The Supreme Court collegium has met the clamour for transparency in judicial appointments, by electing to make public its decisions and rationale behind the elevation of judges to SC and high courts
#Dainik_Jagran
न्यायिक व्यवस्था के शिखर पर जजों के हाथों जजों की नियुक्ति प्रक्रिया की गरिमा पर कुछ हालिया वाकयों से आंच आई है। पहले जस्टिस कर्णन का प्रकरण उठा, सुप्रीम कोर्ट के साथ टकराव के बाद उनकी नियुक्ति को लेकर भी ढेरों सवाल उठे। फिर जस्टिस जयंत पटेल ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित किये जाने के उपरांत नई शपथ लेने की जगह त्यागपत्र देकर कई सवाल खड़े कर दिये। इस प्रश्न को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हुई कि वे कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस या सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में प्रोन्नत किये जाने की जगह इलाहाबाद स्थानांतरित क्यों किये गए, वह भी तब जब उनके रिटायर होने में कुल दो महीने का समय बचा था। कुछ वरिष्ठ वकीलों ने यह मुद्दा भी उछाला कि शीर्ष अदालत परिसर से सत्तारूढ़ व्यवस्था का पक्ष लेने की प्रवृत्ति उभरती दिख रही है। जजों के हाथों जजों की नियुक्ति को लेकर उच्चतम स्तर की पारदर्शिता सुनिश्चित किये जाने को लेकर समय-समय पर चर्चाएं उठती रही हैं।
SC & bringing collegium decision in public domain
केरल और मद्रास उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के मामले में नई नियुक्तियों की प्रक्रिया सार्वजनिक करके पारदर्शी व्यवस्था की ओर कदम बढ़ाने के संकेत भी दे दिये हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस कदम की निश्चित रूप से प्रशंसा की जानी चाहिए।
A laudable initiative
यह कदम और भी सराहनीय स्वरूप अख्तियार कर लेगा यदि जजों के बाबत आंतरिक जांचों और सवाल-जवाब को आरटीआई के दायरे में लाकर पारदर्शिता का आधार व्यापक बना दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट को नए जजों के नामों पर विचार के लिए एक सचिवालय के गठन के विचार पर भी गौर करना चाहिए। इस सचिवालय के ही माध्यम से संभावित जजों के नाम कॉलेजियम के सामने विचारार्थ पहुंचें तो और भी अच्छा होगा। विवेचना के दौरान ऑडियो विजुअल रिकॉर्डिंग तो अब अन्य स्थानों पर आम प्रक्रिया का हिस्सा ही बन चुकी है, हां इस रिकॉर्डिंग को सार्वजनिक किये जाने के संवेदनशील मुद्दे पर भी जरूर गौर किया जाना चाहिए। जजों की निजी संपत्तियों की स्वैच्छिक घोषणा के मुद्दे पर भी भरोसेमंद व्यवस्था होनी चाहिए। 2012 में शुरू हुई यह व्यवस्था अभी भी पूरी तरह से लागू नहीं हो सकी है, आज की स्थिति में महज 13 जजों की संपत्तियों का ब्योरा ही कोर्ट की वेबसाइट पर नजर आ रहा है। फिलहाल नियुक्तियों में पारदर्शिता की ओर कदम बढ़े हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि जनता को जजों की नियुक्ति से लेकर निष्पक्षता के बाबत भरोसेमंद पारदर्शिता देखने को मिलेगी।