वास्तविक संपदा का शिक्षा से गहरा वास्ता (education and capital of country)

नवंबर 2017 में सुरजीत भल्ला की विचारोत्तेजक और बांध लेने वाली किताब न्यू वेल्थ ऑफ नेशंस प्रकाशित हुई। यह किताब शिक्षा के क्षेत्र में मानव की सामाजिक और आर्थिक प्रगति से संबंधित है। वह कहते हैं, ‘आय में अधिक समानता, बुर्जुआ का लोकतंत्रीकरण, आर्थिक वृद्घि और जीवन के बेहतर मानक, गरीबी का उन्मूलन और लैंगिक समता, ये सभी लक्ष्य शिक्षा से हासिल किए गए। यही विभिन्न राष्ट्रों की नई संपदा है।’

जनवरी 2018 में विश्व बैंक ने द चेंजिंग वेल्थ ऑफ नेशंस 2018 जारी की। विश्व बैंक की ओर से यह वर्ष 2006 की शृंखला के आधार पर समतुल्य राष्ट्रीय संपदा का तुलनात्मक लेखा प्रस्तुत करने की तीसरी और सबसे व्यापक कोशिश है। इस खंड में मानव पूंजी के अनुमान जुटाए गए हैं। ये आंकड़े और इनका विश्लेषण बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। आश्चर्य की बात है कि भारत में इसकी विषय वस्तु को लेकर कोई खास बातचीत देखने को नहीं मिली। यह स्तंभ उस कमी को दूर करने का प्रयास करेगा। इस अध्ययन में जो आंकड़े और विश्लेषण प्रस्तुत किए गए हैं उसके तरीके को लेकर आपत्तियां करना और उसकी गुणवत्ता पर सवाल उठाना आसान है। उस लिहाज से देखा जाए तो यह कह सकते हैं कि 141 देशों की राष्ट्रीय संपदा का यह अध्ययन सबसे अद्यतन और व्यापक अध्ययन है। राष्ट्रीय संपदा प्रमुख तौर पर तीन श्रेणियों का समुच्चय होती है। राष्ट्रीय संपदा तीन प्रमुख श्रेणियों से मिलकर बनती है:

  • उत्पादित पूंजी और शहरी भूमि (मशीन, इमारतें, उपकरण और आवासीय गैर आवासीय शहरी भूमि)
  • प्राकृतिक पूंजी (ऊर्जा हाइड्रोकार्बन), अन्य प्रमुख खनिज, कृषि भूमि और वन तथा तीसरा,
  • मानव पूंजी (1,500 घरों के सर्वेक्षण के आधार पर एक व्यक्ति की ताउम्र आय का अनुमान)। ध्यान रहे कि इस वांछित आंकड़े में पानी और मत्स्यपालन जैसे अहम संसाधन बाहर हैं।

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प्रति व्यक्ति आय और संपदा की दृष्टिï से देखें तो भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है। यह जी-20 देशों में सबसे गरीब है। भारत के लिए अन्य बड़े देशों के साथ मुकाबला करने के लिए संपदा का तेज विस्तार करना जरूरी है। खासतौर पर मानव पूंजी के मामले में। सुरजीत भल्ला की सुस्पष्टï टिप्पणियों के बावजूद भारत की मानव पूंजी में इजाफे की संभावनाओं पर हमारी शिक्षा व्यवस्था असर डाल रही है। प्रथम द्वारा तैयार राज्यवार सालाना शिक्षा रिपोर्ट हमारी शिक्षा की बदहाली पर रोशनी डालती है। टाइम्स हायर एजुकेशन के मुताबिक विश्व के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में भारत का कोई संस्थान शामिल नहीं। हमें अभी इस दिशा में लंबी दूरी तय करनी है।

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