Centre ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि नीतिगत मामलों में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए।
कोर्ट किसी भी नीति को तभी रद करता है, जबकि वह मनमानी व असंवैधानिक हो, लेकिन कोर्ट सरकार को नीति तय करने का तौर-तरीका नहीं बता सकता।
केंद्र ने ये बात सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने ताजा हलफनामे में कही है। अदालत से दोषी ठहराये जाने के बाद अयोग्य हुए सांसदों और विधायकों की सीट रिक्त घोषित करने में होने वाली अनुचित देरी का मुद्दा उठाने वाली एक जनहित याचिका का जवाब देते हुए सरकार ने ये बात कही है।
गैर सरकारी संगठन लोकप्रहरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर संबंधित सदन के अध्यक्ष की ओर से अधिसूचना जारी होने में लगने वाली देरी पर सवाल उठाते हुए मांग की है कि जिस दिन सदस्य दोषी करार हो उसी दिन से उसकी सीट खाली मान ली जाए और अधिसूचना जारी होने मे देरी को खत्म करने के लिए सदस्य को दोषी ठहराने का अदालत का फैसला सीधे चुनाव आयोग को भेजा जाए और चुनाव आयोग सीट को खाली घोषित कर तत्काल उस पर चुनाव कराए।
सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा है कि अब इस मुद्दे में सुनवाई के लिए कुछ नहीं बचा है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के जुलाई 2013 के फैसले में जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(4) को रद करते हुए कहा था कि जिस दिन अदालत सदस्य को दोषी करार देती है वो उसी दिन से अयोग्य हो जाता है और उसकी सीट खाली हो जाती है। अयोग्य ठहराने की अधिसूचना जारी होने में लगने वाली देरी पर सरकार ने मौन साध लिया है और सारा दारोमदार चुनाव आयोग व अन्य संबंधित संस्थाओं पर डाल दिया है। मुद्दे से किनारा करते हुए कानून मंत्रलय ने कहा है कि उसका संबंध सिर्फ चुनाव संबंधी कानूनों से है। सीट खाली घोषित करने की प्रक्रिया चुनाव आयोग और अन्य संबंधित संस्थाएं देखती हैं। याचिकाकर्ता की यह दलील कि देरी होने के कारण अयोग्य सदस्य कोर्ट से स्टे ले आता है, तो इस प्रक्रिया में सरकार का कोई लेना-देना नहीं है। ये न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है।