दुर्गा मूर्ति विसर्जन विवाद :एक खतरनाक राजनीति का भी उदाहरण है


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इस बात की बहुत संभावना है कि ममता बनर्जी ने एक तरह की वोटबैंक की राजनीति के चलते ही इस साल मुहर्रम के दिन दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था. लेकिन कलकत्ता हाई कोर्ट ने तीखी टिप्पणियां करते हुए जिस तरह इस आदेश को रद्द किया है, उससे वोट बैंक की यह राजनीति कटघरे में खड़ी हो गई है. हाई कोर्ट के दखल के बाद अब मुहर्रम के दिन भी दुर्गा मूर्ति विसर्जन होगा.

यहां न्यायपालिका ने एक बार फिर राजनेताओं को धर्म के साथ राजनीति, इस मामले में कहें तो कानून-प्रशासन को न मिलाने की बात याद दिलाई है.
 बंगाल ने भारत विभाजन के दौर में खूब दंगे-फसाद देखे हैं, लेकिन उसके बाद बीते सात दशकों से यहां हिंदू, मुसलमान और अन्य धर्मावलंबी शांति और सौहार्द्र से रहते आ रहे हैं. वैसे मोहर्रम कोई त्योहार नहीं है, बल्कि इस दिन पैगम्बर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की मौत का मातम बनाया जाता है. वहीं जब त्योहारों की तारीखें भी एक साथ या आगे-पीछे पड़ती हैं तो अलग-अलग धर्मों के लोगों के लिए त्योहार मनाने में इस तथ्य से कोई मुश्किल पेश नहीं आती.


Big question ?

जहां तक कानून-प्रशासन की बात है तो पुलिस को दुर्गा मूर्ति विसर्जन और ताजिये निकालने के लिए अलग-अलग रास्ते चिह्नित करने का निर्देश दिया जाना, नियमित प्रशासनिक कार्यवाही है. बंगाल में जब इतने सालों से इन्हीं दिनों में बिना किसी दंगे-फसाद के कई सारे त्योहार मनाए जाते रहे हैं तो फिर इस बार पुलिस को अचानक कानून-व्यवस्था भंग होने का डर क्यों सताने लगा? ऐसा लगता है कि यह जबर्दस्ती का मुद्दा बनाकर धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के करीब दिखने की नेताओं की एक सोची-समझी रणनीति थी.

ममता बनर्जी उस विचारधारा की राजनीति से निकली हैं जिसके तहत चुनाव जीतने के लिए गाहे-बगाहे धार्मिक संवेदनाओं को छेड़ना गलत नहीं माना जाता. यहां कहा जा सकता है कि वे दो त्योहारों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करके, समुदायों को भी बांटने का काम कर रही थीं.
ममता बनर्जी की सरकार इस मायने में असफल कही जा सकती है कि वह धार्मिक जुलूसों को इस तरह आयोजित करवाने में नाकाम रही जिससे कि सांप्रदायिक तनाव पैदा होने से रोका जा सके. वहीं अजीब बात यह रही कि सरकार ने एक जुलूस पर तो पाबंदी लगा दी, लेकिन दूसरे को अनुमति दे दी. इस तरह से दो समुदायों के बीच खाई बढ़ाने की कोशिश की गई. कोई भी निष्पक्ष प्रशासन ऐसा सोच भी नहीं सकता. क्या यहां जज को यह कहने की जरूरत थी कि लोगों को अपनी-अपनी धार्मिक गतिविधियां आयोजित करने की छूट है. भारत जैसी धार्मिक विविधता वाले देश के बंगाल जैसे बहु-सांस्कृतिक प्रदेश में जो सरकार होगी, उसे साफ तौर पर यह बात पता होनी चाहिए.


अदालत ने सुनवाई के दौरान यह भी याद दिलाया कि मुख्यमंत्री कहती रही हैं कि प्रदेश में लोग सांप्रदायिक सौहार्द्र के साथ रहते हैं, जबकि उनका प्रशासन मूर्ति विसर्जन टालने के लिए सांप्रदायिक टकराव की आड़ ले रहा है. यह एक तरह से ममता बनर्जी के लिए सकारात्मक टिप्पणी थी. इस मुद्दे पर स्थिति साफ होने के बाद अब यह तृणमूल सरकार की जिम्मेदारी है कि वह मोहर्रम और दुर्गा मूर्ति विसर्जन के दौरान शांतिपूर्ण हालात सुनिश्चित करे और यह भी सुनिश्चित करे कि भविष्य में बेवजह समुदायों के बीच फर्क पैदा न किया जाए

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