कोरोना का दौर केंद्र और राज्य सरकारों के आपसी संबंधों के लिए कड़ा इम्तिहान

 

CONTEXT

  • केरल, पंजाब, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, राजस्थान जैसे राज्य तो किसी न किसी मुद्दे पर आक्रोशित हैं ही, बिहार में बीजेपी के सहयोग वाली सरकार चला रहे मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने भी लॉकडाउन में आवाजाही और परिवहन को लेकर कड़ी नाराजगी जताई है.
  • अंतरराज्यीय परिषद (इंटरस्टेट काउंसिल) को फिर से सक्रिय करने की मांग नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और एनआरसी को लेकर हुए व्यापक आक्रोश, विवाद और विरोध आंदोलनों के दौरान ही होने लगी थी. अब जबकि देश कोरोना महामारी के सघन दौर से गुजर रहा है तो जानकारों का मानना है कि ऐसा न हो कि राज्यों और केंद्र के बीच टकराव इतना तीखा हो जाए कि संघीय ढांचे पर ही इसका असर दिखाई देने लगे.

BACKGROUND

संविधान के अनुच्छेद 263 के जरिए ऐसी प्रविधि के लिए रास्ता बनाया गया था जहां केंद्र और राज्य आपसी समन्वय को सुदृढ़ कर सकें. केंद्र-राज्य संबंधों पर सरकारिया आयोग की रिपोर्ट के बाद 1990 में राष्ट्रपति के आदेश के जरिए अंतरराज्यीय परिषद के गठन को मंजूरी मिल गई थी |

COMPOSITION OF INTERSTATE COUNCIL

अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री और सदस्यों के रूप में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री, केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासक और छह केंद्रीय मंत्री शामिल होते हैं. लेकिन पिछले तीन दशकों में परिषद की महज छह बैठकें ही हो पाईं हैं. आखिरी बैठक एनडीए सरकार के पिछले कार्यकाल के दौरान नवंबर 2017 में हुई थी. केंद्र में दोबारा एनडीए सरकार बनी तो अगस्त 2019 में प्रधानमंत्री  की अध्यक्षता में अंतरराज्यीय परिषद का पुनर्गठन किया गया. केंद्रीय गृहमंत्री की अध्यक्षता में परिषद की स्टैंडिग कमेटी का भी पुनर्गठन किया गया है. 

FEDERATION IS NEED OF INDIA

भारत की विशालता, विविधता और व्यापकता को देखते हुए और आज के प्रतिस्पर्धी और राजनीतिक-आर्थिक रूप से संवेदनशील माहौल में सभी राज्यों के लिए एक सी नीति या एक सा फैसला लागू नहीं किया जा सकता. हो सकता है कि कोई फैसला किसी एक राज्य के लिए सही हो लेकिन दूसरे राज्य के हितों से टकराता हो, तो संघवाद की भावना पर ही असर पड़ेगा.

