ई-नाम सुधार

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प्रधानमंत्री ने इस सप्ताह के आरंभ में एक सम्मेलन में राज्यों के मुख्य सचिवों को सलाह दी कि वे इलेक्ट्रॉनिक नैशनल एग्रीकल्चर बाजार (ई-नाम) पर ध्यान केंद्रित करें। यह सुझाव सही समय पर आया है क्योंकि किसानों को फसल का सही मूल्य सुनिश्चित करने में विपणन की अहम भूमिका है।

Objective of E-NAM

ई-नाम का उद्देश्य है कृषि उपज के लिए देशव्यापी स्तर पर अबाध और पारदर्शी बाजार तैयार करना। परंतु जोरशोर से की गई शुरुआत के एक साल बाद भी यह अपने उद्देश्य प्राप्त करने में पूरी तरह नाकाम रहा।

  • हालांकि देश की 585 प्रमुख मंडियों में से 400 से अधिक में ई-कारोबार की सुविधा है लेकिन पिछले साल बमुश्किल चार फीसदी थोक कृषि कारोबार ही इस माध्यम से हुआ।
  • इस ई-कारोबार में से भी ज्यादातर या तो एक ही मंडी या फिर एक ही राज्य में हुआ।
  • ऐसे में देखा जाए तो किसानों को बिक्री की खातिर देशव्यापी स्तर पर व्यापक खरीदार आधार मुहैया कराने का लक्ष्य हासिल नहीं हो सका

Need for ground work

  • नई विपणन व्यवस्था को सुचारु बनाने के लिए काफी जमीनी काम करना बाकी है। यह काम न तो इसकी लॉन्चिंग के पहले किया गया, न ही अब किया जा रहा है।
  • ई-नाम को कोई समांतर विपणन तंत्र नहीं होना था बल्कि इसे तो मौजूदा मंडियों की अधोसंरचना का ही लाभ उठाना था ताकि खरीदारों और विक्रेताओं को देशव्यापी कारोबार के लिए ई-प्लेटफार्म भर मुहैया करा दिया जाए।
  • इसके कारोबारियों को एकल लाइसेंस की आवश्यकता होती है। बाजार शुल्क भी एकबारगी और कारोबार की गई वस्तुओं का देश भर में अबाध संचार। अब तक इनमें से कोई शर्त पूरी नहीं हो सकी है।
  •  कुछ ही राज्य ऐसे हैं जिन्होंने कारोबारी लाइसेंस जारी किए हैं। वे भी राज्य के बाहर वैध नहीं हैं।
  • राज्य की सभी मंडियों के शुल्क को सुसंगत बनाने की प्रक्रिया शुल्क के एकल संग्रहण की सुविधा की ओर पहला कदम है। यह भी अभी होना है। वस्तुओं की गुणवत्ता के आकलन की व्यवस्था और उनका समयबद्घ परिवहन तय करना भी अभी बाकी है।
  • अधिक आधारभूत स्तर पर देखें तो राज्यों के कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) अधिनियमों में भी समुचित संशोधन नहीं किए गए हैं।
  • ऐसे में कृषि जिंसों के अंतरराज्यीय लेनदेन में समस्या आएगी। जिन कानूनों में संशोधन किया भी गया है वे निजी बाजारों को इजाजत दिला पाने में नाकाम रहे हैं। इसके अलावा उनकी बदौलत थोक खरीदारों या अंतिम उपभोक्ता तक पहुंच भी सुनिश्चित नहीं हो पा रही। बाजार शुल्क और बिचौलियों के कमीशन पर भी इससे जरूरी रोक नहीं लग पा रही।

Reform Required:

  • राज्यों ने पहले ही मंडी स्तर का बुनियादी ढांचा तैयार कर दिया है। ऐसे में ई-कारोबार के लिए सभी राज्यों के बाजारों को आपस में जोडऩे के मामले में कोई समय नहीं गंवाया जाना चाहिए।
  • बाद में इनको अन्य राज्यों की मुख्य मंडियों से जोड़ा जाना चाहिए।
  •  एक सच्चा कृषि बाजार तभी आकार लेगा जब देश भर के प्रमुख उत्पादन और खपत केंद्रों की मंडियां एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म से जोड़ दी जाएंगी और उनमें कृषि जिंसों का कारोबार शुरू होगा।
  • यह देखते हुए कि छोटे किसानों की छोटी-छोटी मात्रा वाली उपज को लेकर बड़े खरीदार रुचि नहीं दिखाएंगे, एकीकृत कारोबार की आवश्यकता होगी ताकि उत्पादकों की पसल को इकठ्ठï कर इनको ई-नाम मंच के जरिये बेचा जाए।
  •  इतना ही नहीं चूंकि इलेक्ट्रॉनिक कारोबार की व्यवस्था में भी स्पॉट ट्रेडिंग की निगरानी की कोई व्यवस्था नहीं है इसलिए सटोरियों को लेकर अतिशय समझदारी बरतनी होगी। जब तक इन मुद्दों से सही ढंग से नहीं निपटा जाता है तब तक ई-नाम किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाने में कामयाब नहीं हो सकेगी।

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