जेल सुधार के निर्देश


#Dainik_Jagran
Recently SC has said government can not discriminate and in case of unnatural death in jails kins of criminals should also be paid compensastion.  This is a step towards reforming our jails
सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में सुधार की जरूरत पर ध्यान दिया और इस सिलसिले में 11 सूत्रीय दिशानिर्देश भी जारी किए। इसके साथ ही उसने जेलों और साथ ही बाल सुधार गृहों में अस्वाभाविक मौतों के शिकार कैदियों के परिजनों को उचित मुआवजा देने के भी आदेश दिए।


 यदि सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों पर अमल हो सके तो जेलों और साथ ही बाल सुधार गृहों की दयनीय दशा को बदला जा सकता है, लेकिन देखना यह है कि ऐसा हो पाता है या नहीं? यह सवाल इसलिए, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में पुलिस सुधारों को लेकर जो सात सूत्रीय दिशानिर्देश जारी किए थे उनकी कुल मिलाकर अनदेखी ही हुई है। इस अनदेखी के लिए राज्य सरकारों के साथ केंद्र सरकार भी जिम्मेदार है।


Lack of Political will
ऐसा लगता है कि सभी राजनीतिक दल पुलिस सुधारों की दिशा में आगे न बढ़ने के लिए एकमत हैं। ऐसे निराशाजनक अनुभव को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट को अपने स्तर पर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकारें जेलों में सुधार के साथ-साथ पुलिस सुधारों की दिशा में भी तेजी से आगे बढ़ें। उससे यह छिपा नहीं होना चाहिए कि जिस तरह पुलिस थाने पर्याप्त संख्याबल के साथ-साथ उन्नत संसाधनों के अभाव से जूझ रहे हैं उसी तरह जेलों की भी दशा गई-गुजरी है। हमारे अधिकांश थानों और जेलों की दशा ऐसा आभास कराती है जैसे वे अभी भी अंग्रेजों के जमाने का प्रतिनिधित्व कर रही हों। यह स्थिति तब है जब जेलों को कैदियों के सुधार गृह के रूप में देखा जाता है। आज यह आदर्श दूर-दूर तक नजर नहीं आता।


Jails are for Reform purpose?


आम धारणा यह है कि कोई एक बार जेल चला जाए तो फिर वह और बुरी आदतों से ग्रस्त हो जाता है। दुर्भाग्य से यही स्थिति बाल सुधार गृहों की भी है। बाल सुधार गृह बच्चों को सुधारने के बजाय बिगाड़ने के लिए अधिक जाने जाते हैं। थानों-चौकियों, जेलों और बाल सुधार गृहों की दयनीय दशा इसीलिए है, क्योंकि इनमें सुधार हमारे नीति-नियंताओं की प्राथमिकता सूची से बाहर है। कोई जेल अथवा बाल सुधार गृह में है तो इसका यह मतलब नहीं कि उसे अमानवीय स्थितियों में रखा जाए।
भारतीय जेलों की दुर्दशा का हाल यह है कि जब किसी का विदेश से प्रत्यर्पण करने की कोशिश की जाती है तो उसके वकील इस दलील की आड़ अवश्य लेते हैं कि भारतीय जेलों की व्यवस्था तो घोर अमानवीय है। क्या यह किसी से छिपा है कि केरल में मछुआरे की हत्या के आरोपी इटली के नौसैनिकों से लेकर विजय माल्या तक के वकील ऐसी ही दलीलें दे चुके हैं? यह अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट के सामने यह तथ्य लाया गया कि जेलों में जरूरत से ज्यादा कैदी हैं और फिर भी वहां पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं।


Need to reform not just jails but entire criminal justice system


अच्छा होगा कि सुप्रीम कोर्ट यह महसूस करे कि न्यायिक सुधारों की ओर बढ़ने और अदालतों को मुकदमों के बोझ से मुक्त करने का समय आ गया है। चूंकि हमारी अदालतें मुकदमों के बोझ से बुरी तरह दबी हैं इसलिए तमाम विचाराधीन कैदी सालों-साल जेलों में सड़ते रहते हैं। अच्छा होगा कि ऐसी कोई व्यवस्था बने जिससे इसकी सतत निगरानी हो सके कि सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों पर अमल हो रहा है या नहीं।
 

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