CONFRONTATION IN RECENT YEARS

  • हाल के वर्षों में मिसाल के लिए बीफ पर लगाए प्रतिबंध को ही ले सकते हैं. केरल, गोवा, तमिलनाडु और पूर्वात्तर राज्यों में इस आदेश का भारी विरोध हुआ था.
  • इसी तरह देश के 19 राज्यों की सरकारों ने सीएए लागू करने के खिलाफ अपनी विधानसभाओं में प्रस्ताव पास किए थे. सबसे पहले केरल ने सुप्रीम कोर्ट मे गुहार लगाते हुए अनुच्छेद 131 का हवाला दिया था, जिसके तहत केंद्र और राज्यों के आपसी विवादों में सुप्रीम कोर्ट को ही आखिरी निर्णय देने का प्रावधान है. केंद्र-राज्य संबंधों में गतिरोध की एक प्रमुख वजह वित्त आयोग की कुछ फंड आवंटन नीतियों को भी बताया जाता है.
  • पिछले दिनों मोटर वाहन अधिनियम में किए गए भारीभरकम बदलावों को अस्वीकार कर कई राज्यों ने इस कानून को शिथिल और लचीला बनाया. केंद्रीय परिवहन मंत्रालय ने उस दौरान कहा था कि उसके बदलाव राज्यों के लिए बाध्यकारी हैं लेकिन राज्यों ने इसे धमकाने की कोशिश की तरह लिया. जल बंटवारे की बात हो या जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के विस्थापन या पुनर्वास का मामला- राज्यों के साथ केंद्र के टकराव बढ़ते ही जा रहे हैं और इस दिशा में कोई सामंजस्यपूर्ण कोशिशें फिलहाल नजर नहीं आती. देश के आर्थिक विकास में राज्यों की बुनियादी भूमिका के बावजूद जीएसटी और नोटबंदी जैसे निर्णय एक अतिकेंद्रीकृत सत्ता व्यवस्था के निशान दिखाते हैं.
  • और इधर केंद्र ने 1887 के महामारी कानून और 2005 के आपदा प्रबंधन कानू को लागू कर असाधारण शक्तियां हासिल की. हालांकि मुख्यमंत्रियों से ऑनलाइन बैठकें कर प्रधानमंत्री ने ये दिखाने की कोशिश की है कि राज्यों को भरोसे में लेकर ही बड़े फैसले किए जा रहे हैं लेकिन ये भी सच्चाई है कि अंदरखाने राज्यों में केंद्र के रवैये को लेकर असंतोष भी हैं, खासकर लॉकडाउन से जुड़े नियम कायदों को लेकर, उद्योगों में काम बहाली या बंदी को लेकर, और केंद्रीयकृत जांच अभियानों के जरिए राज्यों से जवाबतलबी को लेकर. कुछ राज्यों ने इसे अपने अधिकारों में दखल और कार्यक्षमता पर सवाल उठाने की मंशा की तरह लिया. क्या इन टीमों का स्वरूप केंद्र और राज्य आपस में मिलकर तय नहीं कर सकते थे, ऐसे कुछ सवाल तो उठ ही रहे हैं. राज्यों की राहत पैकेज की मांग भी अब तक कार्रवाई का इंतजार कर रही है.

इस अभूतपूर्व संकट के बीच आपसी तालमेल और विश्वास का अभाव नहीं दिखना चाहिए. अत्यधिक केंद्रीकृत रवैये को भी छोड़ना होगा. ये कठिन समय केंद्र राज्य संबंधों के लिए भी कठिन इम्तिहान की तरह है. इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम ये हो सकता है कि अंतरराज्यीय परिषद को सक्रिय किया जाए जहां राज्य अपनी शिकायतें रख सकें, उनकी सुनवाई हो और उनके निराकरण की कोशिशें की जा सकें, सबसे अहम बात केंद्र और राज्यों के बीच संवादहीनता, संशय और गलतफहमी खत्म हो सकें. परिषद की बैठकें नियमित रूप से साल में कम से कम तीन बार रखी जा सकती हैं.

 

दुनिया के कई अहम देशों के भूगोलों से भी बड़े नक्शे वाले भारतीय राज्य किसी भी समन्वित कार्रवाई में बराबर के भागीदार बने रहना चाहेंगे, इससे कम की भूमिका न सिर्फ उन्हें नागवार गुजरेगी बल्कि वे उसे अपनी तौहीन भी मानेंगे. केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों में इस प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कड़वाहट को खत्म करने के लिए आपसी संवाद को और प्रगाढ़ और पारदर्शी बनाए जाने की जरूरत है. इसलिए महामारी के काल में डिस्टेंसिंग की अनिवार्यता का ख्याल रखते हुए भी केंद्र को राज्यों के और निकट जाना होगा तभी देश में संघवाद कामयाब बना रह सकता है.

REFERENCE: https://www.dw.com/

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