छनकर पर्याप्त रोशनी नीचे जमीन तक पहुंच जाती है जो कम रोशनी में उगने वाले पौधों के लिए काफी होती है। वहीं जर्मनी में इन सौर प्लेटों को इस तरह डिजाइन किया गया है कि हमेशा सूर्य की दिशा में रखने के लिए उन्हें घुमाया जा सकता है।
भारत में सौर खेती का सर्वाधिक अनुकूल और वैज्ञानिक रूप से आजमाया हुआ मॉडल जोधपुर स्थित केंद्रीय बंजर क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) का है। इस संस्थान के निदेशक ओ पी यादव के मुताबिक सौर खेती का यह मॉडल पश्चिम राजस्थान, पश्चिमोत्तर गुजरात और पंजाब एवं हरियाणा में फैली विशाल बंजर भूमि के लिए काफी अनुकूल है। पश्चिमोत्तर भारत के करीब 3.2 करोड़ हेक्टेयर इलाके में बंजर भूमि पाई जाती है। खास बात यह है कि अधिकांश मौसम में इस बंजर इलाके में प्राकृतिक रोशनी भी पर्याप्त मात्रा में मिलती है।
CAZARI research & Suggestion
- काजरी ने जोधपुर में 105 किलोवॉट क्षमता का एक सौर-कृषि खेत तैयार किया है। करीब एक एकड़ जमीन पर बनाए गए सौर फार्म का बड़ा हिस्सा खेती के लिए पूरी तरह खाली है।
- सौर पैनल लगने के बाद भी 49 फीसदी जमीन फसलों के लिए उपयुक्त है। इसके अलावा सौर प्लेटों के नीचे की 24 फीसदी जमीन भी फसल उगाने लायक है। कम लंबाई वाली और पानी की कम जरूरत वाली फसलें इस खेत में बोई जा सकती हैं।
- काजरी ने इस खरीफ सत्र में यहां मूंग, मोठ, ग्वारफली, एलोवेरा, सोनामुखी और शंखपुष्पी की फसलें लगाई थी। सौर पैनल पर इक_ïा वर्षा जल को पाइप के सहारे खेत में बने भूमिगत टैंक में जमा कर लिया जाता है। सौर प्लेटों से पैदा होने वाली बिजली को निर्धारित दरों पर पावरग्रिड में भेज दिया जाता है।
- काजरी का सुझाव है कि मिर्च, प्याज, लहसन और बंदगोभी जैसी सब्जियों को सौर पैनल के नीचे की जमीन पर बोया जा सकता है। इससे सौर पैनलों के आसपास का तापमान कम रखने में भी मदद मिलती है जिससे बिजली उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी तरफ सौर पैनलों की कतारों के बीच की जगह में फसलें उगाने से मृदा अपरदन रोकने में मदद मिलती है जिससे पैनल पर धूल नहीं पसरती और पैनल की क्षमता बढ़ती है। जोधपुर जैसे इलाके में दिन भर में चार से पांच घंटे तक तेज धूप होती है। इस वजह से 105 किलोवॉट क्षमता वाली यह सौर इकाई खिली धूप में 420 किलोवॉट बिजली भी पैदा कर लेती है।
इन फायदों के बावजूद हमें इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि इस तरह के एकीकृत खेतों को तैयार करने में अच्छी-खासी लागत लगती है। अगर काजरी के मॉडल को ही देखें तो उसे जोधपुर में यह कृषि-सह-सौर खेत तैयार करने में 52.33 लाख रुपये खर्च करने पड़े। इसके अलावा वर्षा-जल संचय की व्यवस्था करने में अलग से सात लाख रुपये लगानेे पड़े। इतने बड़े पैमाने पर निवेश कर पाना देश के अधिकतर किसानों के लिए नामुमकिन है।
इस स्थिति में सौर ऊर्जा के उत्पादन में लगे उद्यमियों को किसानों के साथ मिलकर काम करने की सलाह दी जाती है। अगर किसान और सौर ऊर्जा कारोबारी आपसी सहमति से खेतों में सौर ऊर्जा पैनल लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं तो उससे दोनों पक्षों को ही फायदा होगा। अगर दोनों पक्षों के बीच भागीदारी नहीं बन पाती है तो कृषि-सह-सौर खेती को व्यावहारिक एवं लाभप्रद बना पाना संभव नहीं हो पाएगा।