5 challenges in front of Economy

मौजूदा वित्त वर्ष की पांच प्रमुख चुनौतियां

1. महंगाई दर - मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही में कच्चा तेल के सस्ता रहने और विकास दर के सुस्त होने से खुदरा महंगाई दर केवल 2.62 फीसदी रह गई थी. लेकिन दूसरी छमाही में हालात बिल्कुल बदल गए. कच्चे तेल की कीमत लगभग डेढ़ गुना हो जाने से तीसरी तिमाही में महंगाई का आंकड़ा बढ़कर 4.56 फीसदी हो गया जबकि अाखिरी तिमाही में भी इसके इसी स्तर के करीब रहने की संभावना है. यानी वित्त वर्ष 2017-18 की दूसरी छमाही में पहली छमाही की तुलना में लगभग दो फीसदी ज्यादा खुदरा महंगाई रहने के आसार हैं.

Read more@ GSHINDI Some Economic Definition

2. निवेश की कम दर - अर्थशास्त्रियों के अनुसार जब कभी निवेश में एक फीसदी की कमी आती है तो विकास दर लगभग आधा प्रतिशत कम हो जाती है. ​सरकार के लिए चिंता की बात है कि 2007 से निवेश दर में गिरावट का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह अब तक नहीं थमा है. 2017-18 की आर्थिक समीक्षा के अनुसार 2007 में जीडीपी की तुलना में निवेश और बचत दर क्रमश: 38 और 36 फीसदी थी जो 2017 में 29 और 26 फीसदी रह गई है. जानकारों के अनुसार जब तक बैंकों और कॉरपोरेट सेक्टर की समस्या दूर नहीं होगी तब तक निवेश में वृद्धि नहीं हो सकती. बिना कुल निवेश बढ़ाए (खासकर निजी निवेश) तेज विकास का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सकता.

3. बैंकों का बुरा हाल - इस महीने जारी एक रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2017 में देश के सभी अधिसूचित बैंकों का कुल फंसा हुआ कर्ज 8.40 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. यह आंकड़ा बैंकों द्वारा जारी अग्रिम राशि का 20 फीसदी से भी ज्यादा है. हालांकि 2016 में इनसॉल्वेंसी और दिवालिया कानून बनने के बाद 2017 में कर्जदारों की संपत्ति नीलाम करके कर्ज वसूल करने की प्रक्रिया में काफी तेजी आई है. लेकिन अभी भी यह समस्या खत्म होने से बहुत दूर है.

4. राजकोषीय घाटा - मोदी सरकार ने पदभार संभालते ही कहा था कि वित्त वर्ष 2016-17 के अंत तक राजकोषीय घाटे को तीन फीसदी तक ले आया जाएगा. लेकिन 2017-18 के अंत में इसके 3.5 फीसदी के आसपास रहने की संभावना है. केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस साल का बजट पेश करते हुए कहा कि तीन फीसदी का लक्ष्य अब वित्त वर्ष 2020-21 तक हासिल किया जाएगा. अर्थव्यवस्था की मजबूत बुनियाद चाहने वालों के लिए यह चिंता की बात है. इससे भारतीय अर्थव्यवस्था की क्रेडिट रेटिंग के जल्द सुधरने की संभावना फीकी हो गई है.

 

5. रोजगार - एक अनुमान के अनुसार इस समय देश के रोजगार बाजार में हर साल सवा करोड़ से ज्यादा लोग दाखिल हो रहे हैं. लेकिन एक रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा वित्त वर्ष में सं​गठित और असंग​ठित दोनों क्षेत्रों को मिलाकर मुश्किल से 36 लाख रोजगार पैदा हो रहे हैं. इस लिहाज से मौजूदा वित्त वर्ष ​को भी कामयाब नहीं माना जा सकता. आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने पिछले हफ्ते सिंगापुर में एक कार्यक्रम में कहा कि भारत बेरोजगारी की समस्या का समाधान तभी कर पाएगा जब उसकी अर्थव्यवस्था 10 फीसदी या उससे ज्यादा तेजी से आगे बढ़े. हालांकि जानकारों के अनुसार ऐसा होने में अभी कम से कम चार-पांच साल तक लग सकते हैं.

#SATYAGRIHA

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download