औषधीय शहद के साथ आर्थिक लाभ भी देती हैं मधुमक्खियां


#Business_Standard
मधुमक्खी पालन क्षेत्र में औषधीय गुणों से युक्त शहद के उत्पादन की अनूठी खासियत होने के बावजूद डंकरहित मधुमक्खियों पर खास ध्यान नहीं दिया गया है। इसके अलावा फसल परागण में भी ये मधुमक्खियां सामान्य मधुमक्खियों की तुलना में अधिक कारगर साबित होती हैं। खास बात यह है कि नुकसान नहीं पहुंचाने वाली इन मधुमक्खियों को घरों, घरेलू बगीचे या पिछवाड़े वाले हिस्से में पालतू बनाकर भी रखा जा सकता है। गांवों के अलावा शहरी इलाकों में भी इन मधुमक्खियों का पालन किया जा सकता है। शर्त बस इतनी है कि आसपास फूलों की मौजूदगी हो। विशेषज्ञों का मानना है कि डंकरहित मधुमक्खी पालन युवाओं और महिलाओं के लिए अतिरिक्त आय का एक महत्त्वपूर्ण जरिया हो सकता है।


Economic Benefit of Apiculture


    छोटे आकार की ये मधुमक्खियां सामान्य मधुमक्खियों की तुलना में काफी कम शहद का उत्पादन करती हैं लेकिन अपने ऐंटी-बॉयोटिक और अन्य औषधीय गुणों के चलते इस शहद के भाव काफी अधिक होते हैं। 
    आयुर्वेद और दूसरी परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों में विभिन्न बीमारियों के उपचार में डंकरहित मधुमक्खी से निकले शहद का काफी इस्तेमाल होता है। कारोबारी इस शहद को खरीदने के लिए आसानी से 2,000 से लेकर 3,000 रुपये प्रति किलोग्राम का भाव दे देते हैं। अगर इस शहद को ब्रांडेड उत्पाद के तौर पर देसी-विदेशी बाजार में बेचा जाए तो मुनाफा और भी अधिक हो सकता है। मशहूर मधुमक्खी पालन विशेषज्ञ आर के ठाकुर का कहना है कि जापान और कुछ अन्य देशों में तो इस किस्म के शहद की काफी मांग है। ठाकुर मधुमक्खी एवं परागण से संबंधित अखिल भारतीय समेकित शोध परियोजना के प्रमुख भी हैं।
Ecological Benefit of Api culture
परागण करने वाले अभिकर्ता के तौर पर डंकरहित मधुमक्खियों को तिलहन, सब्जियों और औषधीय पौधों जैसे संकर-परागण वाली फसलों के लिए काफी मुफीद माना जाता है। इसके अलावा पॉलिहाउस और ग्लासहाउस के नियंत्रित माहौल में उगाई जाने वाली फसलों के परागण में भी ये मधुमक्खियां डंक नहीं होने के कारण कारगर साबित होती हैं। ऐसा देखा गया है कि डंकरहित मधुमक्खियों के परागण से फसलों की उपज में 15 से लेकर 40 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। आकार में छोटा होने से ये मधुमक्खियां छोटे फूलों के भीतर भी परागकणों तक पहुंच जाती हैं जहां आम मधुमक्खियों की पहुंच नहीं हो पाती है। हालांकि ये मधुमक्खियां कम दूरी तक ही उड़ान भर पाती हैं लेकिन दिन भर में करीब 1,500 पौधों तक पहुंच जाती हैं। खास तौर पर औषधीय गुण वाले गुलाब, डहेलिया, गेंदा और कुमुदिनी जैसे पौधे इन मधुमक्खियों को अधिक पसंद होते हैं।


India & Bees


संयोग से भारत में डंकरहित मधुमक्खियों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं। स्थानीय डंकरहित मधुमक्खियों की सर्वाधिक प्रभावी प्रजाति ट्राइगोना इरिडिपेनिस है जबकि कुछ राज्यों में कई अन्य प्रजातियों की मधुमक्खियां भी अच्छी तादाद में हैं। अकेले पूर्वोत्तर राज्यों में ही डंकरहित मधुमक्खियों की आठ प्रजातियां पाई गई हैं। हालांकि केरल, नगालैंड, असम और ओडिशा को छोड़कर अन्य राज्यों में इन मधुमक्खियों के पालन से व्यावसायिक लाभ उठाने की विधिवत कोशिशें नहीं की गई हैं।


Lesson from other Countries


ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया जैसे देशों में मेलिपोनिकल्चर को एक व्यवस्थित उद्योग के तौर पर विकसित किया गया है। उन देशों में डंकरहित मधुमक्खियों की क्षमता सुधारने के लिए उन्नत तकनीकों का भी विकास किया गया है। लेकिन ये देश अपनी तकनीक को दूसरे देशों से साझा करने में अभी झिझक रहे हैं। इस वजह से भारत को इस क्षेत्र में नई एवं अपेक्षाकृत अधिक उत्पादक तकनीकों का विकास खुद ही करना होगा। इस दिशा में कोशिशें की जा रही हैं और एआईसीआरपी के तहत वैज्ञानिकों को कुछ अच्छे परिणाम भी देखने को मिले हैं।
भारतीय कीट-विज्ञानियों ने इन मधुमक्खियों के प्रबंधन और उन्हें पालतू बनाने की तकनीकों के विकास के मामले में कुछ प्रगति की है। वैज्ञानिकों को यह अहसास हुआ है कि इन मधुमक्खियों को आसानी से मिट्टïी के बर्तनों या लकड़ी के बक्सों में रखा जा सकता है। हालांकि ये मधुमक्खियां अपने घोसले भूमिगत गुफा, दीवारों में बने छिद्रों और खाली गोदाम जैसे उन गुप्त स्थानों पर बनाती हैं जहां लोग आसानी से न पहुंच पाएं। इन मधुमक्खियों के लिए खास कंटेनर बनाकर रानी मधुमक्खी को उसके कामगार मधुमक्खियों से अलग किया जा सकता है। इस तरह मधुमक्खियों की मौलिक बस्ती को उजाड़े बगैर भी एक अलग बस्ती बनाई जा सकती है। नए मधुमक्खी पालक मधुमक्खियों की बस्ती को नगालैंड, केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों से मंगवा सकते हैं। शोधकर्ताओं ने इन मधुमक्खियों को अच्छी खुराक देने के लिए भी कुछ कृत्रिम मिश्रण तैयार किए हैं। इससे मधुमक्खियों को उस समय भी अच्छा पोषण दिया जा सकता है जब फूलों की फसल का समय नहीं होता है।
इस तरह वैज्ञानिक जहां डंकरहित मधुमक्खियों के पालन से संबंधित नई तकनीकों के विकास में लगे हुए हैं, वहीं राज्यों के कृषि विभाग को भी उन्नत शहद उत्पादन में उपयोगी इस उद्योग के प्रोत्साहन में जोरशोर से लगना चाहिए। दरअसल ऐसा करने से न केवल मधुमक्खी पालकों को आर्थिक लाभ होगा बल्कि मेलिपोनाइन मधुमक्खियों के परागण वाली फसलों की उपज भी बढ़ जाएगी। खेतों, ग्रीनहाउस और घरेलू बगीचों में लगाए जानेे वाली फसलों की उपज भी बेहतर हो सकेगी।
 

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download