बार- बार हारता किसान: कभी मौसम से तो कभी परिस्थितियों से

देश के कुल 641 में से 270 जिलों में औसत से कम बारिश हुई है। मौसम विभाग और केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 18 राज्यों में फैले इन जिलों में औसत से 14 प्रतिशत कम वर्षा हुई है।

- देश के सबसे घनी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में औसत से 46 प्रतिशत तक कम बारिश हुई है! हरियाणा और पंजाब में यह क्रमश: 38 व 32 प्रतिशत है।

- ध्यान रहे, ये देश के सबसे बड़े कृषि उत्पादक राज्य हैं. बिहार, महाराष्ट्र, केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों में भी यह प्रतिशत क्रमश: 28, 27, 26 और 20 है। कहें तो आज आधा देश सूखे की समस्या से ग्रस्त है। वर्ष 2014 में औसत से 12 प्रतिशत कम बारिश होने पर खाद्यान्न् की पैदावार में 4.7 प्रतिशत कमी दर्ज की गई थी।

- एक सदी से भी अधिक समय में यह केवल चौथा ऐसा अवसर है, जब लगातार दो साल औसत से कम बारिश हुई है। 
- देश की आधी कृषि भूमि आज भी मानसून पर निर्भर है। जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधाएं हैं, वहां भी कम बारिश का खेती पर असर पड़ता है।

- जलस्रोतों की यह स्थिति है कि दिसंबर तक उनके जलस्तर में एक दशक की सर्वाधिक गिरावट दर्ज की गई थी। यह इसलिए भी चिंताजनक है, क्योंकि रबी की फसलें पानी पर काफी निर्भर रहती हैं।

- महाराष्ट्र और खासतौर पर मराठवाड़ा में हालत यह है कि इसी साल लगभग 600 किसानों ने आत्महत्या की है। इसका अहम कारण यह था कि गन्ने की खेती के लिए काफी पानी की जरूरत होती है। 
- महाराष्ट्र में गन्ने के खेत कृषि भूमि का छह प्रतिशत ही हैं, लेकिन वे राज्य में कृषि कार्यों के लिए प्रयुक्त लगभग आधे पानी का उपयोग कर लेते हैं। लेकिन गन्‍ने को कैश क्रॉप माना जाता है और राजनीतिक स्वार्थ को किसान हित पर तरजीह दी जाती रही है।

 सरकार क्या कर रही है?
-> केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अनेक योजनाओं की घोषणा की गई है, लेकिन उन पर अमल की प्रक्रिया लचर है। केंद्र सरकार मनरेगा के माध्यम से सूखाग्रस्त क्षेत्रों में प्रभावित परिवारों को वह अधिक कार्यदिवस मुहैया कराने के लिए राजी हुई है।

- डीजल और बीज पर सबसिडी दी जा रही है, पशुओं को चारा मुहैया कराया जा रहा है और

- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत किए जाने वाले आवंटनों की प्रक्रिया को सुगम बना दिया गया है। 
- लेकिन फसलों की कीमतों से होने वाली आय सुनिश्चित करने वाली योजनाएं अमल में नहीं आ सकी हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से किसानों की मदद करने की नीति छोटे किसानों के हितों को ध्यान में नहीं रख पा रही है।

- फसल बरबाद होने की स्थिति में मदद करने वाली मौजूदा बीमा योजनाएं आज देश के 26 करोड़ से भी अधिक किसानों में से मात्र दस प्रतिशत को ही कवर कर पा रही हैं। फिर बीमा राशि का भुगतान बैंक खाते में किया जाता है, जबकि प्रधानमंत्री जनधन योजना के बावजूद अभी तक बड़े पैमाने पर किसानों के पास बैंक खाते नहीं हैं।

- पिछले एक साल में ही अनेक दलहनों की कीमतों में दो तिहाई तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। ये अलग बात है कि इसी दौरान अन्य कृषि उत्पादों की कीमतों में खासी गिरावट भी आई है, जैसे कि कपास, गन्ना, धान, आलू इत्यादि।

- यह भारत के किसानों की बड़ी दुविधा है। जब वे अधिक उपज लेते हैं तो कीमतें गिर जाती हैं और कम उपज लेते हैं तो मुनाफा नहीं होता। 
- लेकिन कम उपज की स्थिति में सरकार हस्तक्षेप करके उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने की कोशिश करती है और किसान एक बार फिर हार जाता है।

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download