जलवायु परिवर्तन और पशुधन

जलवायु परिवर्तन से पशुधन पर क्या असर पड़ेगा? सवाल कई कारणों से अहम है क्योंकि

  • पशुधन कृषि क्षेत्र के कुल सकल घरेलू उत्पाद में करीब 25 प्रतिशत से अधिक योगदान देता है। इतना ही नहीं, पशुधन से प्राप्त होने वाले उत्पाद खाद्य महंगाई की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इन उत्पादों में दूध, अंडे, मांस एवं मछली शामिल हैं।
  •  यह तेजी से बढऩे वाला खंड है, जिसकी सालाना वृद्धि दर 5.6 प्रतिशत है।
  •  दूध उत्पादन में सालाना 4.2 प्रतिशत, अंडा उत्पादन में 5 प्रतिशत, मछली उत्पादन में 8 प्रतिशत और मांस उत्पादन में 8.3 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। 
  • यह समावेशी विकास के लिए भी अत्यावश्यक है : मवेशी ग्रामीण और दूर-दराज क्षेत्रों में रहने वाले छोटे किसानों और गरीबों के लिए जीविका का साधन भी हैं। देश में पशुधन की कुल संख्या का 70 प्रतिशत आबादी का लालन-पालन यही लोग करते हैं।

climate change and Animals

  • मनुष्य के मुकाबले जानवरों में पर्यावरण के घटकों जैसे तापमान, आद्र्रता, हवा की गति आदि में होने वाले बदलाव के अनुसार अनुकूलन क्षमता सीमित होती है।
  • जलवायु में होने वाले किसी तरह के बदलाव से इनके स्वास्थ्य और उत्पादकता पर बुरा असर पड़ता है। जलवायु में सीमित बदलाव तक ही वे यथाशक्ति आनुवांशिक उत्पाद क्षमता प्रदर्शित कर पाते हैं।
  • अधिक तापपान कृषिगत गतिविधियों से जुड़े जानवरों की क्षमता सबसे अधिक प्रभावित करता है लेकिन दूसरे प्रतिकूल कारक भी इन्हें कई तरह से प्रभावित करते हैं।
  • तापमान एक सीमा से अधिक बढऩे पर दुग्ध उत्पादन में 10-25 प्रतिशत कमी आ सकती है।
  • देसी नस्लें पर्यावरण और आस-पास होने वाले बदलावों को अधिक सीमा तक बर्दाश्त कर सकती हैं, लेकिन गाय और भैंस की संकर नस्लों में ऐसी क्षमता नहीं होती है।
  • मुर्गियों सहित अन्य पक्षी तापमान में होने वाले उतार-चढ़़ाव के प्रति खासे संवेदनशील होते हैं। दूसरे जानवर जैसे बकरी और भेड़ भी पर्यावरण में अचानक हुए बदलाव झेलने का सामथ्र्य नहीं रखते हैं

उत्पादकता पर असर

  • करनाल स्थित राष्ट्रीय दुग्ध अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) के एक सर्वेक्षण के अनुसार गर्मी में अधिकतम तापमान 4 डिग्री सेल्सियस बढऩे और सर्दी में 3 डिग्री सेल्सियस कम होने से गायों और भैंसों की दुग्ध उत्पादन क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। दुग्ध उत्पादन के पहले चरण में उत्पादन 10 से 30 प्रतिशत जबकि बाद में इसमें 5 से 20 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।
  • एनडीआरआई के अध्ययन के अनुसार जलवायु में होने वाले बदलाव से कुल दूध उत्पादन में 2020 तक 16 लाख टन सालाना नुकसान हो सकता है और 2050 तक यह मात्रा बढ़कर 1.5 करोड़ टन रहने की आशंका है। 

प्रजनन क्षमता  पर प्रभाव

  • पशुधन की प्रजनन क्षमता भी प्रभावित हो रही है। नैशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेस (एनएएएस) के अनुसार जलवायु में हुए बदलाव से गर्मी और बरसात में पशुधन की ज्यादातर प्रजातियों की प्रजनन क्षमता प्रभावित हुई है।
  • पशुधन पर इन प्रत्यक्ष प्रभावों के अलावा जलवायु परिवर्तन के अप्रत्यक्ष असर भी हैं।
  • मौसम प्रतिकूल होने पर इनके लिए चारे आदि की भी समस्या हो जाती है, वहीं तापमान बढऩे पर रोगाणु और परजीवी भी सक्रिय हो जाते हैं। ये पशुधन के स्वास्थ्य पर असर डालते हैं। अधिक समय तक सूखा रहने या बाढ़ की स्थिति बने रहने से भी रोग फैलाने वाले कीटाणुओं और विषाणुओं की सक्रियता बढ़ जाती है। 

जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल असर से पशुधन की सुरक्षा अहम और आवश्यक हो गई है पर इससे निपटने के लिए उपलब्ध उपाय पूरी तरह कारगर नहीं हैं। अत: क्या आवश्यक

  • परिस्थिति और जानवर को केंद्र में रखकर रणनीतियां बनाई जानी चाहिए।
  • फसलों की नस्लें मौजूदा तकनीकों से जलवायु में होने वाले बदलावों से मुकाबला करने योग्य बनाई जा सकती हैं, लेकिन जानवरों के साथ ऐसा करना आसान नहीं है। जानवरों के साथ जब भी यह प्रयोग होता है तब उल्टा परिणाम देखने को मिलते हैं। 
  • चारा प्रबंधन, जानवरों के रहने की उत्तम व्यवस्था, सामुदायिक मवेशीगाह और वायु एवं जल आधारित तापमान नियंत्रक उपायों  पर ध्यान देने की आवश्यकता है
  • ज्यादातर उपायों की भी उनकी सीमाएं हैं। संगठित क्षेत्र के पशुधन उद्यमी ये उपाय कर सकते हैं, लेकिन छोटे और पिछड़े किसान और मवेशीपालक ऐसा नहीं कर सकते हैं क्योंकि उनके पास संसाधनों की कमी है। उन्हें इस लायक बनाने के लिए सार्वजनिक नीति के तहत मदद की जरूरत है। सरकार से समर्थन मिलने पर ही वे पशुधन को जलवायु परिवर्तन के कोप से बचाकर उनकी क्षमता बरकरार रख सकते हैं या उसमें इजाफा कर सकते हैं।

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