सोच-समझकर ही करें शहरों में जल का इस्तेमाल


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दक्षिण भारत में कृषि क्षेत्रों और त्वरित विकास करते शहरों से होकर बहने वाली कावेरी और दक्षिण अफ्रीका के आधुनिक शहर केप टाउन के साथ कुछ ऐसी बातें हैं, जिनके तार एक दूसरे से जोड़े जा सकते हैं। केप टाउन फिलहाल जल संकट से गुजर रहा है और वहां के अधिकारियों ने चेतावनी जारी कर दी है कि शहर के जल स्रोत जल्द ही सूख जाएंगे।
उच्चतम न्यायालय ने फरवरी 2018 में कावेरी जल के आवंटन पर ऐतिहासिक निर्णय दिया था और इसके साथ ही लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर भी विराम लग गया। हालांकि इस निर्णय के बाद कुछ असुविधाजनक सवाल भी खड़े हो गए हैं, जो यह तय करेंगे कि शहर किस तरह जल का समझदारी और बुद्धिमता के साथ इस्तेमाल करेंगे।
उच्चतम न्यायालय ने कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के निर्देश में बदलाव किए हैं और बेंगलूरु के लिए अतिरिक्त जल आवंटित करने का आदेश दिया है। यह तर्क दिया गया है कि बेंगलूरु ‘ज्ञान एवं बुद्धिमता’, खासकर सूचना-प्रौद्येगिकी और तेज व्यवसायिक गतिविधियों के लिहाज से एक प्रमुख केंद्र है। न्यायाधिकरण ने इस शहर को 1.75 अरब घन फुट (टीएमसी) जल आवंटित किया था, जिसे न्यायालय ने बढ़कार 6.5 टीएमसी कर दिया।
न्यायाधिकरण ने बेंगलूरु के लिए जल आवंटित करते वक्त निम्रलिखित बातों पर गौर किया था। इनमें पहला बिंदु यह था कि शहर को उतना ही पानी मिलेगा, जितनी इसकी वाजिब हिस्सेदारी बनती है। न्यायाधिकरण ने तय किया कि कावेरी बेसिन में शहर का केवल एक तिहाई हिस्सा आता है, इसलिए इसकी जल की एक तिहाई मांग की ही पूर्ति की जाएगी। उच्चतम न्यायालय ने यह तर्क पलट दिया और कहा कि बेंगलूरु जैसे शहर को इसकी भौगोलिक स्थिति से इतर अधिक पानी की जरूरत है।
न्यायाधिकरण का दूसरा तर्क था कि भूमिगत जल शहर की पानी की 50 प्रतिशत मांग पूरी करेगा। इस तरह, शहर को केवल 50 प्रतिशत जल ही नदी से आवंटित किया जाएगा। न्यायालय ने यह तर्क सिरे से खारित कर दिया और इसे अस्वीकार्य बताया।
बेंगलूरु एक ऐसे शहर का ‘मानक’ उदाहरण है, जो सब कुछ जानते-समझते और अपनी मर्जी से झील को बर्बाद कर रहा है। इन झीलों से बेंगलूरु को भूमिगत जल का स्तर बरकरार रखने में मदद मिलेगी और बारिश का जल सहेज कर रखने में आसानी होगी। दूसरी तरफ न्यायालय ने कहा कि बेंगलूरु को अपने झीलों की चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसे जल आपूर्ति के लिए भूमिगत जल पर निर्भर नहीं रहना होगा। जरूरत इस बात पर जोर देने की थी कि बेंगलूरु पहले अपने जल संसाधनों का इस्तेमाल करता और पानी की किल्लत होने पर कावेरी के जल पर विचार करता।
यह तर्क इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि कावेरी नदी से जल परिवहन बेंगलूरु के लिए महंगा सौदा साबित हो रहा है और यह इतना महंगा है कि लोग भूमिगत जल के इस्तेमाल की तरफ बढ़ रहे हैं। इस तरह, यह एक दोहरी फांस है। पहले तो शहर अपने स्थानीय जल स्रोतों की परवाह नहीं करेगा और इसके लोगों के पास इस स्रोत के अधिक से अधिक दोहन के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं रह जाएगा। एक बात पूरी तरह समझ लेनी चाहिए कि बेंगलूरु को इस जल आवंटन से फायदा नहीं हुआ है।
न्यायालय ने अपने आदेश में न्यायाधिकरण के तीसरे सिद्धांत को सही ठहराया। न्यायाधिकरण ने कहा कि शहर की पानी की मांग की गणना 20 प्रतिशत पर की जाएगी। दूसरे शब्दों में कहें तो शहर इतना ही पानी ‘इस्तेमाल’ करता है। शेष जल, जिसकी मांग और आपूर्ति की जाती है, वह अपशिष्टï जल के तौर पर बाहर निकलती है। यानी इसका उपभोग नहीं होता है। यह कहा जा सकता है कि शहर के पास इस अपशिष्टï जल को शुद्ध कर इसके दोबारा इस्तेमाल करने की योजना तैयार नहीं है। यही जल का गणित उल्टा पड़ जाता है। तमिलनाडु और इसकी राजधानी चेन्नई की शिकायत है कि कर्नाटक पर्याप्त पानी नहीं छोड़ रहा है और उनके हाथ केवल इस्तेमाल किया जल ही लग रहा है। यहां पर बेंगलूरु को अपना रवैया बदलने की जरूरत है।
न्यायालय ने कहा है कि आवंटन में पेय जल को सर्वाधिक प्राथमिकता दी जाएगी। कृषि एवं खाद्य क्षेत्र की पानी की मांग से भी इसे अधिक तवज्जो दी जाएगी। इससे कुछ नए विवाद खड़े हो सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत जैसे देश में ज्यादातर लोग कृषि क्षेत्र से रोजगार प्राप्त करते हैं, इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में जल का खूब इस्तेमाल होता है। पश्चिमी देशों में लोगों की खेती पर निर्भरता कम हो गई है और वे गांवों से शहरों की तरफ आ गए हैं। इससे जल का अब ज्यादातर इस्तेमाल शहरों और वहां के उद्योग-धंधों में होता है।
 

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