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Some facts
- मानव संसाधन विकास मंत्रालय का अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण 2017-18 बताता है कि राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों में छात्राओं का नामांकन चिंताजनक है।
भारत में इस तरह के कुल 91 संस्थान हैं। - फुटवेयर, हिंदी और यूथ डिवेलपमेंट जैसे इक्का-दुक्का संस्थानों को छोड़ दें, तो लगभग सभी की पहचान इंजिनियरिंग और मेडिकल से जुड़ी है।
- दूसरी तरफ मानविकी और वाणिज्य जैसे क्षेत्रों में उनके एडमिशन की रफ्तार काफी तेज है।
- 2016-17 में 12वीं पास लड़कियों में से 24.5 फीसद ने यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन लिया था, जबकि 2017-18 में उनका हिस्सा बढ़कर 25.4 फीसद हो गया। उनके बरक्स लड़कों के कॉलेज आने की रफ्तार कम है। विश्व बैंक ने इसी महीने बताया है कि पढ़ाई में लड़के-लड़की का फर्क खत्म हो जाए तो किसी की तरक्की की रफ्तार एक तिहाई बढ़ सकती है
जर्मनी में लड़कियों को विज्ञान और गणित जैसे विषयों की ओर आकर्षित करने के लिए कक्षा दस से ही उन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कहीं स्कूल में गर्ल्स डे मनाते हैं तो कहीं बाकायदा समर यूनिवर्सिटी चलाई जाती है। इन उपायों से लड़कियों की आवक इन विषयों में बढ़ रही है।
भारत में भी लड़कियां उच्च शिक्षा में पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा दाखिला ले रही हैं, लेकिन टेक्नॉलजी में उनके आने की रफ्तार कम है।
जर्मनी ने पाया कि उसकी लड़कियां पढ़ने में किसी से कम नहीं हैं, लेकिन विज्ञान और गणित जैसे विषयों से उनकी दूरी रह जाने के चलते उसके उद्योग-धंधों पर बुरा असर पड़ रहा है। इसलिए उसने बाकायदा अभियान चलाकर इस समस्या को हल किया। हमें भी अपने यहां देर-सबेर ऐसा कुछ करना पड़ सकता है। वैसे, उच्च शिक्षा में हमारे यहां बड़े नजरिये से देखने पर हालात खराब ही नजर आते हैं।
ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक 2.34 लाख शिक्षकों की कमी है। जो शिक्षक हैं, उनपर काम का लोड बहुत ज्यादा है। यूपी, बिहार और झारखंड में प्रत्येक शिक्षक पर औसतन 50 स्टूडेंट्स हैं, जबकि देश का औसत प्रति शिक्षक 30 छात्रों का है। जर्मनी का सकल नामांकन अनुपात 62 फीसद से ज्यादा है, फिर भी वह अपनी लड़कियों को लेकर इतना चिंतित है। सर्वेक्षण में 2017-18 के लिए हमारा यह अनुपात 25.8 प्रतिशत निकला है तो अपनी स्थिति का अंदाजा हम लगा ही सकते हैं।