Honour killing is unjustifiable in a civilised society and a strict law should be in place.
#Dainik_Tribune
अंतर्जातीय और सगोत्र वयस्कों की शादियों के मामले में परिवार की इज्जत के नाम पर नवविवाहितों पर बेरहमी की घटनाओं पर उच्चतम न्यायालय का कड़ा रुख बरकरार है। मगर इसकी रोकथाम के लिए कानून बनाने जैसे ठोस कदम के प्रति केन्द्र सरकार की उदासीनता काफी चिंताजनक है। एक गैर-सरकारी संगठन शक्तिवाहिनी ने 2010 में जनहित याचिका दायर की थी। न्यायालय की मदद के लिए नियुक्त न्यायमित्र राजू रामचन्द्रन और कुछ अन्य संगठनों ने इस मामले में न्यायालय को सुझाव दिये थे। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी सुझाव दिये थे।
विवाह की आजादी में हस्तक्षेप की रोकथाम के बारे में विधि आयोग ने अगस्त, 2012 में सरकार को एक विधेयक का मसौदा सौंपा था। इसमें समाज को गुमराह करने और भड़काने वाले सभी फरमान प्रस्तावित विधेयक के दायरे में लाने और ऐसे अपराध को गैर-जमानती बनाने का प्रस्ताव है लेकिन यह अधर में लटका है।
दूसरी जाति में विवाह करने वाले लड़के या लड़की के कृत्य से भड़कने वाले परिवार और खाप पंचायत के सदस्यों पर भी अंकुश लगाने की कवायद चल रही है। न्यायालय पहले ही सुझाव दे चुका है कि झूठी शान की खातिर बच्चों की हत्या करने वालों को मौत की सज़ा मिलनी चाहिए। देश की कुछ अदालतों ने इस दिशा में कदम उठाते हुए अपराधियों को मौत की सज़ा सुनाई भी है
खाप पंचायतों की समाज सुधारने या गांव के विकास से संबंधित गतिविधियां तो सराहनीय हो सकती हैं, लेकिन ये यदि कानून अपने हाथ में लेने या खुद को देश के कानून से परे समझने लगें तो निश्चित ही यह चिंता का विषय हो जाता है।
न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्र ने अप्रैल, 2011 में एक महत्वपूर्ण फैसले में देश में जाति प्रथा की आलोचना करते हुए खाप पंचायतों को गैरकानूनी घोषित किया था, जो अक्सर झूठी शान की खातिर अंतर्जातीय या दूसरे धर्म में विवाह की इच्छा रखने वाले लड़के-लड़कियों के साथ निर्मम व्यवहार करते रहे हैं।
न्यायालय ने दो टूक शब्दों में कहा था कि यह पूरी तरह बर्बरतापूर्ण है, जिसे खत्म करना होगा। इसमें सम्मान की खातिर हत्या करने जैसा सम्माननीय कुछ नहीं है बल्कि यह घृणित और बेशर्मी के साथ की गयी हत्या है। नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों का हनन करने वाली इन खाप पंचायतों पर अंकुश लगना चाहिए।
न्यायालय ने कहा था कि इस तरह की घटना होने पर सरकार को संबंधित इलाके के जिलाधीश या कलेक्टर और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और पुलिस अधीक्षक जैसे अधिकारियों को निलंबित करने जैसी कार्रवाई करके उन पर मुकदमा चलाना चाहिए।