In a landmark judgement SC has invalidated IPC Section 375 (2)
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नाबालिग पत्नी के साथ शारीरिक संबंध को दुष्कर्म माना जाए या नहीं? एक याचिका की शक्ल में सामने आए इस जटिल सवाल पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट इस नतीजे पर पहुंचा कि ऐसे संबंध न केवल दुष्कर्म के तहत आएंगे, बल्कि संबंध बनाना वाला पोक्सो कानून के तहत सख्त सजा का अधिकारी भी होगा
Provision in IPC
- कानून के अनुसार लड़की की शादी और आपसी रजामंदी से यौन संबंध बनाने के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है, परंतु आइपीसी की धारा 375 (2) में दिए गए अपवाद के तहत 15 से 18 साल की उम्र की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने पर पति को दुष्कर्म का दोषी नहीं माना जाता था।
What SC said
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार जब 18 साल से कम उम्र की लड़की शादी नहीं कर सकती और सहमति के बावजूद यौन संबंध नहीं बना सकती तो फिर नाबालिग लड़की से विवाह की स्थिति में पति को छूट देना संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 (बराबरी और जीवन तथा व्यक्तिगत आजादी का अधिकार) के उल्लंघन के साथ-साथ महिला के अधिकारों का भी हनन है। हालांकि कानूननबाल विवाह निषेध है, लेकिन बावजूद इसके तथ्य यह है कि देश में 2 करोड़ 30 लाख नाबालिग लड़कियां शादीशुदा है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार हिंदुओं में 31.3 प्रतिशत, मुस्लिमों में 30.6 प्रतिशत, ईसाइयों में 12 प्रतिशत और सिखों में 10.9 प्रतिशत लड़कियों की शादी नाबालिग उम्र में हो गई। ऐसी स्थिति में यह कहना कठिन है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से नाबालिग विवाह पर रोक लगेगी।
Will it have retrospective effect?
यह अच्छी बात है कि नाबालिग विवाह के पुराने मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन यदि नाबालिग पत्नी द्वारा संबंध बनाने से इन्कार करने पर तलाक की नौबत आती है तो क्या राज्य सरकारें पीड़ित लड़कियों का पुनर्वास करने में सक्षम होंगी?
Other Questions
- एक सवाल यह भी है कि यदि नाबालिग लड़की विवाह उपरांत बच्चे को जन्म देती है तो नवजात की स्थिति क्या होगी? सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि पोक्सो कानून और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के अनुसार 18 साल से कम उम्र के किशोर-किशोरियों के साथ यौन संबंध अपराध है।
- पोक्सो की धारा-42 ए के विशेष कानून होने की वजह से यह अन्य कानूनों से ऊपर है। अपने देश में कानून के अनुसार 18 वर्ष के उम्र में लड़के वोट देने का अधिकार के साथ ड्राइविंग और कई राज्यों में शराब पीने का अधिकार हासिल कर लेते हैं, लेकिन शादी के लिए उनकी न्यूनतम आयु अभी भी 21 वर्ष है। अब अगर 18 वर्ष की लड़की 18 वर्ष से कम के लड़के के साथ ब्याह रचाए तो क्या होगा? क्योंकि लड़के की शादी की न्यूनतम उम्र तो 21 वर्ष है। क्या ऐसे मामलों में लड़की को भी पोक्सो कानून के तहत दोषी माना जा सकता है?
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बाल विवाह के चलन जारी रहने संबंधी कई रपटों का जिक्र किया है। इन रपटों से यही साबित होता है कि छोटी उम्र में बच्चियों की शादी से उनके शरीर और मन पर बुरा प्रभाव पड़ने के साथ-साथ नवजात शिशुओं की मौत भी होती है।
- सुप्रीम कोर्ट के इस निष्कर्ष से असहमत नहीं हुआ जा सकता। उसका यह कहना भी सही है कि बाल विवाह को सरकार और सिविल सोसाइटी को सख्ती और जमीनी स्तर पर काम से रोकना होगा।
What is the solution
दरअसल होना तो यह चाहिए कि नाबालिगों की शादी होने ही न होने पाए। नाबालिगों की शादी एक सामाजिक बुराई है। इसे लोगों को जागरूक करके ही रोका जा सकता है, न कि नित-नए कानून बनाकर या फिर अदालती फैसलों के जरिये। इस फैसले के बाद यह तय माना जा रहा है कि बालिग दंपत्तियों के मामले में शारीरिक संबंध के दौरान जोर-जबरदस्ती को भी दुष्कर्म करार दिया जा सकता है। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध बनाने से विवाह, परिवार और समाज की व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाएगी। सरकारी की ऐसी दलील को महत्व मिलने के आसार अब और कम हो गए है। आखिर जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाबालिग लड़की को अपने शरीर पर खुद फैसला लेने का हक मिल गया और उससे संबंध बनाना दुष्कर्म की श्रेणी में आ गया तब फिर वैवाहिक दुष्कर्म को मान्य कैसे ठहराया जा सकता है? चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि नाबालिग विवाह में संबंध के मामले में उसका फैसला वैवाहिक दुष्कर्म पर टिप्पणी नहीं है इसलिए दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले की प्रतीक्षा करनी होगी। इसके बावजूद इतना तो है ही कि अगर वैध विवाह में या बालिग दंपतियों में जबरन शारीरिक संबंध दुष्कर्म करार दिया जाता है तो यह एक तरह से बेडरूम में पुलिस की दखलंदाजी बढ़ाने वाला मामला होगा। सहमति से संबंध और जबरन संबंध में तो अंतर करना कठिन होगा ही, इस अंतर को साबित करना भी दुष्कर होगा।
बाल विवाह मामले में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि ऐसे विवाह कानूनन निषेध होने के बावजूद हो रहे हैैं। सुप्रीम कोर्ट को यह भी देखना चाहिए कि उसके तमाम फैसले निष्प्रभावी रहे है। उसने गुटखे पर पाबंदी लगाई थी, लेकिन वह पहले से ज्यादा धड़ल्ले से बिक रहा है। पटाखे बेचने पर पाबंदी के उसके फैसले के बारे में भी यह माना जा रहा है कि इससे पटाखों के चलन पर रोक लगना कठिन है, क्योंकि नियमन के तौर-तरीके नहीं अपनाए गए। तीन तलाक के फैसले के बाद भी यह सवाल उठा था कि आखिर जमीन पर इस फैसले का कितना असर होगा? बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई कानूनी मसला होने के साथ लैंगिक, जनसांख्यिकीय, स्वास्थ्य, शिक्षा का मुद्दा भी है। हर मामले में न्यायिक सक्रियता लोकतंत्र और समाज के लिए शुभ नहीं है। देश की सामाजिक परिस्थिति और यथार्थ को देखते हुए संसद ने नाबालिग लड़कियों को अपवाद के माध्यम से कानूनी सुरक्षा प्रदान किया था, जिसे बाल संरक्षण के नाम पर सुप्रीम कोर्ट ने एक झटके में रद करते हुए यह भी कह दिया कि अपवाद को खारिज करने से नया कानून नहीं बनता। येल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर स्टीफेन कार्टर के अनुसार अभिजात्य न्यायिक व्यवस्था से सामाजिक क्रांति लाना मुश्किल है। सुप्रीम कोर्ट अपने कई आदेशों के माध्यम से कानूनी समाज बनाने की कोशिश कर रहा है, जबकि देश को कानून सम्मत बनाने की जरूरत है, ताकि कानून का सही पालन हो।
QUESTIOn:
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