#Amar_Ujala
भारतीय किसानों को बहुत कम राजस्व मिलता है। कम राजस्व मिलने का कारण यह है कि या तो किसान अनुत्पादक हैं या उन्हें अपने उत्पादों की कम कीमत मिलती है। उत्पादकता जहां खेती के तकनीकी पहलुओं से संबंधित है, वहीं मूल्य प्राप्ति कृषि अर्थव्यवस्था की स्थिति पर निर्भर करती है, जो बेहतर आर्थिक नीति से दुरुस्त की जा सकती है।
- इकोनोमिक ऐंड पॉलिटिकल वीकली (2012) में प्रकाशित रमेश चंद के लेख डेवलपमेंट पॉलिसी ऐंड एग्रीकल्चर मार्केट्स के अनुसार, किसानों को मिलने वाले राजस्व और उपभोक्ताओं द्वारा चुकाई जाने वाली कीमतों के बीच बहुत अधिक अंतर के लिए प्राय: बिचौलियों को दोषी ठहराया जाता है।
- दो आम आरोप जो लगाए जाते हैं, वे यह कि:
- उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले मध्यस्थता की कई परतें इन दोनों के अंतर को बढ़ाती हैं, और
- बिचौलिये वस्तु की गुणवत्ता में कुछ जोड़े बगैर ही मुनाफा कमाते हैं।
बेशक इस बात में कुछ सच्चाई हो सकती है, लेकिन बिना गंभीर पड़ताल के इसकी सच्चाई जानना मुश्किल है।
आर्थिक सिद्धांत बिचौलियों को अक्षमता का पर्याय नहीं, बल्कि वह इन्हें अर्थव्यवस्था के पहिये को चिकनाई प्रदान करने वाला मानता है। मैथ्यू ग्रांट और मेरिडिथ स्टार्ट्ज के ताजा अध्ययन ने दिखाया है कि दीर्घकालीन आपूर्ति शृंखला में कुछ खास स्थितियों के तहत कई बिचौलिये प्रतिस्पर्धा को प्रेरित करके उपभोक्ताओं को फायदा पहुंचाते हैं। किसान के पास खेती और अन्य गतिविधियों के लिए सीमित समय ही होता है।
Why brokers:
- समय एक बड़ी बाधा है, जो किसानों को अपने उत्पादों की बिक्री करने से रोकता है, जिससे बिचौलियों को पनपने का मौका मिलता है।
- इसके अलावा परिवहन और विपणन के लिए खास कौशल की जरूरत होती है, जो किसानों में नहीं भी हो सकता।
- भंडारण की कमी और उत्पादों के एक समय बाद नष्ट हो जाने के कारण जोखिम बढ़ता है।
- ऋण बाजार (क्रेडिट मार्केट) के अभाव में न केवल किसान बिचौलियों से उधार लेते हैं, बल्कि बिचौलिये भी एक-दूसरे से उधार लेते हैं।
ये कारक वास्तव में खुदरा उपभोक्ता मूल्य और किसानों को मिलने वाले राजस्व के बीच अंतर को बढ़ाते हैं। आम तौर पर कीमतों में अंतर परिवहन लागत, प्रसंस्करण लागत और किराये के चलते होता है।
वर्तमान भारतीय संदर्भ में यह स्पष्ट नहीं है कि परिकलित अंतर का कितना हिस्सा शुद्ध किराया है। इसे समझने के लिए ज्यादा शोध की जरूरत है। वैध लागत से किराये को अलग करने के लिए आपूर्ति शृंखला के साथ विभिन्न बिंदुओं पर उच्च आवृत्ति मूल्य डेटा की आवश्यकता होती है-। श्रम विभाजन के नजरिये से देखें, तो बिचौलिये समस्या के स्रोत नहीं हो सकते। वे बस अपनी सेवाओं और उसके जोखिम के लिए मामूली मूल्य कमा सकते हैं। इसलिए उन्हें बाहर होने के लिए बाध्य करने पर कृषि आपूर्ति शृंखला बाधित हो सकती है, जैसा बांग्लादेश में हुआ।
अलग-अलग जगहों में एक ही वस्तु की कीमत अलग-अलग होने के कई कारक होते हैं-जैसे-परिवहन लागत, नियामक बाधाएं, बिचौलियों और खुदरा बिक्रेताओं की स्थानीय बाजार में ताकत-जो वस्तुओं के स्वतंत्र आवागमन को रोकते हैं। चूंकि ये कारक किसानों को उच्च कीमत पाने और उपभोक्ताओं को कम कीमत पर खाद्य वस्तु खरीदने से रोकते हैं, इसलिए कुल मिलाकर ये लोककल्याण को कम करते हैं। चुनौती यह पता करने की है कि कौन-सी सीमा किसानों के लिए प्रतिकुल परिणाम लाती है