Context
सर्वोच्च अदालत ने चुनाव सुधारों के लिये महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए प्रत्याशियों के लिये अपने व पत्नी तथा आश्रित संतानों की संपत्ति और इसके स्रोत की घोषणा अनिवार्य करने की व्यवस्था देकर आय छिपाने वाले लोगों को बहुत बड़ा झटका दिया है। यह निर्णय निचले स्तर से लेकर संसद तक के लिये चुनावों की पवित्रता बनाये रखने दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है।
Why this Step?
विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं पर संसद या विधानमंडल के लिये निर्वाचित होने के बाद उनके अचानक ही दौलतमंद बनने और आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप लगते रहे है। इसलिए न्यायालय चाहता है कि सांसदों और विधायकों के पास अगर आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति का पता चलता है तो उन्हें चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करने के लिये कानून बनाया जाये।
इसी तरह, संबंधित कानून और चुनाव कराने संबंधी नियमों में संशोधन करने तथा फार्म 26 से आय के स्रोत और किसी सरकारी एजेन्सी या सार्वजनिक उपक्रम में प्रत्याशी या उसकी पत्नी या आश्रितों के पास कोई ठेका होने संबंधी जानकारी देने का भी प्रावधान जोड़ने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने हाल ही में गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी की जनहित याचिका पर अपने फैसले में स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘ऐसे व्यक्ति सभी अच्छी सरकारों के दुश्मन हैं और उन्हें विधायी मंडलों की सदस्यता के अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए।’
इस संबंध में न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि निर्वाचित प्रतिनिधि, उसकी पत्नी तथा आश्रित बच्चों की संपत्ति में आय के ज्ञात स्रोत से अधिक वृद्धि होती है तो इसका यही निष्कर्ष निकलेगा कि निर्वाचित प्रतिनिधि ने अपने पद का दुरुपयोग किया है। इतना तो निश्चित है कि निर्वाचित सदस्य इस बिन्दु पर अयोग्यता के प्रावधान के लिये कानून में संशोधन के प्रयास का वैसा ही विरोध करेंगे जैसा कि निर्वाचित प्रतिनिधिनियों को दो साल से अधिक की सजा होने की स्थिति में उनकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से समाप्त होने संबंधी व्यवस्था को निष्प्रभावी बनाने के लिये किया गया था।
Some fact in tis regard
इस मामले में केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा न्यायालय को दी गयी जानकारी में 98 विधायक और लोकसभा के सात सांसद घोषित संपत्ति में पहली नजर में विसंगतियां होने की वजह से जांच के दायरे में थे।
राज्यसभा के नौ सदस्यों और 42 विधायकों के मामलों की जांच लंबित थी। हालांकि लोकसभा के 19, राज्यसभा के दो सांसदों और 117 विधायकों की संपत्ति की कीमत और उनकी आय के स्रोत में कोई विसंगति नहीं मिली थी। प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने जांच के दायरे में आने वाले लोकसभा के 26, राज्यसभा के 11 सदस्यों और 257 विधायकों की सूची सीलबंद लिफाफे में न्यायालय को सौंपी थी।
यह पहला अवसर नहीं है जब शीर्ष अदालत ने चुनाव प्रक्रिया में सुधार के लिये इस तरह का कड़ा कदम उठाया है। न्यायालय ने दो मई, 2002 को दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ केन्द्र सरकार की अपील पर निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया था कि वह संविधान के अनुच्छेद 324 में प्रदत्त अधिकार का इस्तेमाल करके प्रत्याशियों से हलफनामे में उन्हें किसी अपराध में दोषी ठहराये जाने के बाद यदि सजा हुई है,तो उसका ब्योरा और अदालत में आपराधिक मामला, यदि कोई हो, तो उसका ब्योरा देने को कहा गया। इसके अलावा प्रत्याशी से उसकी चल-अचल संपत्ति, बैंक में जमा राशि और सरकार अथवा वित्तीय संस्थानों की किसी प्रकार की देनदारी तथा शैक्षणिक योग्यता की जानकारी मांगने का निर्देश दिया था।
इसी तरह, नामांकन पत्र में पत्नी के नाम वाला तथा अन्य स्थान रिक्त छोड़ने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाते हुए न्यायालय कह चुका है कि नामांकन पत्र का कोई भी स्थान रिक्त नहीं छोड़ा जाना चाहिए और यदि इसमें गलत जानकारी दी तो ऐसी स्थिति में नामांकन रद्द हो जायेगा। यही नहीं, नामांकन के साथ हलफनामे में गलत जानकारी देना भी आपराधिक कृत्य है। इसके लिये कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
फैसले में इस तरह की व्यवस्था निर्वाचित होने वाले सांसदों और विधायकों को भ्रष्ट आचरण अपनाने से दूर रहने के लिये सजग करती रहेगी। यदि अगले चुनाव में दिये गये विवरण पिछले चुनाव के समय दी गयी जानकारी में बहुत अधिक विसंगति हुई तो निश्चित ही ऐसे मामले न्यायिक समीक्षा के दायरे में भी आयेंगे।
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