अब फसलों के जरिये मुनाफा कमा पाना काफी मुश्किल हो चुका है। ऐसी स्थिति में अगर खेती के साथ कृषि से जुड़ी सह गतिविधियों को भी जोड़ दिया जाए तो खेती को आर्थिक रूप से व्यावहारिक बनाने के साथ किसानों की शुद्ध आय को भी बढ़ाया जा सकता है। ऐसा एकीकृत खेती के जरिये किया जा सकता है जिसमें जमीन के उसी टुकड़े से खाद्यान्न, चारा, खाद और ईंधन भी पैदा किया जा सकता है।
हालांकि इस तरह की विविध खेती प्रणाली में समाहित किए जा सकने वाले कृषि उद्यमों का चयन बेहद सावधानी से करना चाहिए।
इन सभी तरीकों को एक दूसरे के साथ तालमेल में होना चाहिए और जमीन एवं अन्य संसाधनों की कम-से-कम खपत करने वाला होना चाहिए।
एक साथ किए जा सकने वाले कृषि-अनुषंगी कार्यों की कोई कमी नहीं है। इनमें पशुपालन, बागवानी, हर्बल खेती, मशरूम उत्पादन, मधुमक्खी पालन, रेशम उत्पादन, मत्स्य पालन और कृषि-वानिकी जैसे काम शामिल हैं।
वैसे किसान मिश्रित खेती की अवधारणा से अपरिचित नहीं हैं। करीब 80 फीसदी किसान नियमित तौर पर खेती के साथ मवेशी भी रखते हैं जिनमें गाय एवं भैंसों की बहुतायत होती है। मवेशी पालने से किसानों का कृषि से संबंधित जोखिम तो कम होता ही है, उसके अलावा उनकी आय और पोषण स्तर में भी बढ़ोतरी होती है। कई किसान बकरियां, भेड़ें या मुर्गियां भी रखते हैं। लेकिन अधिकांश खेतों में जिस तरह की मिश्रित खेती की जाती है वह एकीकृत खेती की श्रेणी में आने के लायक नहीं है। दरअसल मिश्रित खेती में विभिन्न सहयोगी गतिविधियों को इस तरह से समाहित किया जाता है कि वे संबंधित क्षेत्रों के लिए लाभदायक साबित हो सकें।
सुविचारित एकीकृत खेती प्रणाली के तहत एक अवयव के अपशिष्टों, अनुत्पादों और अनुपयोगी जैव ईंधन का इस तरह से पुनर्चक्रण किया जाता है कि वह दूसरे अवयव के लिए इनपुट के तौर पर इस्तेमाल हो जाता है जिससे लागत में भी कमी आती है और उत्पादकता एवं लाभदायकता में बढ़ोतरी होती है।
भारतीय खेती प्रणाली अनुसंधान संस्थान (आईआईएफएसआर) के वैज्ञानिकों का कहना है कि एक खेती प्रणाली में जरूरत भर के 70 फीसदी पोषक तत्त्व अपशिष्ट पुनर्चक्रण और अन्य तरीकों से ही हासिल किए जा सकते हैं। मवेशियों के मल-मूत्र से बनी देसी खाद के जरिये उर्वरकों से मिलने वाले नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का एक-चौथाई हिस्सा हासिल किया जा सकता है। एक और फायदा यह है कि रासायनिक उर्वरकों के बजाय देसी खाद का इस्तेमाल करने से मिट्टïी की उत्पादकता और उसके भौतिक स्वास्थ्य को दुरुस्त किया जा सकता है। खेती के दौरान उपजने वाले अवशिष्टों को केंचुए की मदद से कंपोस्ट खाद में भी तब्दील किया जा सकता है। कंपोस्ट खाद मिट्टïी की उत्पादकता को बढ़ाकर खेती के लिए भी लाभदायक साबित होती है।
इस तरह की एकीकृत खेती प्रणाली का अगर वैज्ञानिक तरीके से अनुपालन किया जाए तो वह खेती में लगे परिवारों को पूरे साल की आजीविका देने के अलावा उनकी आय वृद्धि का भी माध्यम बन सकता है। इसके अलावा इन खेती प्रणालियों में श्रम की अधिक आवश्यकता को देखते हुए संबंधित कृषक परिवार के अलावा कुछ अन्य लोगों को भी रोजगार मिल सकता है। आईआईएफएसआर के निदेशक ए एस पंवार कहते हैं, ‘एकीकृत खेती प्रणाली से किसान की आय दोगुनी होने के साथ ही कृषि अवशिष्टों का पुनर्चक्रण करने से पर्यावरण को भी फायदा होता है।’ एकीकृत खेती प्रणाली में अगर एक अवयव नाकाम भी होता है तो दूसरे अवयवों के कारगर होने से उस परिवार की जरूरतें पूरी हो सकती हैं। हालांकि इसके लिए इन प्रणालियों को उस स्थान-विशेष के मुताबिक तैयार किया जाना बेहद जरूरी होता है। पंवार कहते हैं, ‘खेती प्रणालियों को इस तरह डिजाइन करना चाहिए कि वे खेतों में ऊर्जा सक्षमता में अच्छी-खासी बढ़ोतरी करें और विभिन्न अवयवों के बीच बेहतर तालमेल सुनिश्चित किया जा सके।’
एकीकृत खेती प्रणाली के लिए खेत का आकार अधिक मायने नहीं रखता है। सच तो यह है कि इस तरह की प्रणाली छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए कहीं अधिक कारगर साबित होती है। देश भर में छोटे एवं सीमांत आकार के खेतों की संख्या बढऩे से एकीकृत कृषि प्रणाली की उपयोगिता और अधिक बढ़ रही है। इस प्रणाली को अपनाकर छोटे एवं सीमांत किसान अधिक उपज वाली फसलों के साथ ही मशरूम, फल, सब्जियां, अंडे, दूध, मांस और शहद जैसे लाभदायक उत्पाद भी पैदा कर सकते हैं। इसके अलावा वे जैव-ईंधन भी पैदा कर अपनी आय बढ़ा सकते हैं। दरअसल एकीकृत खेती का मूल यह है कि एक किसान की जमीन का अधिकतम इस्तेमाल किया जाए।
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